- सरस्वती वंदना
शारदा भवानी दीप ज्ञान के जराई दऽ
मन के दूआर से अन्हरिया भगाई दऽ
गने गने मने मने बुद्धि आ विवेक दऽ
धरम अनेक भले भाव सब के एक दऽ
दूध पानी जस देशवासी रहें मिलि के
एकता के पाठ लोगे लोग के पढ़ाई दऽ
घावे घाव कइले बाते दुखवा दुधारी
बितली उमिरिया विपत के दुआरी
सोना पानी तबो माई दोसरा के भरिहऽ
हमरा ला नेह के सितारवा बजाई दऽ
धन से धनिक लोग मनवा से छोट हो
देशवा के लुटतारे हियवा से खोट हो
धनवा के धाह से बचाई हऽ मइया शारदे
हमरा के निक एगो आदमी बनाई दऽ
मइया भवानी तू ही , तू ही भारत भारती
सुरुज चनरमा उतारे, तोहरी आरती
दुनिया जहाँ में महान देश हिंद हऽ
सबका हिया में भाव इहे तू जगाई दऽ
2. साँच के सोर
माटी माटी खेलऽ भइया सज्जी दुनिया माटी हऽ
आदमी के जिनिगी बस बुझऽ घास फूस के टाटी हऽ
राजमहल में बाटे जे उ अउरी बा हउआइल
घीव दूध में दुबकी लेके छने छने अगराइल
बा जेकरा संतोख हिया में, ओकरा ला कुल छांटी हऽ
कहाँ रहल बा केकरो गुमान जे तोहर रह पाई
माटी के ई देहिया एक दिन माटी में मिल जाई
जरी जाई धू धू करी के , जईसे पुअरा के आंटी हऽ
अजगुत बा माटी के महिमा जनम मरण के साथी
दू मुठ्ठी मटिए ही होला , आखिर बेर के संघाती
ना बुझल जे मरम ई जग , उनका ला कांटा काँटी हऽ
साँच हवे की पियर पतई गछिया से झरी जाई
चिरई उडी जाई खोता से केहू थाह ना पाई
तब लागी दउनिय कुछुओ ना एगो सुनी घाटी हऽ
नापे में अझुराइल बाड़ऽ दउलत के उंचाई
साँस के डोरी टूटी जहिया साथे किछु ना जाई
बाबा कबीर के बतीया, गुनब तऽ लागी खांटी हऽ
3. आसरा के दियारी
आधी आधी रतिया के अइतऽ
नेहिया के दियरी जरइतऽ
दुखवा हमार पतीअइतऽ हो , मीतवा हमार हो ………
मनवा हमार बसे तोहरी चरन में
हमरा के राखऽ पिया हिया के सरन में
छानी नेह छोह के छवइतऽ, अंखिया में हमके बसइतऽ
टूटल सपनवा सजइतऽ हो , मीतवा हमार हो ………
रहिया निहारते में आँख पथराइल
तोहरे ईयादे मोरा मन अझुराइल
तोख तनी आई के बन्हइत ऽ
हियवा के अगिया बुझइतऽ
अझुरइल मन सुझुरइत ऽ हो ..मीतवा हमार हो ………
लोर के सियाही से लिखत बानी पतिया
रोई गाई दिन काटीं कटे नाहीं रतिया
पाती पढ़ी टिकट कटइ तऽ घरवा के राहे सोझीअइत ऽ
अचके अंगनवा में अइतऽ हो ..मीतवा हमार हो ………
बिरहा के रसरी में केतना बन्हाई
फंसरी लगा के मन करे मरी जाई
आके तनी हमके बचइतऽ हो मितवा हमार हो
जीये भर हमके जीयइतऽ हो मितवा हमार हो
कागवो थकल बाटे सगुन उचारत
हम हारी आसरा के दियरी के बारत
भोर होते आके मूसकइतऽ आँखी होके हिया में समइतऽ
सुखल बिरिछ हरिअइतऽ हो मितवा हमार हो
4.सरधा
मन के मान सरोवर में सरधा के कमल खिलाई ना
हिया हिमालय जइसन, देहिया के कैलाश बनाई ना
कहाँ भेंटाला कस्तूरी जंगले जंगले घुमला से
कहाँ भेंटालें देव भला कवनो देवल ढुंढला से
नीमन बा अपने हियवा के पावन धामे बनाई ना
