भोजपुरी में संस्मरण लेखन

जब कवनो लेखक अपना निजी अनुभव के ईयाद क के कवनो मनई, घटना, वस्तु चाहें क्रियाकलाप के बहाने लिखेला त उ सब पाठक के मन से जुड़ जाला। पाठक अपना देखल-सुनल-भोगल समय-काल में ओह चीजन के, बातन के, जोहे-बीने लागेला। संस्मरण एगो अइसनके विधा ह, जवना के पढ़ के पाठक लेखक के लेखनी से एकात्म हो के जुड़ जाला।

उत्पत्ति के आधार पर देखल जाव त संस्मरण शब्द ‘स्मृ’ धातु में सम् उपसर्ग आ ल्युट् प्रत्यय के मिलला से बनल बा। एह तरे से एकर शाब्दिक अर्थ सम्यक् स्मरण होला। माने पूरा तरे से कवनो आदमी, घटना, दृश्य, वस्तु आदि के आत्मीयता आ गम्भीरता से कइल वर्णने संस्मरण ह।

कहल गइल बा कि संस्मरण सबसे लचीला साहित्य-विधा ह। संस्मरण के ढेर गुन साहित्य के ढेर विधा-शैली में रचल-बसल मिलेला। सुभावगत ई मिलेला कि रेखाचित्र, जीवनी, रिपोर्ताज आदि अउरियो साहित्यिक रूपन के छाँक संस्मरण में मिलेला। माने बात ई कि ईयाद के आधार पर कवनो विषय पर चाहें कवनो व्यक्ति पर लिखाइल आलेख संस्मरण कहाला। यात्रा-साहित्य एही के अन्तर्गत आ जाला। वइसे ढेर विद्वान लोग संस्मरण के साहित्यिक निबन्ध के एगो रूप मानेला लोग।

विकिपिडिया के मानी त हिंदी में संस्मरण के साहित्यिक रूप में लिखे के प्रचलन आधुनिक काल में पछिमी प्रभाव के कारण भइल बाकिर हिन्दी साहित्य में संस्मरणात्मक आलेखन के भरपूर विकास भइल। हिंदी में पहिला संस्मरणात्मक आलेख सन् 1905 में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के ‘अनुमोदन का अन्त, अतीत स्मृति’ मिलेला। ओकरा बाद 1907 में काशी प्रसाद जायसवाल जी के ‘इंग्लैंड के देहात में महाराज बनारस का कुआँ’ 1907 में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के ‘सभा की सभ्यता’ मिलेला बाकिर आजु एहिजा हम बात भोजपुरी में संस्मरण लेखन पर आपन बात राखे के प्रयास करत बानी। हमरा पता बा कि हमरा अल्पज्ञान के कारन ई प्रयास सूरूज के दीया देखावल बा, बाकिर बहाना अइसन समृद्ध मंच बा त बात राखहीं के पड़ी।

अब बात कइल जाव भोजपुरी में संस्मरण लेखन के। एह बारे में लिखे खातिर कुछ खोजबीन में लागल रहनी। ओही खोजबीन में ‘इग्नू’ के एगो प्रपत्र मिलल – ‘इकाई-दू, भोजपुरी भाषा आ लिपि’। 13 पेज के एह प्रपत्र के पाँचवा पेज पर जब हम गइनी त एगो उपशीर्षक रहे – ‘आधुनिक काल में भोजपुरी के विकास’।1 एह में लिखल बा कि ‘डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय आधुनिक भोजपुरी साहित्य के आरंभ 1875 ई. से मनले बानी आ लिखले बानी कि आधुनिक भोजपुरी साहित्य के प्रारंभिक काल (1885 ई. – 1920ई.) में एह भाषा में विशेष रचना उपलब्ध नइखीसन।’ ……. ओही में आगे लिखल बा कि ‘जइसन कि बतावल गइल बा कि ‘उक्तिव्यक्तिप्रकरण’ में भोजपुरी गद्य के पुरान नमूना मिलेला। एकरा बाद राजाज्ञा, सनद, पत्र आ दस्तावेजन में भोजपुरी गद्य के नमूना मिलेला। बाकिर आजादी के बाद भोजपुरी गद्य आपन विकास तेज गति से कइलस। आजादी के पहिले भोजपुरी के गद्य विधा में कुछ नाटक जरूर लिखाइल रहल बाकिर भोजपुरी उपन्यास, कहानी, निबंध, जीवनी, संस्मरण आदि के भरपूर लेखन आजादी के बाद भइल।’

कहल जाला कि भोजपुरी भाषा के इतिहास लगभग दस हजार बरीस से बा। अइसन पुरान भाषा में गद्य के विकास 1947 के बाद भइल। ओह में संस्मरण जइसन सरस आ मनलुभावनो विधा बा। एकरा बाद हम आपन ज्ञान बढ़ावे खातिर हमरा नजर में भोजपुरी के जीवंत इनसाइक्लोपिडिया आदरणीय डॉ. ब्रजभूषण मिश्र जी से बात कइनी। बात में डॉ. जयकांत सिंह ‘जय’ सर के किताब ‘भोजपुरी गद्य साहित्यः स्वरूप, सामग्री, समालोचना’ के चर्चा भइल। ओह किताब में जय सर कथेत्तर भोजपुरी गद्यन में चर्चा करत फिचर, शब्दचित्र आ संस्मरण आदि के चर्चा कइले बानी।

बात कइला पर भोजपुरी में संस्मरण लेखन के जतरा के बारे में पता चलल कि शुरुआती दौर के बात कइल जाव त पं. गणेश चैबे जी के किताब ‘भोजपुरी प्रकाशन के सै बरिस’ में उहाँ के ‘संस्मरण आ जीवनवृत्त’ नाम से एगो खंड बनवले बानी जवना में ओह घरी, माने 1983 में आठ गो किताब के चर्चा कइले बानी। जीरादेई के सदासत, आश्रम दत्त, राधामोहन राकेश के बा जवन कि राजेन्दर प्रसाद पर केन्द्रित बा। ‘गांधी यात्रा’ 1969 में निकलल, जवना में गांधी जी से संबंधित कविता चाहे उनकर चंपारण सत्याग्रह आदि के चर्चा बा। आचार्य महेंद्र शास्त्रीः व्यक्तित्व और कृतित्व 1971 में प्रकाशित भइल। ओहमें कइगो संस्मण शमिल बा। ‘आजादी के हलचल’ उमादत्त शर्मा के किताब ह। एहमें स्वतंत्रता संग्राम के संस्मरण के रूप में प्रस्तुत कइल गइल बा। गया से प्रकाशित होखे वाला ‘नवकल्प’ में आचार्य महेंद्र शास्त्री से जुड़ल कइगो संस्मरण छपल बा। देवरिया से छपल सदानंद स्मृति ग्रंथ, ओहू में स्वामी जी के व्यक्त्वि से संबंधित संस्मरण बा। सन 1977 में संत कुमार जी के एगो किताब बाबू राजेंद्र प्रसाद पर आइल, उहो संस्मरणात्मके बा। मोतिहारी के साँवलिया विकल जी के किताब ‘तरपन-अरपन’ में भोजपुरी के दिवंगत पुरोधा लोग पर संस्मरण बा। डी एन राय के ‘यादन के खोह में’ भोजपुरी लोककलाकार लोग पर केंद्रित संस्मरण के किताब बा। ‘स्मृतांजलि’ डॉ. शिव हर्ष पाण्डेय जी के संपादन में छपल संस्मरण के किताब ह।

आदरणीय डॉ. ब्रजभूषण मिश्र जी अपना बात में कहनी कि ‘भोजपुरी में संस्मरण विधा में ई सब कुछ के अलावा और किताब छपल बा बाकिर ढेर नइखे।’ ई बतिया सुन के हमार मन बइठ गइल। सोचे लगनी कि भाषा आ साहित्य के नाव पर सबसे ढेर हाल्ला भोजपुरिए में सुनाला-लउकेला आ ओहमें सबसे मनोरम विधा संस्मरण के हेतना अकाल। हम एगो बात साफ क दीं कि हमके व्यक्तिगत रूप से संस्मरण विधा बहुत प्रिय आ रोचक लागेला। वइसहीं कहल जाला कि बितल बात ईयाद अइला पर मन बेचैन हो जाला। संस्मरण बितले के त लिखल रूप ह। अपना जिनगी में सभे कबो ना कबो, कवनो ना कवनो अइसनका व्यक्ति से मिलल रहेला चाहें बेरा से गुजरल रहेला कि ओकर खट-मीठ ईयाद आवते रहेला। ओहि के त साहित्यिक रूप से लेखन संस्मरण विधा हऽ। संस्मरण लिखे खातिर कवनो अभ्यास आ अध्ययन के गरज ना पड़ेला। समय के साथे बहत कवनो काल-खंड में मिलल-गुजरल कवनो आदमी, अथान चाहें घटना के ईयाद कऽ-कऽ के लिखल संस्मरण ह। अइसन संस्मरण लेखन में सबसे ढेर मौलिकता रही। तनी सोंझो-टेढ़ रही त का हऽ, आपन रही, मौलिक रही। कहले जाला, घीव के लड्डू टेढ़ो भला।

