संसार का हर ग्यात भासा के दू खाना में राखल गइल। पहिला – एक केन्द्रीय भासा आ दोसर – बहु केन्द्रीय भासा। एक केन्द्रीय भासा के माने एक मानक रूप के भासा ; जइसे – रूसी, इतालवी, जापानी वगैरह। एह एक मानक रूप वाला भासा के अंगरेजी में मोनोसेंट्रिक लैंग्वेज ( Monocentric Language ) कहल जाला। बहु केन्द्रीय भासा के माने एक से अधिक मानक रूप वाला भासा ; जइसे – अरबी , फारसी , जर्मन , अंगरेजी वगैरह। एह बहु केन्द्रीय भासा के अंगरेजी में प्लूरिसेंट्रिक लैंग्वेज ( Pluricentric Language ) कहल जाला। ई अरबी , फारसी , जर्मन , अंगरेजी वगैरह बहु केन्द्रीय भासा अलग-अलग देसन के उचारन के आधार पर आपन आकार लेवेला ; जइसे – जर्मनी ऑस्ट्रिया का जर्मन के आपन आपन भासा रूप, ब्रिटेन , अमेरिका ऑस्ट्रेलिया वगैरह का अंगरेजी के आपन आपन भासा रूप , पुर्तगाल आ ब्राजील के आपन आपन पुर्तगाली के आपन आपन भासा रूप आदि। अइसे हर देस के आपन भासा रूप भइला से ओह देस खातिर त ओकरा भासिक एकरूपता खातिर ओकर एगो मानक रूप तय त होइबे करेला। कई देस के एके भासा का बहु केन्द्रीय भासा के भासिक रूप के जाने खातिर समुझे से जादे रटे के पड़ेला। काहे कि एह भासा का एके सब्द के रूप दोसरा देस के उच्चारण के हिसाब से बदल जाला। अइसन स्थिति एक केन्द्रीय भासा के सङे उत्पन्न ना होखे।
कवनो भासा के बोले, लिखे आ पढ़े में एकरूपता, स्थिरता आ बोधगम्यता ले आवे के उदेस से ओकरा मानकीकरन का प्रक्रिया के जरूरत होला। बहुत बड़ भूभाग का एके भासा के कएगो अस्थानीय भासा रूप होला। ओह सब भासा रूप में वर्तमान सामान्य बेवहारिक भासा का तत्वन के बीच समन्वय करत साहित्यिक प्रयोग के आधार पर एगो व्यापक प्रतिनिधि भासा रूप उभर के सामने आवेला। फेर ओह भासा के बेवहारिक आ साहित्यिक भासा रूपन में मेल करावत ओह भासा के ध्वनि प्रकृति आ भाव प्रकृति के अनुरूप ओकर एगो मानक रूप तय कइल जाला। एक तरह से मानकीकरन के प्रक्रिया भासा के विभिन्नता में एकता के साधे के उपक्रम ह। जवना से ओह भासा में स्थिरता, एकरूपता आ बोधगम्यता आवे अउर ऊ प्रतिष्ठा के सङे प्रसार- बिस्तार पा सके। भासा बैग्यानिक फर्गुसन एकरा खातिर तीन तरह के उपक्रम बतवले बाड़न- बेवहारिक भासा के लिखल, लिखल भासा के बयाकरन मतलब ओकर सुध आ असुध प्रयोग के तय करे वाला नियम बनावल आ लिखल आ नियम बनावल भासा के शब्द कोस तइयार कइल। ऊ सब्द कोस खाली साहित्यिके भासा के आधार पर ना होके ओकरा में आइल दर्सन, बिग्यान, अध्यात्म, धर्म, सासन, प्रसासन, न्यायालय आदि जुड़ल पारिभासिक सब्दावली के आधार पर तइयार कइल जाला। एह तीनो स्तर पर भासा के एकरूप मानल प्रयोग खातिर ओह भासा के उद्गम सोत के भासा, ओकर ध्वनि प्रकृति आ भाव प्रकृति आ ओकरा विकास यात्रा के दरम्यान ओकरा पर प्रभाव डाले वाली भासा के प्रभाव में आइल कालगत बदलाव के अध्ययन जरूरी होला। काहे कि बिना एह सब पर बिचार कइले ओह भासा के सर्वमान्य अथवा बहुमान्य मानक भा बैध रूप तय कइल आसान ना होखे।