सोन किरिनिया बनके मडई के जंगला से झांकी
भोरहरिया के झिहिर झिहिर पुरवैया अइसन माकी
फगुनी चान चानी जइसन मीठ मीठ मुस्काई ना
काहे दूँ एक दोसरा से सबकर मन पीराइल बा
आस उमिदिया के ओसारा टूटल छितराइल बा
नेहिया के खरई से टूटल छप्पर छान छवाई ना
कहीं अंजोरिया गहगह पाके अंगना आगराइल
ओस के चादर ओढले चनवा चुपके से आ जाला
अंखिया के मउनी में दू, सुखबोरल घरी लुकाई ना
हंस बनी दुधवा के पी आ पानी के अलगा दीं
बांटे के होखे दुःख:, बांटी सुख के दीया जरा दीं
तनिका तनिका जिले सभे, अइसन आस जगाई ना
5. सनक
सोलह बरिस हवे, जादू आ टोना
तन होला चानी चानी मन होला सोना
हियवा के हलचल नजरिये बता दी
नजरिया के छलबल पुतरिये बता दी
नैना के मैना फुदुक फुदुक जाला
रसरी के फंसरी में कहाँ उ बन्हाला
बड़ा उत्पाती ह ई कांची उमिरिया
उमिरिया के उमकल चुनरिये बता दी
बिरहा के आग काहे देहिया जरावे
पानी के धाह काहे पसेना चुआवे
सवांचल बेकार बा ई पपीहा से जाके
सवनवा के सनकल बिजुरिये बता दी
बिछिया के भाग देखीं चूमे पांव गोरी के
झुमका झुलेला झूमी रहेला अगोरी के
पायल के रुनझुन देखी चुरिया के छनछन
कंगनवा के खनकल सेजरिये बता दी
कजरा नयनवा के लाली अधर के
ताके निहारेला जे, जीए मर मर के
बस में रहे ना काहे लालसा के डोरी
करेजा के धडकल संसरिये बता दी
गरमी बेसरमी त बड़ा मुंहजोर हऽ
पूस महिना छली कपटी आ चोर हऽ
माघ में न केहू काहे रहेला अकेले
जड़वा के कनकल गुदरिये बता दी
6. आखिर केतना
हंसी हंसी कबले केतना बात सही हमनी
दुनिया के एकतरफा घाट सही हमनी
सहकल बहकल लोगवा के बा सह पर सह
आखिर कबलें केतना मात सहीं हमनी
कूड़ा करकट उडि के आँख पीरावत बा
बेसुरन के गीत ग़ज़ल भरमावत बा
गंगा जल पर नामे कहें लिखाइल ना
कबले नाली के आघात सहीं हमनी
सहलो के एगो लछुमन रेखा होला
नीमन बनल रहे के कुछ लेखा होला
ठीक हवे की बरियारे के दोष ना ह
अब उनकर केतना उत्पात सही हमनी
धोका के रोटी जे बांटे दानी बा
छली के दुनु हाथे सोना चानी बा
सुख के फूटल कउडी ना हमरा पाले
कहिया ले करिखाही रत सही हमनी
सभे कहे हमरे के धीरज मत छोड़ ऽ
आपन धीर धरम के धरा मत मोड़ ऽ
लह लहर त ऽ समय के हम सहते बानी
विपत के केतना बरसात सही हमनी
7. ‘तीत मीठ’
केहू से हम तीत मीठ बतियाई काहे
बिना कान से सुनले पतियाई काहे
झूठ साँच के खेल हवे आगी जइसन
बेमतलब के आपन हाथ जराई काहे
के, बा जे नीमन चाहेला दोसरा के
अनका कहले केहू से अझुराई काहे
मदद करे के बेरिया कुछुउ सोचनी ना
लउटा दिही, बा सबुर , छतियाई काहे
लउकत बा की बईमानी के धन बा आगू
रसबे न जब करी त उ हथियाई काहे
जे हमरा निमना बउरा में साथे बा
हम उनकर एहसन भला बीसराई काहे
बात ठीक, ना सकली दू दिल जोरे में
बूता न पवनी त, झगरा सुनगाई काहे
- डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना