अट्ठारह ले बरिस जाई बदरा, मनवा हो तनी धीर धरा…

“ये गुरु !बड़ा न उमस ह हो।चुरकी क आग अब दिमाग ले चढ़ आइल ह ।जनात ह परान चल जाई ।” टप-टप चुयत पसेना पोछत चेला के मय गमछी भींज के बोथा हो गइल। ” अट्ठारह ले कुल ठीक हो जाई।परेशान मत होखा हो लाल।” मुस्कियात -पान चबात गुरु चेला के निसफिकिर रहे क सलाह दिहलन। “अबही आधा घंटा ले एहि गरमी में जाम में फंसल रहलीं ह गुरदेव।लागत रहल ह कि पियासन परान चल जाई।अबहिं चार महीना पहिलही सड़क बनवले रहलन ह सं।छन भर के टिपिर-टिपिर में कुल सिरमिट-गिट्टी धोआय…

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कउवा से कबेलवे चलाक

का जमाना आ गयो भाया , पहिले त अंडा चूजा के सीख देत रहे बाकि अब त बापे के सीख देवे लागल बिया । तकनीक के जमाना नु बा , केनियों आड़ा तिरछा देखि के धार फूटि रहल बिया । चाहे ओकरा से गाँव तबाह होखे भा देश । पानी के रेला त रेला ह , ओकरा के केकरो पहिचान नइखे । जब पानी के फुफुकारत धार चल देवेले त ओहमे बड़ बड़ पेड़ , पहाड़ , गाँव – गिराव सभे के अपने लय मे नाधि देले । मनई से…

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गुलरी क फूल

ढेर चहकत रहने कि रामराज आई , हर ओरी खुसिए लहराई । आपन राज होखी , धरम करम के बढ़न्ती होई , सभे चैन से कमाई-खाई । केहू कहीं ना जहर खाई भा फंसरी लगाके मुई । केहू कबों भूखले पेट सुतत ना भेंटाई । कुल्हि हाथन के काम मिली , सड़की के किनारे फुटपाथो पर केहू सुतल ना भेंटाई , मने कि सभके मुंडी पर छाजन । दुवरे मचिया पर बइठल सोचत – सोचत कब आँख लाग गइल ,पते ना चलल ।  “कहाँ बानी जी” के करकस आवाज आइल…

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गयल गाँव जहाँ गोंड़ महाजन

का कहीं महाराज , समय के चकरी अइसन घूमरी लीहले बा कि बड़ बड़ जाने मे मुड़ी पिरा रहल बा । जेहर देखी ओहरे लोग आपन आपन मुड़ी झारत कुछहु उलटी क रहल बा । उल्टी करत बेरा न त ओकरे जगह के धियान रहत बा , न समय के धियान रहत बा । एतना लमहर ढंग से आत्ममुग्धता के शिकार भइल बा कि पूछीं मति । ‘अहं ब्रह्मास्मि’ के जाप मे जुटल फेसबुकिया बीर बहादुर लो अपने आगा केहू के कुछहू बुझबे ना करे, फेर चाहे समने केहू होखो…

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बउरहिया

” ए अम्मा जी उर्दी छुआए जात ह गांई जा लोग।” लइका क माई अम्मा लोगन के होस धरवलीं कि उ लोग काहें खातिर बोलावल गईल हईं जा।अम्मा लोग कढ़वलीं – ‘ जौं मैं जनतीं गनेस बाबा अइहन, लीपि डरतीं अंगना दुआर चनन छिड़कतीं ओही देव घरवा चनन क सुन्नर सुबास जौं मैं जनतीं सीतला मइया अइहन लीपि डरतीं अँगना दुआर।’ गीत कढ़ावे वाली बड़की आजी ढ़ेर बूढ़ा गइल रहलीं।चारे-पाँच लाइन गावे में हफरी छोड़े लगलीं।एक जानी क सांस फूले लागल अउर दम्मा के मरीज नियन खांसे लगलीं। “अरे काहें…

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हम भोजपुरिया साहित्यकार बानी आ तू ……?