एह मानक भासा के नागर भासा, परिष्कृत भासा, टकसाली भासा आ अंगरेजी में स्टेंडर्ड लैंग्वेज ( Standard Language ) कहल जाला। ई स्टैंडर्ड सब्द बनल बा अंगरेजी के स्टेंड ( Stand) सब्द से । मतलब ई भासा स्टेंड मतलब खड़ा हो गइल। अब ई बोले के अलावे लिखाई, छपाई आ आउर जीवन-व्यापार में आवे खातिर दउड़े के स्थिति में पहुँच चुकल बा। एह से एह भारतीय आर्य भासा भोजपुरी के मानकीकरन खातिर एकरा उद्गम सोत के भासा, कालक्रम से एकरा पर प्रभाव डाले वाली भासा आ एकरा ध्वनि प्रकृति आ भाव प्रकृति आदि के खोज करेके पड़ी। एकरा अलावे एकरा के प्रभावित करनेवाली आउर आर्य भासा सब से एकरा सम्बन्धन के टोहे के पड़ी।
अब जहाँ तक भारतीय आर्य भासा सब के बात बा त उपलब्ध साहित्य के आधार पर संस्कृत सबसे पुरान आ एक केन्द्रीय भासा के रूप में प्रसिध आ प्रचलित बा। जवन बैदिक भाषाउ के पच्छमी उदीच्य भासा रूप के आधार पर भगवान पाणिनि के द्वारा संस्कारित होके संस्कृत नाम से थिराइल भासा रूप में बेवहार में बा। पाणिनि के पहिले आ उनका समयो में एके भासा के कएगो भासा-रूप आ आउर-आउर देसी भासा के बेवहार होत रहे। ऊ अपना अष्टाध्यायी में ‘ अन्यरस्याम् ‘ कहके वैकल्पिक भासा-प्रयोगन का अस्तित्व के सूचना देले बाड़न। भासा सब का प्राकृतिक रूप के आधार पर असंस्कृत भासा के ‘प्राकृत’ कहल गइल। जवना के प्रयोग संस्कृत के बिद्वान साहित्यकार आम जन के भासा के रूप में बेवहार कइले बाड़न। ओकरा बाद संस्कृत भासा के साहित्य में आम जन के मुँह से बोलवावल आम भासा रूप अर्थात् प्राकृत में आउर देसी भासा सब के मेल से जवन भासा रूप सामने आइल ओकरा के भासा के बिद्वान लोग अपभ्रंश आ अवहट्ट भासा कहल। कवनो भासा का अस्थानीय भासा रूप के बोली, उपभासा अथवा अपभासा भी कहल जाला।
भारतीय आर्य भासा सम्बन्धी अब तक के उलेख से दूगो तथ्य उभर के सामने आवऽता। पहिला कि संस्कृत काल में देसी भासा के हू-ब-हू प्राकृतिक रूप के साहित्यिक बेवहार के आधार पर ओकर नाम प्राकृत रखाइल जवन आउर लोक- प्रचलित देसी भासा सब से अलग रहे । दोसर कि बाद में ओही साहित्यिक प्राकृत भासा के सङे आउर देसी भासा सबके मेल से बनल भासा रूप के अपभ्रंश नाम दिआइल। एह से ई तथ्य प्रमाणित होता कि अपभ्रंश से पहिले देसी भासा के अस्तित्व लोक में रहे आ ओही देसी भासा सब के सङे साहित्य में प्रयुक्त प्राकृत के मेल से अपभ्रंश पैदा भइल। एह से कवनो देसी भासा पर आ ओकरा मानकीकरन आ एकरूपता पर विचार करे खातिर ओकरा व्युत्पत्ति का स्रोत पर बिचार करे के पड़ी।
