जवना माध्यम से अपना विचार के लेन-देन होला, उहे भाषा ह। भारत में पैशाची,संस्कृत , पाली, प्राकृत आ अपभ्रंश के संगे-संगे चलत भोजपुरी हजारन बरिस पुरान भासा हS। प्राकृत आ अपभ्रंश से 12 वीं सदी आवत-आवत असमिया,बंगला,उड़िया, मैथिली,मगही,आ भोजपुरी के अलगा-अलगा रूप निखरल। – उनइसवीं सदी का अंतिम चरन में भाषा के भोजपुरी नाँव मिलल। – 1789 ई0 में काशी के राजा चेत सिंह के सिपाहियन के बोली के भोजपुरी नाँव से उल्लेख भइल बाटे। – सन् 1868 ई0 में जान बीम्स आपन एगो लेख ‘रायल एसियाटिक सोसाइटी’ में पढ़ले…
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सामाजिक आ राजनीतिक विद्रूपता के खिलाफ के स्वर: गोरख के गीत
गोरख यानी गोरख पाण्डेय।हँ, उहे गोरख पाण्डेय जेकर गीत ‘ समाजवाद बबुआ, धीरे – धीरे आई ‘ आ ‘ नक्सलबाड़ी के तुफनवा जमनवा बदली ‘ गाँव के गली से दिल्ली के गलियारा तक अस्सी के दसक में गूंजत रहे। उहे गोरख पाण्डेय के गीतन पर हम इहाँ बात कइल चाहतानी। गोरख पाण्डेय के जीवन काल में उनुकर रचल गीत संग्रह’ भोजपुरी के नौ गीत ‘ प्रकासित भइल रहे।एकरा अलावा जहाँ – तहाँ उहाँ के भोजपुरी रचना छपल रहे। श्री जीतेन्द्र वर्मा ‘ गोरख पाण्डेय के भोजपुरी गीत ‘ नाम से…
Read Moreमहेंदर मिसिर उपन्यास के बहाने उहाँ के व्यक्तिव पर एगो विमर्श
आगु बढ़े से पहिले कुछ महेंदर मिसिर के बारे में जान लीहल जरूरी बुझाता – महेंद्र मिसिर के जनम 16 मार्च 1888, काहीं-मिश्रवालिया, सारण, बिहार आ उहाँ के निधन 26 अक्टूबर 1946 । उहाँ विद्यालयी शिक्षा ना हासिल होखला का बादो संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, भोजपुरी , बांग्ला,अवधी, आ ब्रजभाषा के विशद गियान रहे। चबात रहीं। महेन्दर मिसिर के पत्नी के नाम परेखा देवी रहे। परेखा जी कुरूप रहली। त कादों एही का चलते गीत-संगीत में अपने मन के भाव उतरले बाड़ें महेन्दर मिसिर। महेंदर मिसिर के एकलौता बेटा…
Read Moreकुँवर सिंह के आखिरी रात
26 अप्रैल 1858 के रात कुँवर सिंह के आखिरी रात रहे. तीन दिन पहिले 23 अप्रैल के 80 बरिस के एह घायल शेर के कटल हाथ पर कपड़ा बन्हाइल, ओकरा ऊपर से चमड़ा के पट्टा से ढ़ाल के बान्हल गइल, तिलक लगावल गइल. फेर त ई राजपूती तलवार अंगरेजन के गाजर-मूली के तरह काटल शुरू कइलस. ली ग्राण्ड के जान गइल आ बाकी बाँचल अंग्रेज सैनिक जान बचा के भगलन सन. जगदीशपुर आजाद हो गइल. यूनियन जैक के झंडा उतार के परमार वंश के भगवा पताका लहरावल गइल. लोग खुशी…
Read Moreभोजपुर में गाँधी के अइला के सै बरिस
मोहनदास करमचंद गाँधी के महात्मा के उपाधि तबे मिलल जब उ बिहार के धरती पर आपन गोड़ धरले। राजकुमार शुकुल से जिद से गाँधी जी चम्पारण अइले। गाँधी जी 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में भाग लेवे आइल रहीं। एही अधिवेशन में शुकुल जी से पहिला मुलाकात भइल। शुकुल जी के बार बार आग्रह रहे कि हमार प्रदेश में आके ओहिजा के किसानन के उद्धार करीं। गाँधी जी टालमटोल करत रहलें आ शुकुल जी जिद। आखिर में गाँधी जी मान गइले आ कल्कता अधिवेशन के बाद आवे के सकरले। …
