हाल के कुछ बड़ घटना में एक बात इहो बा कि लेखन के दुनिया में औरतन के हिस्सेदारी पर बातचीत कइल जाता। शहर-शहरात से लेके गांव-जवार के दूर-दराज़ इलाका में जइसे-जइसे सामाज आ राजनीति में महिला लोगन के भागीदारी बढ़ल जाता, ओह पर चर्चा भी खूब होता। बाकिर आपन जिनगी के मूल समस्या के लेके हिन्दी या हिन्दी के इलाकाई बोली में जेतना ढेर संख्या में महिला रचनाकारन के उभार भइल बा, ओकर एक चौथाई हिस्सा पर भी लिखल-पढ़ल, बोलल-बतियावल अभी नइखे गइल। एह में कउनो शक-शुबहा नइखे कि महिला रचनाकारन के लिखला-पढ़ला पर देर-सबेर बेवस्थित चर्चा होखबे करी। ख़ासकर लोक भाषा के लेके, जेकर इतिहास त पुरान बऽड़बे कइल बा, लेकिन एकरा में कहलो-सुनल भी सबराहे बा। अभी कुछ दिन पहिले लाइब्रेरी में एगो किताब मिलल, पढ़े खातिर ले लिहनी ‘भोजपुरी साहित्य में महिला रचनाकारन के भूमिका’। डॉ सुमन सिंह, केशव मोहन पांडेय, जयशंकर प्रसाद द्विवेदी तीनों लोगन के बड़ी मेहनत आ लगन से किताब संपादित भइल बा। एह में कौनो दो राय नइखे कि भोजपुरी साहित्य में महिला रचनाकारन के अलग से पहचाने ख़ातिर पहिला बेर एतना बारीक़ अउर निम्मन काम भइल बा। आपन भासा के इतिहास, परम्परा अउर साहित्य के आगे बढ़ावे में मेहरारू लोगन के कुव्वत आ कारनामा केतना ख़ास बाटे, किताब के पढ़ला से एह बात के बुझे में देर ना लागे।
ई किताब मोटा-मोटी दू खण्ड में बँटल बा। पहिला खंड में महिला लोगन के रचना पर समीक्षा, संस्मरण बा, त ओहिजे दुसरका खंड में महिला रचनाकारन के गद्य अउर पद्य रचना दिहल बा। किताब के शुरुआत में ही दू गो लेख ‘क्लासिक रचत स्त्री प्रतिभा’ अउर ‘भोजपुरी साहित्य के आधा आबादी’, भोजपुरी भाषा अउर साहित्य के इतिहास में कुछ महिला लोगन के नाम से परिचय करा देवे ला। रश्मि प्रियदर्शनी के ई बात से इनकार ना कइल जा सके कि ‘भोजपुरी खाली संचार के ना, संस्कार के भाषा हऽ’।
1 डॉ उषा वर्मा के लेखकीय व्यक्तित्व के मोटा-मोटी जानकारी डॉ ब्रजभूषण मिश्र के लेख से मिल जाला। एह किताब में भोजपुरी के लोकगीतन, शब्द, मुहावरा के जुटावे में विदेसी महिला लोगन के जवन भागीदारी बा, ओकरा के एक जगह जुटा के हमनी के सोझा ले आवे में डॉ जयकांत जी के लेख बहुत महत्वपूर्ण बा। भोजपुरी भाषा के ले के दुनिया भर में जवन काम भईल बा ओकर बढ़िया परिचय देले बानी डॉ जयकांत जी। एह किताब के एगो बड़ विशेषता बा कि पढ़त खानी ओह लोगन से भी भेंट होत जाला, जे भोजपुरी के किस्सा-कहानी रचे-कहे वाली दादी-माई के खाली इयादे अगोर के नइखे रखले, बलुक ओह लोगिन के गावल-बजावल, गुनल-गूथल थातियन के सम्हार के रखले बा। जइसे-जइसे पढ़त गइनी, जेहन में ओठंगल आ सुतल कऽ गो बिचार जाग गइल। बात प बात निकलल त इहो बुझाइल कि जवन बात बड़-बड़ साहित्यन में नज़र ना आवे, उ हमनी के आपन माटी, आपन भासा में कतना आसानी से घुलल-मिलल बा। डॉ विश्वनाथ शर्मा जी के लेख लोकभूषण डॉ राजेश्वरी शांडिल्य के व्यक्तित्व आउर कृतित्व पर अइसने एगो उदाहरण बा। एक से एक बढ़ के क गो लेख भोजपुरी साहित्य अउर एह भाषा के ले के शोध में महिला लोगन के भूमिका पर किताब में दिहल गइल बा। डॉ. अपूर्व