कुछ समय खातिर भोजपुरी के लेके यूरोपीय बिद्वान हार्नले, ग्रियर्सन आ उनका प्रभाव में आपन आपन विचार देवे वाला यूरोपीय भा भारतीय बिद्वान लोग के ओह विचार के अलग रख दिआब जवना में एकरा बिहारी वर्ग के बोली, मागधी, अर्धमागधी भा शौरसेनी से व्युत्पन्न भा प्रभावित बतावल बा। तब कुछ रूढ़िगत अवधारना से निकल के साफ बातावरन में बात खुल के सामने आ सकऽता। फेर आगे चलके सबसे तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर मानकीकरन के प्रक्रिया तय कइल जाई।
अइसन बिचार राखे के वजह ई बा कि एह कुल्ह अवधारना से भोजपुरी भासा का अध्ययन के क्षेत्र में कई तरह के अराजकता फइलत गइल बा। आरंभिक अध्ययन का महत्व के माथे चढ़ावत हम ग्रियर्सन का भोजपुरी बिसयक बिचार के आउर लोग जइसन आर्स बचन ना मानीं आ ना मानल हमरा अनुचित ना लागे काहे कि ओकर तार्किक आधार बा। एक त ग्रियर्सन भोजपुरी के बिहारी वर्ग के बोली आ बाद में हिन्दी से इतर स्वतंत्र भाषा मनलें। दोसरे एकरा के मागधी अपभ्रंश से व्युत्पन्न मान लेलें। एक त भोज, भोजकट, भोजनगर, भोजपुर आ भोजपुरी बिहार आ बिहारी से पुरान शब्द हवें स। दोसरे, भोजपुरी बिहार से ज्यादे उत्तर प्रदेश का जिलन में बोलल जाला। एकरा अलावे मध्यप्रदेश के कुछ जिलन सहित नेपाल के तराई क्षेत्र के बेवहारिक भासा ह। तीसरे, बिहारी नाम के कवनो भासा के अस्तित्व रहले नइखे। चउथा, एकर ध्वनि प्रकृति मागधी अपभ्रंश से मेल ना खाए। जइसे – मागधी में ज के य, न के ण, र के ल आ ष अउर स के श उच्चारण होला आ लिखइबो करेला; जइसे – जानाति के याणाति, राजा के लाजा, परिचय के पलिचय, हंस के हंशे, पुरुष के पुलिशे, सप्त के शत आदि। उहँवे भोजपुरी में एकरा ठीक उल्टा; यजमान के जजमान, युगल के जुगल, गणेश के गनेस, चरण के चरन, केला के केरा, पिपिलिका के पिपिरी, श्याम के साम, शीत के संगीत, पुरुष के पुरुख, षष्टी के खस्टी आदि। एही से डॉ. राम विलास शर्मा भोजपुरी के मागधी से इतर न, र, स ध्वनि केंद्र के भासा बतवले बाड़न।
कुछ बिद्वान भोजपुरी के पछमी मागधी आ अर्द्ध मागधी से बिकसित बतावेलन त कुछ ओकरा के काल्पनिक भासा कहेलन। डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार जैन धर्म वाला लोग पूर्वी बोली में कुछ परिवर्तन करके अर्द्ध मागधी सिरिजलें आ डॉ. भोलानाथ तिवारी अपना ‘हिन्दी भाषा का इतिहास’ के पन्ना-102 में लिखत बाड़ें कि भोजपुरी के एगो नाम ‘पूरबी’ ह। फेर डॉ. चटर्जी के अनुसार बुद्ध का उपदेश के भासा पूरबी बोली रहे बाद में पालि भासा में उनका उपदेस आ बौद्ध साहित्य के अनुवाद कइल गइल। डॉ. उदय नारायण तिवारी के कहनाम बा कि भोजपुरी पर मागधी से अधिक पछिम के शौरसेनी के प्रभाव बा। कुछ लोग के इहो कहनाम बा कि पछिम के कौरवी, बांगरू, हरियाणवी के भासा रूप पर गढ़ाइल खड़ी बोली हिन्दी से भोजपुरी भासा, समाज आ क्षेत्र के दूर दूर तक कवनो सम्बन्ध नइखे। ई कुल्ह बात लोग कुछ ध्वनि के उचारन आ ध्वनि चिन्ह के प्रयोग का थोड़-ढ़ेर प्राथमिकता के आधार पर कहले बा। एमें हर कोई हाथी के अलग-अलग अंग पकड़ के हाथी के अलग-अलग परिचय देवे के प्रयास कइले बा। एकरा पर अलग से तार्किक ढ़ंग से बात करे खातिर ‘भोजपुरी’ सब्द के नामकरन, भोजपुरी भासी क्षेत्र, भोजपुरी भासा के ध्वनि प्रकृति आ भाव प्रकृति पर बिचार करेके के होई।
