मोहनदास करमचंद गाँधी के महात्मा के उपाधि तबे मिलल जब उ बिहार के धरती पर आपन गोड़ धरले। राजकुमार शुकुल से जिद से गाँधी जी चम्पारण अइले। गाँधी जी 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में भाग लेवे आइल रहीं। एही अधिवेशन में शुकुल जी से पहिला मुलाकात भइल। शुकुल जी के बार बार आग्रह रहे कि हमार प्रदेश में आके ओहिजा के किसानन के उद्धार करीं। गाँधी जी टालमटोल करत रहलें आ शुकुल जी जिद। आखिर में गाँधी जी मान गइले आ कल्कता अधिवेशन के बाद आवे के सकरले। गाँधी जी चम्पारण में निलहा किसानन पर होत अत्याचार के देखले त बहुत दुखी भइले ले आके सत्याग्रह आ अहिंसा के जवन हथियार दक्षिण अफ्रीका में अजमवले रहेले एहिजो प्रयोग कइले। 1917 में भइल एह सत्याग्रह से ओहिजा के किसानन के निलहा नरक से मुक्ति मिलल आ कण्ठ-कण्ठ से एके आवाज गुंजल- महात्मा गाँधी की जय। मोहनदास महात्मा बन गइले।
गाँधी जी के एहिजे से शोषित दरिद्र असहाय जनता के उत्थान के एगो दिशा मिलल। फेर गाँधी जी बिहार कई बार अइले आ बिहार के कई प्रांत में घुमले। चम्पारण सत्याग्रह के बाद महतमा गाँधी बिहार के गाँव-गाँव में पुजाये लगले। एही क्रम में गाँधी जी के आगमन आरा में भइल। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में आरा के विशेष उपलब्धि रहल बा।
बाबू कूँवर सिंह के एह धरती पर गाँधी जी 4 सितंबर 1920 के पहिला बार अइले। पटना से आरा तक के सफर पसेंजर ट्रेन में भइल रहे। आरा पहिले शाहाबाद जिला में आवत रहे आ एहिजा के कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष विंध्यवासिनी सहाय रहीं। उनका साथे डा. कैप्टन अरुन्जय सहाय वर्मा, चौधरी करामत हुसैन, मंडीला दास, कुनमुन हलवाई उर्फ नंदा गुप्ता आदि नौजवान काँग्रेसी लोग के जिम्मा मिलल गाँधी जी के कार्यक्रम के सुफल बनावे के । गाँधी जी के एह पहिला जतरा में उनका साथे शौकत अली (स्वतन्त्रता सेनानी आ खिलाफत आंदोलन के नेता), मौलाना अबुल कलाम आजाद, स्वामी सत्यदेव रहले। बात जनता जागरण के भइल, स्वदेशी, खादी आ चरखा के भइल। लोग महात्मा के अपना बीच पा के धन्य- धन्य रहे। गाँधी जी ओहि साँझ के पटना लवट गइले बाकी स्वदेश परेम के तितकी एहिजा के नौजवान लोग के मन में जरा गइले। शहाबाद से हरगोविंद मिश्र, हरनंदन सिंह, सरदार हरिहर सिंह, सरदार रघुवंश नारायण सिंह, सरजू मिश्र आदि नौजवान लोग स्वदेशी के प्रचार शुरू कइलस।
लगभग साढ़े छौ बरिस बाद 28 जनवरी 1927 के गाँधी जी फेर से आरा अइले । अबकी बार साथे कस्तूरबा गाँधी, उनकर बेटा देवदास गाँधी, लेखक – कृष्णा दास (Seven Months with Mahatma Gandhi: Being an Inside View of the Non-Cooperation Movement 1921-1922. Vols. I and II), डॉ. राजेन्द्र प्रसाद आ कई गो काँग्रेसी नेता लोग आइल रहे । जवन सभा के आयोजन भइल ओहमें गाँधी जी खादी के प्रचार और दलित लोग के उद्धार जइसन कार्यक्रम के बढ़ावा देवे पर जोर देले। एह कार्यक्रम के बाद गाँधी जी आरा में दू जगह गइले। आरा रमना के तरी मोहल्ला में स्थित बाल हिन्दी पुस्तकालय जवन आपन साहित्यिक गतिविधि से स्वतन्त्रता संग्राम में अलग भूमिका निभावत रहे। स्वतन्त्रता सेनानी देशबन्धु चितरंजनदास एह पुस्तकालय खातिर एक हजार रोपेयो बहुत पहिले देले रहले जवन आज के मौजूदा समय के हिसाब से कई लाख के बराबर रहे। ओह पईसा से पुस्तकालय भवन के एगो कमरा बनल आ किताब किनाइल। गाँधी जी उ नया कमरा के उद्घाटन कइले। ई पुस्तकालय आजो मौजूद बा आ आपन इतिहास बता रहल बा। आरा शहर जैन संप्रदाय के गढ़ ह आ एहिजा कई गो ऐतिहासिक चिन्ह उपलब्ध बा । ओहि में एगो प्रसिद्ध जगह ह आरा जेल रोड में श्रीदेव कुमार जैन प्राच्य शोध संस्थान जवना के ओरिएंटल लाइब्रेरी कहल जाला। एह शोध संस्थान में पुरान पाण्डुलिपियन के बहुत बड़ा संग्रह बा । गाँधी जी आपन दुसरका जतरा में एहिजो पहुंचलन आ प्राचीन भारत के ग्रंथन के दर्शन कइले।
गाँधी जी तिसरा बेर आरा 25 अप्रैल 1934 के अइले। एह जतरा में राजेन्द्र बाबू, काका कालेकर, प्रभावती देवी ( पत्नी- जयप्रकाश नारायण) आ कई गो आउर नेता लोग साथे आरा आइल। ओह घरी शाहबाद जिला पार्षद राधामोहन सिंह रहीं। आरा के पास उनकर गाँव बा – जमीरा। गाँधी जी उनकर आग्रह के मान रखत जमीरा पहुंचले आ ओहिजा के जनता जनार्दन के बीच आपन बात रखले। ओहि दिन आरा रमना मैदान में एगो आम सभा भइल। दीन दुखी जनता गांधी जी के दर्शन खातिर दूर दूर से आइल रहे। खादी आ स्वदेशी के चर्चा के साथे स्वदेश परेम के चरखा नधाइल। जनता पुकार उठल- महतमा गान्ही के जै । सभा के बाद गाँधी जी आरा मौलाबाग में वंशरोपण राम चौधरी के गार्डेन हाउस में तनिक देर आराम कइले आ आगे बक्सर के जतरा पर निकल गइले।
भोजपुर के धरती पर गाँधी जी के आगमन के सै बरिस पूरा हो चुकल। आरा शहर में गाँधी जी से जुड़ल कई गो निशानी अब मिट रहल बा। कुछ पर व्यवसायिक कब्जा त कुछ समय के मार पड़ल। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भोजपुर आ आरा शहर के नाम अमिट त बा बाकि एकर रक्षा सुरक्षा के जिम्मेवारी सरकार के साथे विशेष रूप से हमनी के बा। एह शताब्दी वर्ष पर गाँधी जी के साथे स्वतन्त्रता संग्राम में शामिल भोजपुर (शाहाबाद) के सब वीर लोग के नमन।
शशि रंजन मिश्र