गायब पूष भयल बा भयवा,
जइसे माघ….हेराय गयल।
बहै ला पछुआ आन्ही जइसन,
लगै कि फागुन आय गयल।।
कइसो कइसो गोहूं बोवलीं,
किल्लत झेललीं डाई कै,
करत दवाई थकि हम गइलीं,
खोखी रुकल न माई कै,
मालकिन जी कै नैका छागल,
कल्हिऐ कहूं हेराय गयल।
बहैला पछुआ आन्ही जइसन,
लगै कि फागुन आय गयल।।
झंड भइल बा खेतीबारी,
पसरल धान दुआरे पे,
लेबी, बनियां केहु न पूछै,
न्योता चढल कपारे पे,
खरचा अपरम्पार देखि के ,
हरियर ओद झुराय गयल।
बहैला पछुआ आन्ही जइसन,
लगै कि फागुन आय गयल।।
जाड़ा में गर्मी ना हउवे,
धइल रजाई तरसति बा,
टेढ़ मेंढ़ डीभी जामति हौ,
दिन में लुत्ती बरसति बा,
महंगाई कै मार देखि के,
सपना ‘लाल’ तराय गयल।
बहैला पछुआ आन्ही जइसन,
लगै कि फागुन आय गयल।।
रचना-लालबहादुर चौरसिया ‘लाल’
आजमगढ़, 9452088890