भोजपुरी सब्द के नामकरन बिहार के पछमी किनारा आ उत्तर प्रदेश के पूरबी किनारा के बीच के स्थान बक्सर के पास के भोजपुर नगर के आधार पर भइल बा। एह बक्सर आ भोजपुर क्षेत्र के सम्बन्ध ऐतिहासिक, पौराणिक आ बैदिक भोज लोग से रहल बा। बैदिक भोज के उपरोहित विश्वामित्र वेदन के कई मंडल सबका रिचन के दरसन कइले बाड़न। पूरबी बोली कोसली भासा के प्रयोग क्षेत्र उहे रहल बा जवन भोजपुरी के बा। मई, सन् 1965 ई. के बनारस में आयोजित भोजपुरी संसद के दूसरका भोजपुरी सांस्कृतिक सम्मेलन के अध्यक्षीय भासन में बोलत बतवले रहलें कि भोजपुरी कारूसी के अलावे आउर तीन साखा में बंँटल बा – 1. मल्लिका, 2. कासिका आ 3. बज्जिका। रास बिहारी पाण्डेय ‘ भोजपुरी भासा का इतिहास में ‘शतपथ ब्राह्मण’ आ ‘काशी का इतिहास’ के आधार पर भोजपुरी क्षेत्र में प्राचीन मल्ल, बज्जि, काशी, कोसल, करूस , बत्स आदि जनपद के सम्मिलित कइले बाड़न। एक तरह से ई उहे क्षेत्र ह जवना के लगभग पन्द्रह सौ बरिस तक सम्पर्क भासा पूरबी बोली कोसली रहे।जवना में बुद्ध आपन उपदेश देलें। जवन सम्राट अशोक का काल में राजकाज के भासा रहे। जवना के एगो नाम बाद में भोजपुरी प्रसिध भइल आ हिड्स डेविड के बुद्धिस्ट इंडिया के अनुसार बारहवीं सदी में ओकरा पछमी रूप ‘अवधी’ नाम से प्रचलित भइल। एह तरह से कारूसी, मल्लिका, कासिका, बज्जिका, अवधी, आ उत्तरी चम्पारन अउर नेपाल क्षेत्र के थारू- मधेसी भोजपुरी के स्थानीय भासा रूप ह। एह कुल्ह भासा रूपन के ध्वनि प्रकृति आ भाव प्रकृति के समरूपता भोजपुरी के अस्थानीय रूप सिध कर रहल बा।
डॉ. ए पी बनर्जी शास्त्री रिग्वेद का रिचन में बैदिक भोज के अस्तित्व के रेघिआवत कहले बाड़ें कि एही भोज गन भा जन के नाम पर एह क्षेत्र के नाम भोजपुर पड़ल। पुरानन में एह क्षेत्र के एगो नाम करुस भी आइल बा जहाँ के भासा पतंजलि काल कारुसी भी कहात रहे। पं. सकल नारायण शर्मा आरा नागरी प्रचारिणी सभा के आरा पुरातत्व के पन्ना-३२ में ब्राह्मण पुराण आ शाहाबाद गजेटियर के हवाले से बतवले बाड़न कि ‘ करुस आ शाहाबाद नाम के बीच एह क्षेत्र के भोजपुर नाम के उल्लेख होला जहाँ के भासा आ निवासी दूनों भोजपुरी कहालें। अइसहीं अनेक बिद्वान भोज, भोजपुर आ भोजपुरी जन, क्षेत्र आ भासा के सम्बन्ध बैदिक भोज गन लोग से आ बैदिक काल से एगो प्राकृतिक नदी जइसन ई भासा के अनवरत बढ़त आ थोड़ ढ़ेर अपना अड़ोस-पड़ोस का देसी भासा सब से प्रभावित होत आ रहल बा। जवना के सम्बन्ध बैदिक भासा से रहल बा आ कालक्रम से एकर नाम कारुसी, भोजी, कोसली, भोजपुरी बदलत रहल बा। एकर क्षेत्र बहुत व्यापक रहल बा। अवध के भोजपुरी भासा रूप के अवधी कहल जाला। डॉ. जितराम पाठक ‘ अपना शोधपूर्ण