ओढ़ि बसंती चुनरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। गम गम गमके नगरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —– फिकिर कहाँ फागुनी रंग के बनल बनावल अंग अंग के देखत झूमत डगरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —– चढ़ल खुमार इहाँ अनंग के दरस परस आ साथ संग के मातल बहलीं बयरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —– सहज सुनावत सभ ढंग के होरी में कब भइल तंग के बहके लागल नजरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read MoreDay: March 14, 2024
धक् से लागल बात बावरी’: लोकजीवन में गहिराहे धंसल कविताई
‘धक् से लागल बात बावरी’ भोजपुरी के चर्चित कवि-गीतकार आ ‘भोजपुरी साहित्य सरिता’ मासिक पत्रिका के संपादक जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के कुल जमा पैंसठ गो कविता अवरू गीत के संकलन ह जेकर प्रकाशन सन् २०२२ में सर्व भाषा ट्रस्ट, नयी दिल्ली से भइल रहे । एह संकलन में छंदबद्ध आ मुक्तछंद दूनों के हुनर देखल जा सकेला । एह संकलन के मए कविता आ गीतन से गुजरला प ई महसूसल जा सकेला कि एह सब में गंवई लोक जीवन के गाढ़ आ चटक रंग पसरल बा । कवि के कविता…
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