Read Moreभोजपुरिया समाज में ‘भिखारी ठाकुर’ होखला के माने-मतलब
एगो अइसन समाज जहवाँ लइका जनम का संगही पलायन अपना भाग के लिखनी में लिखवा के आवत होखे,जहवाँ आँख खोलते बाढ़, सुखाड़,गरीबी,भुखमरी आ अशिक्षा में सउनाइल समाज लउकत होखे,जात-पाँत, ऊंच-नीच, छुवाछूत, शोषण का संगे लइका बकइयाँ चलल सीखत होखे, जहां दू-जून के रोटी कुछे लोगन के समय से भेंटात होखे, जहवाँ लइकइयाँ से सोझे बुढ़ापा से भेंट होत होखे आ जहवाँ अमीरी गरीबी का बीचे बहुते गहिराह खाईं होखे, अइसन समाज अजुवो आपन लोक,संस्कार आ संस्कृति जोगावत चलल आवत बा, त कुछ न कुछ त खासे होखी।उ समाज अपना भीतरि…
Read Moreभाषा-साहित्य-संस्कृति के मोती: मोती बीए
नब्बे-पार मोती बीए लमहर बेमारी से जूझत आखिरकार 18 जनवरी, 2009 के सदेह एह लोक से मुकुती पा लेले रहनीं। किशोरे उमिर (1934) से संग-साथ देबे वाली जीवन संगिनी लछिमी सरूपा लक्ष्मी देवी पहिलहीं 1987 में साथ छोड़ि देले रहली। बांचि गइल रहे उन्हुका इयाद में बनावल ‘लक्ष्मी निवास’, जहंवां हिन्दी, भोजपुरी, अंगरेजी, उर्दू के एह समरथी आ कबो सभसे अधिका शोहरत पावेवाला कवि के पहिले आंखि आउर कान जवाब दे दिहलन स,फेरु अकेलहीं तिल-तिल टूटत,बिलखत-कलपत शरीर से आतमा निकलि गइल,संसा टंगा गइल। 1 अगस्त, 1919 का दिने उत्तर प्रदेश…
Read Moreभोजपुरी में संस्मरण लेखन
जब कवनो लेखक अपना निजी अनुभव के ईयाद क के कवनो मनई, घटना, वस्तु चाहें क्रियाकलाप के बहाने लिखेला त उ सब पाठक के मन से जुड़ जाला। पाठक अपना देखल-सुनल-भोगल समय-काल में ओह चीजन के, बातन के, जोहे-बीने लागेला। संस्मरण एगो अइसनके विधा ह, जवना के पढ़ के पाठक लेखक के लेखनी से एकात्म हो के जुड़ जाला। उत्पत्ति के आधार पर देखल जाव त संस्मरण शब्द ‘स्मृ’ धातु में सम् उपसर्ग आ ल्युट् प्रत्यय के मिलला से बनल बा। एह तरे से एकर शाब्दिक अर्थ सम्यक् स्मरण होला।…
Read Moreभोजपुरी साहित्य में प्रेम अउर सद्भावना
लोक में रचल-बसल भोजपुरी भाषा आ ओह भोजपुरी भाषा के मधुरता आ मिठास, अपना जड़ से मजबूती से जुड़ल समाज आ ओह समाज में पसरल रीति-नीति के आपन अलग विशेषता बाटे। अपने एही विशेषता के संगे अलग- अलग सोपान गढ़त, ओके सजावत-सँवारत, ओकरे भीतरि के सुगंध के अलग-अलग तरीका से अलग-अलग जगह बिखेरत भोजपुरी भाषा सदियन से गतिशील रहल बा आ अजुवो ले बा। अपना रसता में आवे वाला कवनो झंझावत से उपरियात, समय के मार के किनारे लगावत अपने भीतरि के ऊष्मा जस के तस अपने में समुआ के…
Read Moreपंडित हरिराम द्विवेदी होखला के माने मतलब
पंडित हरिराम द्विवेदी से हमार रिस्ता 12 पीढ़ी पुरान ह। कांतिथ के परवा गाँव से आइल कश्यप गोत्रीय 3 भाइन के एगो परिवार में से एक भाई के खानदान से उहाँ के बानी आ दोसरा भाई के खानदान से हमनी बानी। उहाँ के 11 वीं पीढ़ी में बाड़ें आ हम 12वीं पीढ़ी में। माने ठसक के संगे दयादी बा आ उ अजुवो जियल जा रहल बा। लोकजीवन आउर लोक संस्कृति के कतौ जब बात होखे लागेला, त चाहे-अनचाहे लोककवि लोगन के भुलाइल संभव ना हो पवेला।भोजपुरिया जगत मे अनगिनत लोककवि…
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