भोजपुरी में संस्मरण अबहिनो लिखात बा, बाकिर किताब रूप में बहुत कम आवत बा। भोजपुरी के संस्मरण लेखन के गति, मति आ स्थिति के जाने खातिर हम प्रो. अर्जुन तिवारी जी के ‘भोजपुरी साहित्य के इतिहास’ देखे लगनी। ओह किताब में पेज नंबर 387 से ‘संस्मरण’ के बारे में बतावल बा। पन्ना पलटे लगनी आ मन तनी चाकर होखे लागल। ओहमें सबसे पहिले संस्मरण के कुछ उदाहरण दिहल बा जइसे कि श्री रवींद्र श्रीवास्तव ‘जुगानी’ जी के लिखल संस्मरण ‘फिराक गोरखपुरी: हमार बाबा’ के कुछ अंश बा। 2 अगिला संस्मरण गीतपुरुष पं. हरिराम द्विवेदी जी के लिखल ‘जनकवि रामजियावन दास बावला’ 3  के प्रस्तुत कइल गइल बा। ओकरा बाद के संस्मरण सूझ-बुझ के संपादक श्री कृपाशंकर प्रसाद के लिखल ‘रेस के घोड़ा थथमलः मैना अब ना बोली’ बा। 4  जब हम अगिला संस्मरण पढ़नी त मन भरि गइल। अगिला पेजवा पर आदरणीय डॉ. वेदप्रकाश पाण्डेय जी के लिखल ‘हमार सिराज भाई’ संस्मरण के चर्चा आ कुछ अंश बा। जनाब सिराज अहमद अंसारी जी के नेह-छोह हमरो पर बरसल बा। सेवरही में श्री आर डी एन श्रीवास्तव सर आ डॉ. वेदप्रकाश पाण्डेय जी के आशीष से हम ‘संवाद’ संस्था के संयोजन करीं। हर महिना में दूसरका शनिचर के एह संस्था के गोष्ठी होखे। साहित्य से सदा स्नेह करे वाला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सिराज साहब लगभग सगरो गोष्ठी के अपना उपस्थिति से ऊँच बना दीं। एह संस्मरण के पढ़ि के थोड़ि देर ले हमहूँ थथम गइनी। वइसे ई संस्मरण ‘समकालीन भोजपुरी साहित्य’ के 2007 के अंक 27 (संस्मरण अंक) में छपल रहल। एह बात के पता आदरणीय डॉ. अरुनेश नीरन सर आ आदरणीय डॉ. वेदप्रकाश पाण्डेय से बात कइनी त चलल। पाण्डेय सर के लगे ई अंक बाटे, से ओह अंक में छपल अउरियो संस्मरण के पता चलल। ऊहाँ के लगभग 16 पेज के फोटो खींच के हमके ह्वाटस्एप्प कइनी। कुछ के नाव देखीं- पाण्डेय कपिल जी के लिखल ‘भोजपुरी के भाषिक अस्मिता के उद्घोषक: डॉ. उदय नारायण तिवारी’, आचार्य रामदरस मिश्र जी के लिखल ‘बिकाऊ पंडित’, प्रो. रामदेव शुक्ल जी के लिखल ‘सुगना के आखिरी पयान’, गिरिजाशंकर राय ‘गिरिजेश’ जी के लिखल ‘समय के शिला पर’, अनिल कुमार पाण्डेय जी के ‘जुझारू जनकवि: आचार्य महेंद्र शास्त्री’, प्रसिद्ध कहानीकार मिथिलेश्वर जी के लिखल ‘जब लिखे शुरु कइनी’, विनय बिहारी सिंह के ‘कइसे भुलाईं कलकत्ता के ऊ दिन’, सतीशचंद्र भास्कर जी के ‘मस्ताना कवि श्याम जी’, रमाशंकर श्रीवास्तव जी के ‘भादो चउथ चाँदनी’, श्री रविकेश मिश्र जी के ‘गगन घन घेरि आई कारी बदरिया’, सतीश त्रिपाठी जी के ‘सरकारी तंत्र आ अजीज खाँ पठान’, अनिल ओझा ‘नीरद’ के ‘खरवा खोंटत, पनीया पीअत’, भगवती प्रसाद द्विवेदी के ‘भिखारी ठाकुर के जनमभूइँ’, पद्मभूषण विन्देश्वर पाठक जी के ‘सुलभ आंदोलन के कहानी’, पं. हरिराम द्विवेदी जी के ‘जिनगी के उछाह के कवि कैलाश गौतम’, प्रसिद्ध कथाकार कृष्ण कुमार जी के ‘लइकाईं के मइल आ माई के गइल’ के अलावा प्रेम प्रकाश पाण्डेय जी के ‘मम्मा के बुझउवल’, अनिरूद्ध त्रिपाठी अशेष जी के ‘साक्षात तुलसी से भेंट’, रवीन्द्र श्रीवास्तव ‘जुगानी’ जी के ‘फिराक गोरखपुरी: हमार बाबा’, जगन्नाथ त्रिपाठी जी के ‘जिनगी क पुरनका पन्ना’, सुनील सरीन के ‘युवानीति वाला ऊ दिन’ आ सुरेश त्रिपाठी के ‘हमके राजा से का काम’, ई सब संस्मरण ओह अंक के शोभा रहल आ अब भोजपुरी में संस्मरण लेखन के थाती बा। 5

