हमार बड़का बाबूजी

दूबर पातर सरीर, लमाई छव फुट से कम न रहल होई,समय के पाबंद, साइकिल के सवारी क के कबों-कबों ईस्कूल मने किसान उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, सैदूपुर तक के जतरा, अक्सरहाँ त पैदले चलत रहने । सोभाव के तनि कड़क, पढ़ाई के लेके हरदम जागल रहे वाला मनई रहलें हमार बड़का बाबूजी मने श्री रामदास द्विवेदी बाबूजी। उनुका पढ़ावत बेरा सुई के गिरलो के अवाज सुना जात रहे। कबों कवनों लइका आपुस में बात करे के कोसिस करसु त सोवागत खड़िया (चाक) भा डस्टरे से होत रहे। बाक़िर पढ़े वाला लइकन…

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अब कहाँ ऊ फगुआ-बसंत!

जनम कानपुर में भइल बाकिर लइकायी के दिन गाँवें में बीतल। लमहर परिवार रहे। दूगो तीन गो फुआ लोग के ससुरा  जाए खातिर दिन धरा त दू तीन जनी के बोलावे खातिर। त हम लइका लोग के ठीक ठाक फ़ौज रहे। घर में जेतना लोग बहरा नोकरी करत रहे ओकर परिवार ढेर घरहीं रहत रहे। पिताजी कानपुर आर्डिनेंस फैक्ट्ररी में नोकरी करत रहनीं आ हमनीं के गाँव में। ढेर दिन हो जा त मामा जी मम्मी के बिदा करा ले जायीं। तब साल दू साल मामा जी की घरे बीते।…

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ठकुरान के ठसक

विंध्य के पहाड़ियन के घाटी में बसल गाँव आ उहाँ के रहनिहारन के एगो अलगे सुघरई होले। पहुनई में त करेजा काढ़ि के रख देला लो, बाकि मोछ के बात आ गइल बेखौफ आर-पार करे खातिर उतर जाला लो। खेती- किसानी आ गोरू-बछरू से नेह छोह राखे वाला लो अपनइत नीमन से निबाहेला। अइसने एगो गाँव के बाति जवना गाँव में ढेर बाभन लोग रहे। ओह गाँव में अउरो जात धरम के लोग रहे बाकि एगो खास बात उ ई कि ओह गाँव में एगो राजपूत परिवारो बसल रहे। धन…

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मय सिवान के चोली-चूनर धानी लेके

ए. बी.हॉस्टल, कमच्छा, वाराणसी में रहत समय अकसरहां सांझ के कवनो ना कवनो टॉपिक प चरचा छिड़िए जात रहे। सारंग भाई (स्व. सुरेंद्र कुमार सारंग) एह चरचा के सूत्रधार होत रहलें। एही तरे एक दिन चरचा होये लागल भोजपुरी के कवि जगदीश पंथी के एगो गीत प। ऊ गीत रहे- ‘रुनुक झुनुक बाजे पायल तोहरे पंउवा/ बड़ा नीक लागे ननद तोहरे गंउवा।’ सारंग भाई ऊ गीत सुनवलें आ ओकर तारीफ कइलें। सारंग खुद बढ़िया गीत लिखत रहलें। जगदीश पंथी के नांव पहिल बेर हम ओहिजे सुनलें रहीं। गीत में गांव…

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हमार रामभंजन बाबा

बात हमहन से छ पीढ़ी पहिले के ह। बरहुआं के कश्यप गोत्रीय दुबे लोगन के परिवार में दुर्गानन्द दुबे के तीन गो सुपुत्र भइल रहलें। जवना में सभेले बड़ रामभंजन बाबा रहलें। उहाँ से दूनों छोट भाई राम सहाय दुबे आ हंसराज दुबे रहल लोग। तीनों भाई एकदम सोझबग, मयगर आ साधु लेखा सोभाव के रहल। तीनों भाई लोग के लइकई बहुत नीमन से बीतल। तीनों भाई लोग बड़ भइलन। रामभंजन बाबा आ उनुके एगो छोट भाई हंसराज बाबा के बियाहो-दान समय से हो गइल। तीसरका भाई के बियाह ना…

