समइये गुरु ह समइये ह चेला
समझ नाहीं आवे समइया के खेला ।
लहर जाला झंडा केहु के अकासे
केहु हाथ मल के रहेला उदासे
समइये घुमावेला सुख दुख के मेला
समझ नाहीं आवे समइया के खेला ।
बिना मंगले देबेला बड़का खजाना
मंगला पर मिले न चाउर के दाना
कहां केहु के कुछो वश में रहेला
समझ नाहीं आवे समइया के खेला ।
आदमी के कुक्कुर नियन दुरदुरावे
समइये ह कुक्कुर के आदमी बनावे
समय पर समइये परीक्षा भी लेला
समझ नाहीं आवे समइया के खेला ।
करम आ धरम इहवां सबही निभावे
संपरेला जेतना सब जुगुति लगावे
पर असल फैसला त समइये करेला
समझ नाहीं आवे समइया के खेला ।
- रत्नेश चंचल
भभुआ
बहुते उम्दा रचना