चईत महीनवा के सुभ सुदिनवा मंगल बाजेला बधईया हो रामा.. चईत महीनवा.. फुलवा खिलखिल झरले अँचरवा में , सूरुज हँसेले ठठाइके हो रामा.. चईत महीनवा.. कमल खिलाके हँसेले पोखरवा में पुरईन सजेली मोती मालवा होरामा .. चईत महीनवा..! अमवा के डलिया में छोट-छिन टिकोरवा , कोईली बोलेली टहकारवा हो रामा.. चईत महीनवा.. कटहर हुलसेला देखिके बलकवा बिधना हमर भरे गोदिया हो रामा.. चैईत महीनवा सोनवा से लउकेला गेहुँआ के डरिया जड़ल बाटे मोतिया से देहिया होरामा.. चईत महीनवा गीतवा गाई-गाई झूम-झूम नाचेला, आजु हम भईनी लछमिनिया हो रामा.. चईत महीनवा…
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धरती पर उतरल बिहान
बोलल चिरइया मड़इया का उपराँ सुनि सुनि उठलें किसान देखीं धीरे धीरे- धरती पर उतरल बिहान। पुरुवा पवनवाँ पोर पोर भीने बछरू बन्हल डिंड़िआय चमकत चनवाँ कहवाँ लुकइलें गइलीं तरइयो हेराय। मठ मन्दिर से भजनियाँ सुनाले रेडियो में जोर से अजान देखीं धीरे धीरे – धरती पर उतरल बिहान। बसिया परल रातरानी के महकिया पनघट के जल जोहे बाट पोखरा के भीटा बतिआवे डहरिया से हँसे लगे नदिया के घाट। हेंईं हेंईं धोवेला धोबिनियाँ के सजना साफ साफ लउके सिवान देखीं धीरे धीरे- धरती पर उतरल बिहान। सोनवाँ का पलकी…
Read Moreगजल
जिनिगी के जख्म, पीर, जमाना के घात बा हमरा गजल में आज के दुनिया के बात बा कउअन के काँव-काँव बगइचा में भर गइल कोइल के कूक ना कबो कतहीं सुनात बा अर्थी के साथ बाज रहल धुन बिआह के अब एह अनेति पर केहू कहँवाँ सिहात बा भूखे टटात आदमी का आँख के जबान केहू से आज कहँवाँ, ए यारे, पढ़ात बा संवेदना के लाश प कुर्सी के गोड़ बा मालूम ना, ई लोग का कइसे सहात बा ‘भावुक’ ना बा हुनर कि लिखीं…
Read Moreराजनीति कै इहै पहाड़ा
बता के पड़िया बांटा पाड़ा राजनीति कै इहै पहाड़ा जनता खातिर थूकल बीया अपने सोगहग भखा छोहाड़ा। बिना कमीशन बने न कुच्छौ शौचालय गऊशाला एकौ तन गयल आपन तल्ला तल्ला कोई बितावै नंगे जाड़ा। पईसा कहाँ गयल सरकारी के घुमत हव बईठ सफारी राजतन्त्र भी लज्जित बाटै बाजत दुअरे देख नगाड़ा। ब्लाक बीडीओ अउर सेकेटरी परधाने संग काटैं गठरी ठठरी लउकत लोकतंत्र कै बिन बोकला जस लगै सिंघाड़ा। मुँह में राम बगल छुरी लेके वोट बनावा दूरी का करबा अब हाल जान के जान पड़त अस मरलस माड़ा। बड़हन कुरता…
Read Moreमन के बात
बाति कहीं कि ना कहीं बाति मन क कहीं मन से कहीं क़हत रहीं सुनवइया भेंटाई का? उमेद राखीं भेंटाइयो सकेला कुछ लोगन के भेंटाइलो बा कुछ लोग अबो ले जोहते बा, त बा सुनवइया मन से बा मन के बा जोगाड़ल बा बिचार करे के होखे त करीं के रोकले बा रोकल संभवे नइखे लोकतंत्र नु हवे। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreमहेंदर मिसिर उपन्यास के बहाने उहाँ के व्यक्तिव पर एगो विमर्श