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काम

एकबेरा फिर से सोच ल रामसिंगार, काहेकि तू हउअ बाबू साहब ..तोहार बेटा बैंक में पार्ट टाइम काम कर ना सकी .. ग्राहक लोग के चाह- पानी पियावे के पड़ी । अउर भी छोट-मोट काम कुल करेके पड़ी साहब लोग से डाँट भी सुनेके पड़ी । बाबू बिनोदवा ई कुल काम करी ओकरा गांव से बाहर लिया जाईं डहेण्डल बनल फिरता ..हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाए लगले रामसिंगार .. साहब के आगा । साहब के मन पसीज गईल, नया-नया बैंक में नौकरी भईल रहे . पार्ट टाइम ‘वाटर ब्वाय’ राखेके पावर मिलल…

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जमुऑंव के संत निराला बाबा

जमुऑंव गाँव (थाना- पीरो, जिला- भोजपुर) के लोग बहुते धारमिक  सोभाव के ह। जब से हम होस सम्हरले बानी तबे से देखतानी कि एह गाँव में पूजा-पाठ, हरकीरतन आ जग उग के आयोजन लगातार होत आ रहल बा। एह गाँव में साधुजी लोगन के बड़ा बढ़िऑं जमावड़ा भी होखत रहेला। मंदिर आ देवस्थानन से त गाँव भरल परल बा। कालीमाई, बड़की मठिया, छोटकी मठिया, संकरजी, जगसाला, सुरुज मंदिर, सतीदाई, बर्हम बाबा, उमेदी बाबा, गोरेया बाबा, पहाड़ी बाबा–। बात 1975 – 76 के आसपास के होई। बड़का पोखरा से पचीस-तीस डेग…

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अवघड़ आउर एगो रात

रहल होई १९८६-१९८७ के साल , जब हमारा के एगो अइसन घटना से दु –चार होखे के परल , जवना के बारे बतावल चाहे सुनवला भर से कूल्हि रोयाँ भर भरा उठेला । मन आउर दिमाग दुनों अचकचा जाला । आँखी के समने सलीमा के रील मातिन कुल्हि चीजु घुम जाला । इहों बुझे मे कि सांचहुं अइसन कुछो भइल रहे , कि खाली एगो कवनों सपना भर रहे । दिमाग पर ज़ोर डाले के परेला । लेकिन उ घटना खाली सपने रहत नु त आजु ले हमरा के ना…

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बुढ़िया माई

१९७९ – १९८० के साल रहल होई , जब बुढ़िया माई आपन भरल पुरल परिवार छोड़ के सरग सिधार गइनी । एगो लमहर इयादन के फेहरिस्त अपने पीछे छोड़ गइनी , जवना के अगर केहु कबों पलटे लागी त ओही मे भुला जाई । साचों मे बुढ़िया माई सनेह, तियाग आउर सतीत्व के अइसन मूरत रहनी , जेकर लेखा ओघरी गाँव जवार मे केहु दोसर ना रहुए । जात धरम से परे उ दया के साक्षात देवी रहनी । सबका खाति उनका मन मे सनेह रहे , आउर छोट बच्चन…

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मई में माई चल गइल

“डभकेला मन के सपन, माई पसवे लोर । आस सेराइल जा रहल दुख के ओर न छोर।।”(सुकुपा)   ‘मातृदिवस’ के  छव दिन पहिलहीं एह साल  3 मई के माई विदा ले लिहलस।जब से एह दिवस विशेष के प्रचलन भारतो में खूब बढ़ गइल , माई के फोटो हम  फेसबुक पर डालल शुरु कर दिहनीं ।एह मौका पर हम माई से जब कहीं कि “फलनवा तोरा के परनाम लिखले बाड़ें” तब  ऊ कहे कि “तूहूं हमरा ओरी से आसीरबाद लिख दs।सब बाबू आ बबुनी लोग हंसी-खुसी  से रहो,सभे फलल-फुलाइल रहो।” अबकी…

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