‘भोजपुरी साहित्य के इतिहास’ में विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सतीश त्रिपाठी जी के लिखल ‘पाताललोक से बहुरि के’ यात्रा-संस्मरण के अंश बा ओकरा बाद प्रगतिशील विचारधारा के पोषक जनकवि विजेन्द्र अनिल पर अविनाश नागदंश जी के संस्मरण के अंश प्रस्तुत कइल गइल बा। ई सगरो स्वतंत्र संस्मरण बा ना कि किताब के रूप में। एह सब के बाद तीन गो किताबन के नाव प्रस्तुत कइल गइल बा। सन् 1975 में छपल उमादत्त शर्मा जी के ‘आजादी के हलचल’, 1982 में छपल साँवलिया विकल जी के ‘तरपन-अरपन’, 2002 में छपल शारदानन्द प्रसाद जी के ‘सुरता के पथार’ बा।

संस्मरण पर तइयार करत एह लेख के सिलसिला में हम भोजपुरी साहित्य के एगो ई-ठेहा ‘भोजपुरी साहित्यांगन’ के वेबसाइट पर गइनीं। ऊँहा जा के मन में तनी स्थिरता आइल। ओहिजा हमके संस्मरण के पाँच गो किताब मिलल। ‘हमहूँ माई घरे गइनी’ डॉ. आशा रानी लाल के यात्रा-संस्मरण हऽ, जवन सन् 2001 में भोजपुरी विकास मंडल, सिवान के ओर से छपल रहल। सन् 2013 में पाण्डेय कपिल जी के किताब ‘घर आ बाहर’ भोजपुरी संस्थान पटना से छपल रहे। जवना में यात्रा-संस्मरण आ लेखो के संकलन बा। ‘पड़ाव’ डॉ. प्रभुनाथ सिंह जी के लिखल ‘भोजपुरी कहानी, संस्मरण आ ललित निबंधन’ के ई संकलन के प्रकाशन 2004 में विश्व भोजपुरी सम्मेलन, दिल्ली के ओर से भइल रहे। शारदानन्द प्रसाद जी के ‘सुरता के पथार’ भोजपुरी संस्थान पटना से 2002 में छपल रहल। राजीव रंजन सिंह ‘हिंमांशु’ जी के संस्मरण संग्रह ‘पंच दर्शन’ जवना में यात्रा-कथा बा, सन् 2002 में छपल रहल।

