बिलारी के भागे क सिकहर

का जमाना आ गयो भाया,अजबे खुसुर-फुसुर ससर ससर के कान के भीरी आ रहल बा आ कान बा कि अपना के बचावत फिरत बा। एह घरी के खुसुर-फुसुर सुनला पर ओठ चुपे ना रह पावेलन स। ढेर थोर उकेरही लागेलन स। एह घरी के ई उकेरलका कब गर के फांस बन जाई, एह पर एह घरी कुछो कहल मोसकिल बा। रउवा सभे जानते होखब कि इहवाँ जेकर जेकर कतरनी ढेर चलत रहल ह, सभे एह घरी मौन बरती हो गइल बा। अब काहें, ई बाति हमरा से मति पूछीं, खुदही…

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आदत से लचार आ मानसिक बेमार

का जमाना आ गयो भाया,साँच के साँच कहे भा माने में नटई से ना त बोलS फूटता, आ ना त बुद्धिये संग-साथ देत देखात बा। ऐरा-गैरा,नथ्थू-खैरा सभे गियान बघारे में लाग गइल बा।गियान के सोता चहुंओर से फूट-फूट के बहि रहल बा।अजब-गज़ब गियान, न ओर ना छोर बस बहि रहल फ़फा-फ़फा के। मने कतों आ कुछो। लागता कि सगरे जहान के गियानी लोग मय गियान के संगे इहवें कवनों सुनामी में बहत-बिलात आ गइल बा आ ओह लोगन के गियानों में एह घरी सुनामी आ गइल बा। खाली गियाने तक…

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सतुआन के नवकी परिभाषा

का जमाना आ गयो भाया, ओह दिनवा जे भोपू पर नरेटी फार-फार के नरियात रहल, आजु काहें घिघ्घी बन्हा गइल बा। दुका-दुका दोहाई दिया रहल बा।समय के चकरी त चलते रहेले आ चलियो रहल बा। ओह चकरी के चकर-चकर में कई लो चौनिहा गइल बाड़ें।काहें भाय, अब का भइल ?अपना पर परल ह, त दरद होता, दोसरा के बेरा मजा आवेला। अब कापी राइट के संस्था के पता बतावे आ पूछे वाला लोग केने कुंडली मार के बइठल बाड़ें ? बिल के बहरा आईं महराज। का भइल,आजु अपना जात-बिरादर के…

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भुकभुकवा के राग भैरवी

का जमाना आ गयो भाया, लोग-बाग बेगर सोचले-समझले कुछो नाँव राख़ लेत बा आ फेर अपढ़-कुपढ़ लेखा गल थेथरई करे में लाग जात बा।फेर त अइसन-अइसन विद्वान लोग जाम जात बाड़ें कि पुछीं मति। अरथ के अनरथ आ अनरथ के अरथ के घालमेल में असली बतिये बिला जात बिया। अबरी त साँचों में असली मकसदे बिला गइल। रोज नया-नया लोग आवत बाड़ें आ गाल बजा के, राग भैरवी कढ़ा के अपना-अपना खोली में ओलर जात बाड़ें। फेर त ढेर लोग चौपाल सजा-सजा के नून-मरिचा लगा-लगा के परोसे में जीव-जाँगर से…

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अंगार पड़ गइल

का जमाना आ गयो भाया,आजु कल त सभे के सेस में बिसेस बने के लहोक उठ रहल बा। भलही औकात धेलो भर के ना होखे। सुने में आवता कि एगो नई-नई कवयित्री उपरियाइल बानी आ कुछ लोग का हिसाब से उ ढेर नामचीन हो गइल बानी । मुँह पर लेवरन पोत के मुसुकी मारल उहाँ के सोभाव में बाटे। कुछ लोग त उनुका एगो अउर सोभाव बतावेला। कबों रेघरिया के त कबों लोर ढरका के, कबों जात-धरम के पासा फेंक के एगो-दू गो कार्यक्रम में अतिथिओ बनि के जाये लगल…

