मंतोरना फुआ

बुचिया के छुट्टी ना मिलल एहि से मंतोरना फुआ के अकेले जाए के पड़ल।एसे पहिले जब कहीँ जायेके होखे त केहू न केहू उनके संगे रहे।एदा पारी फुआ एकदम अकेले रहलीं बाकी गांवें जाये क एतना खुसी रहे कि उनके तनिको चिंता न रहे।
आराम से गोड़ फइलवले पूरा सीट छेंकले रहलीं।
“दादी जरा साइड होइए…।” फुआ देखलीं एगो बीस-बाइस साल क लइका उनके सामने खड़ा ह।
“ना ई हमार सीट ह।हई देखा टिकस…बुचिया कहले रहलीं कि जबले टेशन ना आई तबले सीट छोरीह जीन।”
“हाँ,लेकिन बीच वाली बर्थ मेरी है तो यहीं बैठूंगा न कहाँ जाऊँगा?”
“हम का जानी कहाँ जइबा..बाकी हम इहवां से हिल्लब ना।” फुआ एकदमे अड़ गइलीं त लइका ऊपर वाली सीट प जाके बइठ गइल।
“थोड़ा खिसकिये बैठने दीजिये।”ऐसे पहिले कि फुआ कुछ बोलं एक जनी आके लदद् से उनके गोड़ पर ढह गइलीं।
“अरे माई रे तोरलू हमार गोड़ ले बितलू…च्..च्..च्।”फुआ गोड़ सुहरावत ,मन ही मन गरिआवत रहलीं कि मोबाइल क घंटी बाजे लगल।उठवलीं त ओहर से बुचिया पूछत रहलीं कि का हाल बा।फुआ कहरत-कहरत कहे लगलीं-
“एक त अदिमि आके दूसरे के सीट कब्जिया लेवेलन अउर गोड़ओ तोड़ देवेलन बुचिया।केहू के एतनो ना मोट होवे के चाही कि हवा-बतास छेंका जाय।” बुचिया फुआ के दस मिनट ले समझवली तब जाके फुआ चुपचाप खिड़की ओरी मुँह कइके बईठलीं।
“मम्मी-मम्मी कुरकुरे खरीद दो न प्लीज।”
“नहीं।चुप मारके बैठो।नुकसान करता है न..।” फुआ के बगल में बइठल मम्मी लइका के जिद कइले प पहिले त समझावे-बुझावे क कोसिस कइलीं बाकी जब ना मानल त मारे लगलीं।
“अरे मोटको सोना नियन लइका के मारत हउ।तोहार हाथ टूट जाइ..कोढ़ी हो जइबू।अपने खा-खा के हथिनी भइल बा हत्यारिन और लइका के सुतरी मतीन क घल्ले बा।आवा बाबू ..हमरे लग्गे आवा।का खइबा हमार लाल।” फुआ बोलावत रह गइलीं बाकी लइका माई के डरे पंजरियायल ना।लइका क माई अउर फुआ में तब तक झगरा भयल जब तक कि लइका क माई माने मोटको क स्टेशन ना आ गइल।जात-जात ऊ फुआ के गरिआवत गइलीं-” बुढ़िया नरक में जाओगी..देख लेना कोई पानी को नहीं पूछेगा।”
“जो-जो आपन देख..ढ़ोला परी तोके।जम क दूत कच्चे चबाई जइहन स।”
मोटको के रहले झगरा जरूर रहल बाकी फुआ के मनसायनों रहल।कुछ देर चुपचाप बैठलिं फिर ठेकुआ निकाल पानी पियल चहलीं त पता लगल बोतल क ढक्कन खुल गइले से कुल पानी गिर गइल रहे।
पानी खातिर सबकर निहोरा कइलीं बाकी केहू पानी लियावे खातिर तइयार ना भयल।उनकर कंठ सुखा गयल।लागल खाँसी आवे त पानी क बोतल उनके सामने कइले उहे लइकवा ठाढ़ रहे जउने के भगवले रहलीं।पानी पी के फुआ क आत्मा जुड़ा गइल।
“आवा बइठ बचवा…कहाँ घर पड़ेला तोहार।”
“कानपुर।”
“ई कनवा में का खोंसले हउआ?”
“इयरफोन..गाना सुनते हैं..।”
“भजन क कि फिलिम क।”
“सब।”
“हमरो नाती कुल दिनवा भर तोहरही नियन कनवा में खोंसले घुम्मत रहेलन स।
“कहाँ जात हउआ?”
“दिल्ली।”
“का करे?”
” इंटरव्यू देने”
“बियाह भयल ह तोहार?”
“नहीं ,लिव इन में रहता हूँ।”लइका अब पूरा मज़ाक के मूड में आ गइल रहे।
“माने।”
“बिना शादी के साथ रहते हैं।”
“अरे दीनानाथ! त रखनी रखले बाड़ा..।”फुआ आँख-फाड़ लइका ओरी निरखे लगलीं।लइका ठठा के हँसत रहे।
“कवने जात क हउआ?”
” श्रीवास्तव ।”
“लाला हउआ तू त। हमरे गाँवे तोहरे लायक एक जनी क लइकी बियाह जोग बाटे।कहा त बात चलायीं।”
” बिलकुल।नेकी और पूछ-पूछ।”
“रखनिया के छोर देबा न?”
“हाँ।पक्का..श्योर-श्योर।”
इतने में फुआ क स्टेशन आ गइल।लइका जिनकर बियाह क जिम्मा ले ले रहलीं उनकर झोरा ले- ले उनके सकुसल स्टेशन पर उतार दिहलस।नमस्ते क के जब ऊ चले लगलन त सौ क नोट उनके मुट्ठी में फुआ थमावे लगलीं ।
“नहीं-नहीं यह सब नहीं..मैं पैसा नहीं लूँगा।”
“हमार प्रान सुखात रहे ओह घरी तू हमके तरला..ए बचवा हमरे नाती नियन हउआ..मना जिन कर।”
फुआ आँस पोछत चलल जात रहलीं ,अउर अपने सीट पर वापिस आके लइका सौ क नोट निहारत उदास बइठ गइल ….
  • डॉ सुमन सिंह

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