जइसन कि पहिलहूँ कहल बा, यात्रो साहित्य संस्मरणे में आवेला। एकर कारण हमरा ई लागेला कि इहो इयादे पर, स्मरणे के आधार पर लिखाला। डायरी लेखनो त ईयादे पर होला। ताजा प्रकाशित भइल डॉ. रामरक्षा मिश्र जी के डायरी नीक जबुन में पढ़ि के ई बाति पोढ़ हो जात बा। भोजपुरी में संस्मरण लेखन के जाने खातिर हमके ‘समकालीन भोजपुरी साहित्य’ के 32 वाँ अंक मिलल जवन यात्रा विशेषांक रहे आ 2014 में छपल रहे। देखि-पढ़ि के अच्छा लागल। ओहमे भोजपुरी के समृद्ध-समृद्ध साहित्यकार लोग के रचना पढ़े के मिलल। ओह अंक आदरणीय डॉ. वेदप्रकाश पाण्डेय जी के ‘राजस्थान में दस दिन’ के अलावे पाण्डेय कपिल जी के ‘आगरा दर्शन’, अंतर्राष्ट्रीय दीदी सरिता बुधु जी के ‘हमार बिहार यात्रा: चंपारण के पुकार’, प्रो. रामदेव शुक्ल जी के ‘धरती आ किसान के मन एक्के बा इहाँ से उहाँ ले’, श्री बलराम पाण्डेय जी के ‘मारीशस: सिन्धु में बिन्दु’, आदरणीय भगवती प्रसाद द्विवेदी जी के ‘गया: आत्मा के मुकुती के धार्मिक पड़ाव’, डॉ. रविकेश मिश्र जी के ‘सातों बहिनियन के देश’, परिचय दास जी के ‘भाषा के जीभ से चखत’, सत्यदेव त्रिपाठी जी के ‘किन्नौर प्रांतर में छह दिन’, चंद्रदेव यादव जी के ‘जहाँ पाँव रूके वहीं पड़ाव’ आ डॉ. प्रेमशीला शुक्ल जी के ‘समुन्दर जी, समुन्दर’ यात्रा-संस्मरण के अलावे अनिल ओझा नीरद जी के ‘पुरुरवा के यात्रा कथा’, अनिरुद्ध त्रिपाठी ‘अशेष’ के ‘शहीदन के महातीर्थ में सात दिन’ आ सुरेश्वर त्रिपाठी जी के ‘देवरिया ताल के रोमांचक यात्रा’ छपल बा। 6

एतना छानबीन के बाद एतने पवला पर मन तनी दुखी भइल काहें कि एहू सब में ढेर स्वतंत्रे संस्मरण रहे, किताब के रूप में कम। एही में ईयाद पड़ल कि ‘समकालीन भोजपुरी साहित्य’ के अठरहवाँ अंक में विवेकी राय जी के लिखल ‘का हो गइल गाँव के’ छपल रहे। कबो एही के प्रेरणा से हमहूँ लिखले रहनी ‘हमार गँउवा बदलि गइल बा’। तऽ ओह संस्मरण में विवेकी राय जी अपना गाँव सोनवारी के ईयाद करत लिखले बानी।