नारायण तिवारी, राणा अवधूत कुमार, कनक किशोर, डॉ संध्या सिन्हा, मनोज भावुक जइसे ढेरो लोगन के लेख अउर समीक्षा एह किताब में शामिल बा। आज जबकि पूंजीवादी विकास अउर आधुनिकता के आंधी में हमनी के आँखी के सोझा से लोक जीवन धीरे-धीरे ग़ायब होत जाता, त समय के सुन भइल एह खाली पड़ल दुनिया में लोक जीवन के खंडहर जवन दिखाई देता ओकरा के बचा के रखलो बहुत आसान नइखे रह गइल। आधुनिक तकनीक, सत्ता अउर मीडिया के एकतरफा हमला एतना तेज हो गइल बा कि हमनी के समूचा अवचेतन आपन काम कइल लगभग बन्द कर देले बा। भूले-बिसरे के एह दौर में लोक जीवन के अनुभव, निशानी अउर भावना जहवां से बचावे के मिल जाए ओह के बचा के, समेट के सुरक्षित रखल बहुत ज़रूरी हो गइल बा। अइसने एगो लेख केशव मोहन पांडेय जी के लोकगीतन के सजावे सँवारे में महिला लोगन के हिस्सेदारी पर उनकर समीक्षा बा। माई के एगो लोकगीत के स्मरण के बहाने भोजपुरी के लोकगीतन पर आपन विचार साझा कइले बाड़े। एक जगह उ लिखले बाड़न कि “औरतन द्वारा गावे वाला लोकगीतन के स्वभाव ह कि ओह में बहुते बड़को बात अक्सर कवनो साधारण घटना-प्रसंग के जरिए, बाकिर अनुभूति के गहनता से कहल जाला। गीतन के अंत में एकाध गो अइसन पंक्ति आ जाला, जवना से पहिले के साधारण घटना-प्रसंगों असाधारण रूप से महत्वपूर्ण बन जाला।”
2 ई भोजपुरी लोकगीतन के ताक़तो ह अउर ईहे एह भाषा के थातिओ ह। डॉ बलभद्र जी महिला कहानिकारन में डॉ उषा वर्मा, मधु वर्मा, प्रेमशीला शुक्ल, सुमन सिंह, सीमा स्वधा अउर प्रो चंद्रकला त्रिपाठी के कहानियन पर आपन विचार रखले बानी। प्रो सदानन्द शाही जी सुमन सिंह के दु गो कहानिन में स्त्री जीवन के सच्चाई के जायज़ा लेले बानी। पति के बेरुख़ी, समय के विडम्बना अउर शोक में स्त्री लोग कइसे पिसात जाली, डॉ सुमन सिंह के कहानी के समीक्षा के क्रम में ई बात देखे के मिल जाला। भोजपुरी के आपन चेतना, आपन राग से बोलत-बतियावत जइसे ही कुछ आगे बढ़ऽ त ई भासा भोजपुरिये में ही सोचे के मज़बूर भी क देला। ई देख के बड़ा नीक लागल कि जवने बात आ इतिहास के चर्चा हिन्दी आ अंग्रेजी में ‘स्त्री विमर्श’ फेमिनिज़्म के नाम पर कइल जाला, ठीक उहे बात, बाकिर ओकरा से एकदम अलग भोजपुरी के लोक गीतन में मौजूद बा। मन में अझुराइल क गो सवाल आ चिन्ता एह किताब के लेख आ साक्षात्कार पढ़ले से हल हो गइल। डॉ प्रकाश उदय जे खुद भी भोजपुरी के एगो निमन कवि बानी, उँहा के भोजपुरी कवितन के सहारे ‘स्त्री लोक’ के उजागर कइले बानी। एहि क्रम में जब उ आज के लोक जीवन के व्याख्या करे लिन त लोक के सजावे-सँवारे में हिन्दू-मुसलमान, गरीब-धनिक, जातिं-पांति के संघर्ष के भी सामने ले आवे के भी कोशिश करे लिन। उनकर ई चिंता वाज़िब बा कि “त जवन कहे कि त ना चाहीं तवना के ‘बाकिर’ ई रहे कि ई जवन हमन के लोक बा तवना के बारे में मर्द-मानस ई कि कुछ हिन्दू-मुसलमानादि से, कुछ बाभन-दुसाधादि से, कुछ धनिक-गरीबादि से, पढ़ल-अनपढ़ादि से आ अइसने अउरु कुछ-कुछादि से बनल बा आ एकरा के हिन्दू-मुसलमान किसिम के लोग चाहे त मिल के चलावे चाहे त हिन्दू एकोर हो जाय, मुसलमान एकोर हो जाय आ कट मरे।”