आगु बढ़े से पहिले कुछ महेंदर मिसिर के बारे में जान लीहल जरूरी बुझाता – महेंद्र मिसिर के जनम 16 मार्च 1888, काहीं-मिश्रवालिया, सारण, बिहार आ उहाँ के निधन 26 अक्टूबर 1946 । उहाँ विद्यालयी शिक्षा ना हासिल होखला का बादो संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, भोजपुरी , बांग्ला,अवधी, आ ब्रजभाषा के विशद गियान रहे। चबात रहीं। महेन्दर मिसिर के पत्नी के नाम परेखा देवी रहे। परेखा जी कुरूप रहली। त कादों एही का चलते गीत-संगीत में अपने मन के भाव उतरले बाड़ें महेन्दर मिसिर। महेंदर मिसिर के एकलौता बेटा…
Read Moreमसाने में
शिव भोले हो नाथ, शिव भोले हो नाथ चलि अवता दिल्ली मसाने में। अवता त देखता दिल्ली के हालत दिल्ली के हालत हो दिल्ली के हालत सभे जूटल दारू पचाने में । शिव भोले हो……. अवता त देखता नेतन के हालत नेतन के हालत हो नेतन के हालत सभे जूटल ई डी से जान बचाने में । शिव भोले हो……. अवता त देखता पपुआ के हालत पपुआ के हालत हो पपुआ के हालत देखS जूटल, देस क इजत भसाने में । शिव भोले हो……. अवता त…
Read Moreगीत
महुआ मन महँकावे, पपीहा गीत सुनावे, भौंरा रोजो आवे लागल अंगनवा में। कवन टोना कइलू अपना नयनवा से।। पुरुवा गावे लाचारी, चिहुके अमवा के बारी, बेरा बढ़-बढ़ के बोले, मन एने-ओने डोले, सिहरे सगरो सिवनवा शरमवा से।। अचके बढ़ जाला चाल, सपना सजेला बेहाल, सभे करे अब ठिठोली, कोइलर बोले ले कुबोली, हियरा हरषे ला जइसे फगुनवा में।। खाली चाहीं ना सिंगार, साथे चाहीं संस्कार, प्रेम पूजा के थाल, बाकी सब माया-जाल, लोग कहे चाहें कुछू जहनवा में।। – केशव मोहन पाण्डेय
Read Moreकईसन होला गाँव ?
हम त भूलाइये गइनी कईसन होला केहूँ गाँव जब से पसरल शहर में गड्ढा में गईलन सगरे गाँव न दिखेला पाकुड़ के पेड़ न चबूतरा, न खेत के मेड़ न बाहर लागल ईया के खाट न रौनक बचल मंगलवारी हाट न अब लईकन के कोई खेल बचपन ले गइल मोबाइल के रेल न गुल्ली, न डंडा, न पिट्ठों, न गोटी गाँव गईलन शहर में खोजत रोटी कईसे बाची बाग-बगीचा फुलवारी रखे के तनी सलीका हाय-हेलो में मरल त जाला गोड़ लागे के सब तौर-तरीक़ा कईसे न…
Read Moreअब कहाँ ऊ फगुआ-बसंत!
जनम कानपुर में भइल बाकिर लइकायी के दिन गाँवें में बीतल। लमहर परिवार रहे। दूगो तीन गो फुआ लोग के ससुरा जाए खातिर दिन धरा त दू तीन जनी के बोलावे खातिर। त हम लइका लोग के ठीक ठाक फ़ौज रहे। घर में जेतना लोग बहरा नोकरी करत रहे ओकर परिवार ढेर घरहीं रहत रहे। पिताजी कानपुर आर्डिनेंस फैक्ट्ररी में नोकरी करत रहनीं आ हमनीं के गाँव में। ढेर दिन हो जा त मामा जी मम्मी के बिदा करा ले जायीं। तब साल दू साल मामा जी की घरे बीते।…
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