ईश्वर की सृष्टि के साथ मिले, त तनाव दूर होखे के सथहीं रचना में इहे आदमी के मूड के बेहतर करे के रसायन भी बन जाला। ई हमनी के शरीर के कोशिका सभन के भी पोषित करेला। । मानसिक स्वास्थ्य खातिर भी ई एगो टॉनिक होखेला। एहसे ऊर्जा, ताजगी, चैतन्यता के साथे जीवनशक्ति बढ़ जाला। प्रकृति के रचना के संग सुकूं आ शांति भी मिलेला जेह से तनाव आ चिंता भी दूर हो जाला आ सोच सकारात्मक दिशा के साथ कुछ नया करे खातिर प्रेरित करेला।अइसहीं सभ त्योहार के आपन…
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आपन बात
अनघा भाव मन के उद्बबेगत बहुत कुछ कह जाला। उहे सब जब लेखनी में समा के कागज पर उतरेला तब सबकुछ नया नया लागेला। बीतल समय से बहुत सुन्दर चित्र मिलेला जवना में वर्तमान परिप्रेक्ष्य खुद हीं अपना के फिट पावेला आ ई मेल मन के खूबे भावेला।सुख, दुख,दया, अहम ,क्रोध आदि भाव साक्षात आपन प्रभाव डालेगा। अपना गुण के अनुकूल ई रिश्ता में खटास आ चाहे मिठास ले आवेला बाकिर रचना के मरम हमेशा आनंद में परिवर्तित हो के मिलेला। शिव सृष्टि के सिरजक हईं।उहाँ के मानुष आ प्रकृति …
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अझुरहट के सझुरावत ,रसता बनावत गवें-गवें आगु बढ़े के जवन तागत साहित्य से मिलेले उ कहीं अउर से भेंटाले कि ना, एह पर कुछ कहल एह घरी हमरा उचित नइखे बुझात। भोजपुरी साहित्य के धार के आपन बहाव ह,लहर ह,तरंग ह, हुहुकारल ह, फुफुकारल ह। ओही में आपन-आपन नइया लेके हिचकोला खात किनारा पहुँचे क ललक जिनगी के प्रान वायु लेखा बा। आजु भोजपुरी में जहाँ साहित्य के झोली भरा रहल बा, उहें एहमें ढेर विकारो आ रहल बा। जवने क हाल-समाचार समय-समय पर उतिरात रहेला। कई बेर साँच के…
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साहित्य अपना में समाज का संगे सभे के हित समाहित राखेला आ हरमेसा बढ़न्ति का ओर गति बनवले राखे के उपक्रम विद्वान साहित्यकार लोग करत रहेलें। अइसने कुछ साहित्य जगत के मान्यतो ह। बाकि हर बेर ई सही ना होखे। कई बेर एकरा से उलट होत लउकेला। जान-बूझ के भा इरखा बस कवनो नीमन चीजु के अनदेखी कइल, उहो अइसन लोगन द्वारा जेकरा के हद तक मानक मानल जात होखे, ढेर बाउर लागेला। अइसन भइलका मन के गहिराह टीस दे जाला। कई बेर उ टीस मन के उचाट क देवेले।…
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साहित्य के चउखट पर ठाढ़ ऊँट कवने करवट बइठ जाई , आज के जमाना मे बूझल तनि टेंढ ह । कब के टोनहिन नीयर भुनभुनाए लागी आ कब के टोटका मार के पराय जाई ,पते ना चले । आजु के जिनगी मे कवनों बात के ठीहा ठेकाना दमगर देखाई देही , भरोष से कहलों ना जा सके । एगो समय रहे जब मनई समूह मे रहत रहे , अलग समूह – अलग भाषा –बोली , रीत – नित सभे कुछ कबीला के हिसाब से रहे । ओह कबीलन मे अपने…
Read Moreभोजपुरी में मानकीकरण के जरूरत … कतना व्यवहारिक ?
साहित्य के साँच आ संवेदनसील मानके सिरजना के राहि डेग बढ़ावल सुखकर होला। मने एगो अइसन प्रेरक तत्व जवना के प्राण तत्व मान के सृजन के समाज खाति एगो आइना का रूप में परोसला के सुघर दीठि आ संकल्पना का संगे सोझा ले आवे खाति प्रतिबद्धता के एगो मानक मानल जाला। अइसन सृजन अपना भीतरि ऐतिहासिकता के बिम्ब जोगावत आगु बढ़त देखला। अझुरहट आ बीपत का बीच साहित्य एगो नीमन व्यवस्था देस आ समाज का सोझा राखेला। अगर व्यवस्था एकरूपता का संगे सोझा आवेले त ओकरा के बूझल आ बूझलका…
Read Moreसाहित्यकार के माने-मतलब
साहित्य एगो अइसन शब्द ह जवना के लिखित आ मौखिक रूप में बोले जाये वाली बतियन के देस आ समाज के हित खाति उपयोग कइल जाला। ई कल्पना आ सोच-विचार के रचनात्मक भाव-भूमि देवेला। साहित्य सिरजे वाले लोगन के साहित्यकार कहल जाला आ समाज आ देस अइसन लोगन के बड़ सम्मान के दीठि से देखबो करेला। समय के संगे एहु में झोल-झाल लउके लागल बा। बाकि एह घरी कुछ साहित्यकार लो एगो फैसन के गिरफ्त में अझुरा गइल बाड़न। एह फैसन के असर साहित्यिक क्षेत्र में ढेर गहिराह बले भइल…
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