आलेख ‘ भोजपुरी भाषा के विकास यात्रा ‘ में भासिक समानता के आधार पर अपना कई अस्थानीय रूप आ नाम प्रसिध भोजपुरी के सम्बन्ध बैदिक भासा से जोड़त कहले बाड़ें कि बैदिक भासा भोजपुरी भासा के जननी ह। ( भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका, अंक- अगस्त, १९९३, पन्ना-२५३ )। अब बैदिक भासा आ अवधी से एकर मुख्य मुख्य भासिक समानता दरसावल जरूरी बा जवना में अवधारना अस्पष्ट हो सके।
भोजपुरी भासा के रागात्मक, लयात्मक, संगीतात्मक, सुराघात-बलाघात आ स्वरांतप्रिय प्रकृति ओकरा के बैदिक भासा परम्परा के साबित करेला। बिद्वान लोग के अनुसार बैदिको भासा जन भासा रहे। ओकरो में बोलचाल का भासा के सहजता रहे। उहो स्वाघात वाला भासा रहे। इहाँ स्वर के अभिप्राय उहे बा, जवन संगीत में बा। जइसे संगीत में एके स्वर उच्च, मध्यम, निम्न आदि स्वरन में बोलल जाला ओइसहीं बैदिक भासा अथवा बैदिक संस्कृत में सब्द अलग-अलग स्वर में बोलल जात रहे आ स्वर भिन्नता के चलते सब्द के अर्थ बदल जात रहे। ई भासिक बिसेसता भोजपुरिए में पावल जाला। डॉ. विश्वनाथ प्रसाद के अनुसार ‘भोजपुरी का बिसेस्तन में ध्वनियन के रागात्मक तत्व उलेखनीय बा। रागात्मक परम्परा बैदिक साहित्य में सुरक्षित बा। बैदिक भासा में सुराघात आ बलाघात के दर्सन होला। सुराघाते ध्वनि राग ह, जवना के ससक्त उपस्थिति भोजपुरी में आजुओ मौजूद बा’।( भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका, अगस्त-१९९३, पन्ना-२५ )।
बैदिक भासा आ भोजपुरी दूनो में अनुनासिक ब्यंजन के प्रयोग पावल जाला ; जइसे – ‘ ङ ‘ के पदांत प्रयोग – प्रत्यङ्, कीदृङ्, अङ्, सङ्, सङ्, आङ्न आदि। जइसे रिग्वेद के ष यजुर्वेद में ख उचारल जाला, ओइसहीं भोजपुरिओ में होला ; जइसे- वर्षा- बरखा, हर्ष- हरख, लषण- लखन, षष्ठी- खस्ठी आदि। ओइसहीं पदादि य के ज उचारन होला ; जइसे – यज्ञ- जग्य, यमुना- जमुना, युगल – जुगल, यजमान – जजमान आदि। वैदिक सस्वरता के चलते उ के आगम बिरल रूप में होत रहे। भोजपुरी छोड़ के आउर कवनो भारतीय आर्य भासा में उ के प्रयोग-बहुलता नइखे मिलत ; जइसे – पुरोहित में के उकार ‘प’ के पहिले अइला से भोजपुरी में शब्द बन गइल ‘उपरोहित’।
वैदिक भासा में तिङ्न्त क्रिया के प्रयोग होत रहे त भोजपुरी में अधिकतर तिङ्न्त क्रिया के प्रयोग होला। भोजपुरी में ‘श’ के स्थान पर ‘स’ के उचारन होला। भोजपुरी में भाषा के भासा बोलल लिखल जाला। ऋग्वेद में ‘भाषा’ खातिर कई जगह भासा शब्द के प्रयोग बा। ‘ अभिख्या भासा वृहदा ‘ (ऋग्वेद- ७/७/४ आ ८/२३/५)। बैदिक भासा आ भोजपुरी में स्यार, सूकर ( सूअर ) , सूर्प ( सूप ) कोस, वसिष्ठ आदि चलेला, जवन संस्कृत में स के श होके श्याल, शूकर, शूर्प, कोश, वशिष्ठ आदि हो जाला। दूनो भाषा में आ, आव, आवह, आगहि, के, बङे, आके, पराके, बाति, जन, जनि जानी मूष/मूस परुत् – परु (पिछला साल), पररि- परिआरि (पिछिला के पिछिला साल), करीष- करसी, गोविष्ठ- गोबर, गोंइठा, चरू- चरूई (घट), सत्तु- सतुआ आदि अनेक सब्दन के समान प्रयोग पावल जाला। अइसहीं कुकुर, उपदेस, निस्तार, निहसि, महिष भइस, धावऽ, पाजी, कुइला कोइला, इन्द्रागार – इनार, गर्गरिका – गगरी, पिपिलिका- पिपिरी आदि सब्द समान अर्थ में प्रयुक्त होलेन स।