मन धीरे-धीरे हरिहराए लागल कि गँवे गँवे सहीं, भोजपुरी भाषा में पहिलहूँ संस्मरण लिखात रहल बा, आजहूँ लिखात बा। समय के साथे आजु भोजपुरी के फलक ढेर बढ़ल बा। ई साँच बा कि जेतना फलक बढ़ल बा, ओतना भोजपुरी में कथेत्तर गद्य के बढंती नइखे भइल। नइखे भइल त का, ई बड़ा प्रसन्नता के बात बा कि अब खूब होत बा। हमार संस्मरण ‘एगो त्रिवेनी ईहवों बा’ सन् 2012 में पहिला बेर ‘अँजोरिया’ में आ बाद में ‘भोजपुरी पंचायत’ में छपल रहे। ‘बरम बाबा’ आखर में आ ‘साँस-साँस में बाँस’ ‘भोजपुरी पंचायत’, ‘भोजपुरी संगम’ आ ‘भोजपुरी साहित्य सरिता’ में छपल रहल। अइसहीं भोजपुरी के कालजयी पत्रिका ‘पाती’ के लगभग हर अंक में संस्मरण छपत रहेला। कुछ उदाहरण देखीं – अंक 87 में डॉ. रामदेव शुक्ल जी के ‘ऑक्सफोर्ड युनीवर्सिटी में एक दिन’  7  यात्रा-संस्मरण बा त अजय कुमार जी के ‘एगो बैंकर के डायरी’ 8  ललित संस्मरण बा। पाती के अंक 90 में श्री आनन्द दुबे जी के लिखल ‘लूटल नीमन ना हऽ’  9   छपल बा आ अंक 91.92 में तीन तरह के संस्मरण छपल बा। श्री आनन्द दुबे जी के यात्रा-संस्मरण ‘यात्रा आ आस्था’, स्थान-संस्मरण के श्रेणी में श्री गुलरेज शहजाद जी के ‘संत कबीर आ चंपारन’ के सथवे स्मरण के रूप में आदरणीय डॉ. ब्रजभूषण मिश्र जी के ‘पं. गणेश चैबेः भोजपुरी लोक के सौन्दर्यशास्त्री’ छपल बा। स्मरण पर लिखइला के कारन हम एहके संस्मरणे के श्रेणी में राखे के धृष्टता करत बानी। आदरणीया डॉ. सुमन सिंह के ‘पगलो आजी’ पाती के 88 वाँ अंक में छपल रहल। सर्व भाषा ट्रस्ट से प्रकाशित भइल ऊहाँ के ‘हूक-हुँकारी’ किताब में छपल ‘मउगा चाचा’, ‘जादूगरी’, आ मनतोरना फुआ आदि ढेर समृद्ध संस्मरण पाठक लोग के सामने पढ़े खातिर उपलब्ध बा, जवन भोजपुरी संस्मरण विधा के समृद्धि के ओर आस बन्हावत बा। एकरा सथवे श्री जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के दू गो संस्मरण ‘बुढ़िया माई’ आ ‘अवघड़ अउर एगो रात’ आ एगो यात्रा संस्मरण ‘एगो रोमांचक यात्रा’ भोजपुरी पंचायत में हमके पढे़ के मिलल रहल। एह सब से मन में ई विश्वास हो गइल कि अनगिनत लोग संस्मरण लिखत आ छपत होई।

भोजपुरी संस्मरण के बात करत में केदारनाथ सिंह जी के संस्मरण ‘हिंदी भुला जानी’ आ गोपेश्वर सिंह जी के लिखल ‘भोजपुरी के पहिलका सोप ओपेरा लोहा सिंह’ जवन हिंदी समय पर प्रकाशित बा, आपन उपसिथति दर्ज करइबे करी। सथवे आदरणीय मार्कण्डेय शारदेय जी के ‘डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव’ आ ‘पाण्डेय कपिल’ पर लिखल संस्मरण अपने आप में भावात्मक महत्व के बा।

भोजपुरी के बात, विचार, व्यवहार, संस्कार, गीत, संगीत से ले के ढेर भोजपुरिया लेखक लोग ढेर कुछ लिखले बा, संस्मरणों में ओकर उपयोग कइले बा, हो सकेला कि भोजपुरियो में संस्मरण लिखले होखे, हमरा पता नइखे, हम नाम नइखीं ले पावत, ओह खातिर क्षमा। बस पहिले मन जे तरे दुखी रहे, अब आह्लादित हो गइल बा कि भोजपुरियो में संस्मरण लेखन सदा से होत रहल बा, होत बा। आगहूँ होत रही। रउरा सब से हमार दसोनोह जोड़ के निहोरा बा कि मन में कवनो बितल व्यक्ति या वस्तु-अथान के ईयाद के भाव आवे, विधा ना समझ में आवे त चुपचाप माई सरस्वती के गोड़ लागीं आ लेखनी उठा के लिखल शुरू क दीं। राउर उ लेखनी असली मौलिक होई आ भोजपुरी साहित्य के संस्मरण के थाती समृद्ध करी।

संदर्भः

  1. ‘इग्नू’ प्रपत्र/ इकाई-दू, भोजपुरी भाषा आ लिपि/2.2.3 आधुनिक काल में भोजपुरी के विकास
  2. भोजपुरी साहित्य के इतिहास/डाॅ. अर्जुन तिवारी/ पृष्ठ 387.388
  3. उहे/ पृष्ठ 388.390
  4. उहे/ पृष्ठ 390.391
  5. पाती/अंक-87/ पृष्ठ 20.24
  6. पाती/अंक-87/ पृष्ठ 25.28
  7. पाती/अंक-90/ पृष्ठ 39.40
  8. समकालीन भोजपुरी साहित्य/अंक-27
  9. समकालीन भोजपुरी साहित्य/अंक-32

 

  • केशव मोहन पाण्डेय

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