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दुनिया त गोले नु बा

का जमाना आ गयो भाया, मजबूरी के लोग अपनइत बता रहल बा आ हाल देखि-देखि के थपरी बाजा रहल बा। कवनो मउसम विज्ञानी के रिमोट दोसरा के हाथ में थम्हावत देखल कुछ लोगन के अचरज में डाल रहल बा। ढेर लोग त देखि के चिहा रहल बा। कवनो मुँहफुकवना भिडियो बना के सोसल मीडिया पर डाल देले बा। जहवाँ भिडियो देखिके मउसम विज्ञानी के संघतिया लोग के बकारे नइखे फूटत। उहवें उहाँ के गोतिया लोग चवनिया मुसुकी काटि-काटि के माजा मार रहल बा। एक-दोसरा से भुसुरा-भुसुरा के मउसम विज्ञानी के…

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अहम् के आन्हर सोवारथ में सउनाइल

का जमाना आ गयो भाया, आन्हरन के जनसंख्या में बढ़न्ति त सुरसा लेखा हो रहल बा। लइकइयाँ में सुनले रहनी कि सावन के आन्हर होलें आ आन्हर होते ओहन के कुल्हि हरियरे हरियर लउके लागेला। मने वर्णांधता के सिकार हो जालें सन। बुझता कुछ-कुछ ओइसने अहम् के आन्हरनो के होला।सावन के आन्हर अउर अहम् के आन्हरन में एगो लमहर अंतर होला। अहम् के आन्हरन के खाली अपने सूझेला, आपन छोड़ि कुछ अउर ना सूझेला। ई बूझीं कि अहम् के आन्हर अगर सोवारथ में सउनाइल होखे त ओकर हाल ढेर बाउर…

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पिनकू जोग धरिहन राज करीहन

बंगड़ गुरू अपने बंगड़ई खातिर मय टोला-मोहल्ला में बदनाम हउवन।किताब-ओताब क पढ़ाई से ओनकर साँप-छुछुनर वाला बैर ह।नान्हें से पढ़े में कम , बस्ता फेंक के कपार फोड़े में उनकर ढ़ेर मन लगे।बवाल बतियावे में केहू उनकर दांज ना मिला पावे।घर-परिवार अड़ोसी-पड़ोसी सब उनके समझा-बुझा,गरीयाय के थक गयल बाकिर ऊ बैल-बुद्दि क शुद्धि करे क कवनों उपाय ना कइलन।केहुतरे खींचतान के दसवीं ले पढ़लन बाकिर टोला- मुहल्ला के लइकन के अइसन ग्यान बाँटें कि लइका कुल ग्यान के ,दिमाग के चोरबक्सा में लुकवाय के धय आवें अउर तब्बे बहरे निकालें…

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लड़की बुटीफुल्ल कर गइल चुल्ल

बंगड़ गुरु के पड़ोस में एक जाना क बियाह रहल। लाउडस्पीकर पुरजोर लाउड रहल। सबेरहीं से एक्के गनवा कई बेर बजावल जात रहल, ’लड़की ब्यूटीफूल कर गयी चुल्ल…।’ सुनत -सुनत कपार दुखा गईल त बंगड़ खुनुस से फफात- उधियात पड़ोसी के घर में धावा बोललन। ’केकर काल आ गयल ह कि हेतना जोर -जोर से लउडस्पीकर बजावत ह …आंय ?’ क्रोधन बंगड़ काँपत रहलन। ’’सादी-बियाह क घर ह त गाना -बजाना ना होई का ?…तोहरे भाग में त इकुल सुख देखे के लिखले ना ह। दुआरे तिलकहरू चढ़बे ना करीहन…

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आन्हर गुरु, बहिर चेला

समय लोगन का संगे साँप-सीढ़ी के खेल हर काल-खंड में खेलले बा,अजुवो खेल रहल बा। चाल-चरित्र-चेहरा के बात करे वाला लो होखें भा सेकुलर भा खाली एक के हक-हूकूक मार के दोसरा के तोस देवे वाला लो होखे,समय के चकरी के दूनों पाट का बीचे फंसिये जाला। एहमें कुछो अलगा नइखे। कुरसी मनई के आँखि पर मोटगर परदा टाँग देले, बोल आ चाल दूनों बदल देले। नाही त जेकरा लगे ठीक-ठाक मनई उनुका कुरसी रहते ना चहुंप पावेला, कुरसी जाते खीस निपोरले उहे दुअरे-दुअरे सभे से मिले ला डोलत देखा…

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