सावन के महिना घेरले बदरिया
बरसेला पनिया बीच रे आँगन में
केहसे संदेसा भेजी केहु नइखे दुआरा
पियउ भींजत होंइहे बीच पाँतर मे।
आदारा ना हवे इहो हवे इहो हथिया
बड़े बड़े बुनी पड़े धरकेला छतिया
चमके बिजुरिया दूर गगन में
पियउ भींजत होंइहे बीच पाँतर में।
लगे तनी रहतें त पूछ लेले रहतीं
संझिया के हमहूँ निक-नोहर बनवतीं
केहु नाही लउके दूर डगर में
पियउ भींजत होंइहे बीच पाँतर में
भींजतिया चिरई भींजतिया गइया
दुअरा के छान पर बइठल गौरईया
हमरा ना निक लागे अइसन महल में
पियउ भींजत होंइहे बीच पाँतर में।
अब ना करेला मन दरे के दरिया
आँगना दुआर करि फरकेला अँखिया
बनवा के कथा काहे सोंचिले मन में
पियउ भींजत होंइहे बीच पाँतर में।
- जीवन सिंह