वारि जाऊँ ए सखी

वारि जाऊँ ए सखी,2 हो बबुअवा निरखि

वारि जाऊँ ए सखी॥

 

सुघर-सुघर हाथ-गोड़, सुघर नयनवाँ

सुनि लागै बोलिया, बोलत मयनवाँ

अचके मुसुकी परखि, वारि जाऊँ ए सखी।

हो बबुअवा निरखि, वारि जाऊँ ए सखी॥

 

बिहँसेला बाबू, झलके दंतुलिया

बेर-बेर मुँहवा,  डारत अंगुलिया

कबों धऊरे लपकि, वारि जाऊँ ए सखी।

हो बबुअवा निरखि, वारि जाऊँ ए सखी॥

 

कबों चले घुसुकी आ कबहुँ बकइयाँ

अँगुरी पकड़ि के चलत पइयाँ-पइयाँ

कबों पउवाँ थिरकि, वारि जाऊँ ए सखी।

हो बबुअवा निरखि, वारि जाऊँ ए सखी॥

 

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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