बैदिक भासा आ भोजपुरी दूनो स्वर प्रधान भासा ह। एह दूनो के सब्दांत ब्यंजन हिन्दी जइसन स्वरहीन उचारित ना होखे। एने लोग हिन्दी के प्रभाव में आके स्वरहीन उचारन करे लागल बा। अइसे भोजपुरी में बैदिक भासा के समान स्वरांत उचारन होला। जवना खातिर अवग्रह मतलब बिकारी चिन्ह ( ऽ) के प्रयोग होला ; जइसे – मानऽ मानऽ बचनिआ हमार जनिआ, रामऽ गती देहू सुमती, आव ऽ, बइठऽ, उठऽ आदि। एह दूनो भासा में ध्वनि उचारन के बिसेस प्लुत प्रयोग मिलेला। स्वर के रेघावे आ ह्रस्व अउर दीर्घ के अलावे दीर्घतर उचारन एह दूनो भासा के बिसेसता ह।
बैदिक भासा आ भोजपुरी में कुछ आउर समानता के उदाहरन देखल जाव – सत्यं वदऽ – सत बदऽ, पंच बदऽ, आपन गोंइया बदऽ आदि। बैदिक भासा का बलाघात के प्रवृत्ति भोजपुरी में देखल जाव – जानऽता ( जान रहल बा ) में न पर बलाघात बा।
रिग्वेद में ‘जानऽता संगमे महि।’
सायं करत ( रिग्वेद) आ काम करत ( भोजपुरी ),
कर दारे ( रिग्वेद ), कर तारे ( भोजपुरी- संधि बिछेद के बाद), ई हे ह मनसा (रिग्वेद), ई ह
(भोजपुरी), ह भोजा (रिग्वेद), ह भोज (भोजपुरी),
यद्वा चो ह वाच स उ प्राणस्य प्राण: ( केनोपनिषद),
ह ( भोजपुरी बा के अर्थ में), ‘ सा नो में मतिन आ धेहि’ में आ भोजपुरी के आउर के अर्थ में प्रयुक्त बा।
अइसहीं कोसली, पालि, अवधी आ भोजपुरी के एह तरह के ध्वन्यात्मक समानता बहुत बा। डॉ. राम विलास शर्मा भोजपुरी आ अवधी के एके न, र, स ध्वनि प्रधान केन्द्र के भासा मनले बाड़न। एह दूनो में ह्रस्व अ के प्रधानता बा; जइसे- मीठ, जीत, बड़, छोट, मोट, नाट आदि। ई प्रत्यय के प्रयोग दूनो में बा; जइसे – कुछु, आजु, कासु, काल्हु, जाउ, आउ, खाउ आदि। परसर्ग के, का, से में, मां, मानसिक, पर, पर, लागि आदि के प्रयोग दूनो में बा। मुख क्रिया में ‘त’ लगा के सहायक क्रिया दूनो भासा में लागेला।भविसत काल के क्रिया में ह आ ब दूनो रूप के प्रयोग होला। महाप्रान ह के प्रयोग दूनो में पूरहर पावल जाला; जइसे – हेकर, होकर हिनकर, हुनकर। जे आ से में ह दूनो भासा में लागेला- जेह- जेहि ( जेहि पर जेहि के सत्य सनेहु, जेहि के माई पुआ पकावे तेहि के बेटवा तरसे) । दूनो कर्तृवाच्य प्रधान भासा ह। एह तरह से कुछ कालगत आ अस्थानगत भेदन के छोड़ के प्राय: भासिक एकरूपता एह कुल्ह भासा सब में बा। एह से भोजपुरी भासा के लिखे, पढ़े आ बोले में एकरूपता ले आवे खातिर जब एकर मानक रूप तय करत समय बैदिक भासा, कोसली, पालि आ अवधी का भासिक प्रकृति-प्रवृति के जरूर ध्यान में राखे के होई।
- डॉ जयकान्त सिंह ‘जय’