का जमाना आ गयो भाया , जेहर देखा ओहरे मचमच हो रहल बा । सभके त भोजपुरिया साहित्यकार कहाये के निसा कपारे चढ़ के तांडव क रहल बा । 56 इंची वाला एह लोगन देखते डेरा गइल बा , एही से दिल्ली छोड़ के गुजरात भागल बा । मने हेतना बड़का , जे केकरो सुनबे न करे । दुवरे बइठल भगेलुवा के बड़बड़ाइल सुनके सोझवे से गुजरत सोमारू के ना रह गइल , त उहो हाँ मे हाँ मिलावे ला उहवें ठाढ़ हो के बतकुचन मे अझुरा गइने । का…

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हारब त हारब बाकिर तोहरा के जीते ना देब

हिन्दुवन के कमजोरी ह कि ऊ जीव हत्या पसन्द ना करसु. इहां ले कि जे मांसभक्षी होला उहो अपना सोझा काटल पसन्द ना करे. जे काटेला ऊ झटका में काटेला कि कटाएवाला के कम से कम कष्ट होखे. दुनिया के सगरी नीति नैतिकता पोसे पकावे वाला हिन्दू के इहो याद ना रहे कि जब-जब ऊ कमजोर पड़ल बा, जहाँ-जहाँ ऊ गिनिती में घटल बा ओहिजा से ओकर विदाई, ओकर खात्मा हो गइल बा. एही कश्मीर में लाउडस्पीकर से एलान क के पंडितन के भगावल गइल आ ओकरा बेटी-बहिन के ओहिजे…

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बतकूचन

का कबो सुनले बा केहू जे कवनो जियतार देह, माने कवनो देही, आपन मन में सहेजल अनुभव के अनेरिये जियान होखे देले ? ना ! काहें जे, अइसना अनुभवे के बल आ बिस्तार प कवनो मनई आपन तर्क गढ़ेला। आपन बात के मर्म जता सकेला। आपन अर्जित अनुभवे के सान प केहू के विवेक प पानी चढ़ेला। कवनो मनई के विवेक के आगा फेरु ओकर आपन शिक्षा सहेजेले। शिक्षा माने ग्यान आ बिचार में गठन के तरीका। एही कारन, निकहा शिक्षित मनई के अपना अर्जित अनुभव आ ओह अनुभव के…

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आईं, गुलरी के फूल देखीं नु….?

ढेर चहकत रहने ह  कि रामराज आई , हर ओरी खुसिए लहराई । आपन राज होखी , धरम करम के बढ़न्ती होई , सभे चैन से कमाई-खाई । केहू कहीं ना जहर खाई भा फंसरी लगाके मुई । केहू कबों भूखले पेट सुतत ना भेंटाई । कुल्हि हाथन के काम मिली , सड़की के किनारे फुटपाथो पर केहू सुतल ना भेंटाई , मने सभके मुंडी पर छाजन । दुवरे मचिया पर बइठल सोचत-सोचत कब आँख लाग गइल, पते ना चलल ।  “कहाँ बानी जी” के पाछे से करकस आवाज आइल,…

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ए बाबू ! सपना सपने रहि जाई

का जमाना आ गयो भाया, अब त उहो परहेज करत देखाये लागल जे रिरियात घूमत रहल। आजु के समय में जब हिंदिये के ओकत दोयम दरजा के हो चुकल बाटे, त अइसन लोगन के का ओकत मानल जाव। हिंदियों वाला लो अपना बेटा-बेटी के अंगरेजी ईस्कूल में पढ़ावल आपन शान बुझता काहें से कि ओहू लोगन के नीमन से बुझा चुकल बा कि हिन्दी से रोजी-रोटी के गराण्टी भेंटाइल मोसकिल बा। हिन्दी के लेके जवन सपना रहे, उ ई रहे कि ई अङ्ग्रेज़ी के स्थान पर काबिज होई। बाकि अइसन…

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