3 उनकर ई बात आज के समय में लोक के सँवारे में सभकर भागीदारी होखे के तरफ़ इशारा करे ला। आज के भोजपुरी कविता में औरतन के हिस्सेदारी जइसन कई गो लेख भोजपुरी के भाषाई आउर साहित्यिक महत्व पर एह किताब में शामिल बा। प्रेमशीला जी से डॉ सुमन सिंह के बातचीत हिन्दी-भोजपुरी के भाषाई खींच-तान से ऊपर मातृभाषा के हक़ के बात से जुड़ जाला।
श्रीमती शारदा पांडेय के कहानी संग्रह ‘ओह दिन’ के समीक्षा अशोक द्विवेदी कइले बानी। एहि क्रम में सरोज जी के कहानी ‘तेतरी’ पर समीक्षा डॉ प्रमोद कुमार तिवारी तथा संध्या सिन्हा जी के रचना ‘दोहमच’ पर डॉ रजनी रंजन के समीक्षा बा। ई दुनो रचना में भोजपुरी समाज में नारी के स्थिति, रचना के भाषा आउर समय के सच्चाई के लेके समीक्षा कइल गइल बा। गीत, ग़ज़ल, कविता से लेके कहानी अउर लघु कहानी तक क उदाहरण एके जगह आसानी से मिल जाला। भोजपुरी के रचना, फिकिर अउर ख़याल के एक जगह बटोर के हमनी तक चहुँपावे ख़ातिर संपादक लोगन के बधाई दिहल ज़रूरी बा।
एह किताब के एक बिसेसता अउरी बा कि आज काल्ह भोजपुरी में जवन कुछ मौलिक रूप से लिखल-पढ़ल जाता, ओह में औरतन के रचना के कुछ नमूना आउर ओकर समीक्षा दिहल गइल बा। गीत, ग़ज़ल, कविता से लेके कहानी अउर लघु कहानी तक क उदाहरण एके जगह आसानी से मिल जाला। डॉ प्रेमशीला शुक्ल के कहानी ‘तपेसर’ भोजपुरी समाज में बंधुआ मजदूर के प्रतिरोध के कहानी बा। “मलिकार बड़ी तपस्या से पोसऽतानी रउरे लोगन के आस बा, रउरे छांह में राखबि एके।”
4 एह कहानी में संवाद अउर मुहावरा के जइसन इस्तेमाल कइल गइल बा उ भोजपुरी के आपन भाषाई मजबूती के उदाहरण ह। ‘बुधिया’ कहानी हमनी के समाज के अंधविश्वास, सच्चाई अउर खूंटा पर बन्हाइल गाय जइसन लइकिन के दुर्दसा के बारे में एगो आख्यान ह। प्रो चंद्रकला त्रिपाठी के कहानी ‘शीत’ गरीबी में गांव समाज के मजबूरी के उजागर करे ला। अउर भी ढेर कहानी बा जवना पर बात कइल जा सकेला।
पद्य रचना के बात कइल जाव त भोजपुरी समाज, संस्कृति और संस्कार के क गो रूप देखे के मिले ला। शिप्रा मिश्रा के गीत ‘देसवा वीरान भइल रे’ एह समय आउर समाज में जीवन के टूटत मूल्य के ओरी इशारा करेला। मंजरी पांडेय अपने गीत में गांव के आकर्षण अउर मोहक चित्र खींचले बाड़ी जवन एह शहरीकरण आउर बाज़ारवाद के दुनिया में समाज भुलाइल जाता।
कहे के ज़रूरत नइखे कि भोजपुरी के साहित्य में महिला रचनाकारन के केंद्र में रख के ई किताब के संपादन केतना महत्वपूर्ण बा। ई खाली एगो संजोग नइखे कि जब तीन तलाक़ से लेके सबरीमाला मंदिर जइसन क गो ममिला पर औरतन के दिहल आवाज़ से धरम, परम्परा अउर राजनीति के सब पैंतरा हवा भइल जाता, ठीक ओहि समय भोजपुरी साहित्य में महिला लोगन के आवाज़, आ ओह आवाज़ के ताक़त पहचाने के ई कोशिश भी एगो क्रांतिकारी कदम से कम नइखे।
1.रश्मि प्रियदर्शिनी, भोजपुरी साहित्य के आधा आबादी, पृष्ठ 21
- केशव मोहन पांडेय, लोकगीतन के सजावे-सँवारे में नारी के भूमिका, पृष्ठ 61
- प्रकाश उदय, दुख ठाटत सुख बांटत, पृष्ठ 119
- डॉ प्रेमशीला शुक्ल, तपेसर, पृष्ठ 190
दिवाकर तिवारी
शोध छात्र
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी