भोजपुरी त पहेली बा

साँचो  में  रउआ सुन के भक फाट जाई। भोजपुरी एगो पहेली बन गइल बा ।नइहरे में बेआबरू भइल बेटी जइसन हाल एह घरी भोजपुरी साहित्य आ साहित्यकार लोगन के बा ।साहित्यकार कइगो मोटकी-मोटकी किताबन में माथा खापावेलन आ रात-दिन एक करके कलम-कागज के साथ मगजमारी (माथापची )करेलन तब जाके एगो रचना तइयार होला ।रचना एकजुट करेलन आ माल-पताई के जोगाड़ करके  भोजपुरी साहित्य  बनावेलन। ई भोजपुरी साहित्य के परेमवे नु बा । बाकी हद त तब होला कि सउसे छपल साहित्य भेट दे के सधावे के परेला। सउसे मेहनत फोकटे में फोचाट में चल जाला ।अडी गड़ियन मे घुमे वाले भोजपुरिया लोगन भी लमहर भाषन भोजपुरी खातिर दिहन बाकी एकरा विकास खातिर एगो भोजपुरी साहित्य के कवनो किताब ना कीनिहन ।कड़ोर लोगन के मातृभाषा के ई हाल बा।  ई विश्वास ना होला बाकी ऐनकवा त झूठ ना नु बोलेला । एकरा के बूझी आ गुनी जा।ई छोटहन बात नइखे।असही भोजपुरी के विकास करब जा त एकरा के भुलाए के परी।छुछे पेटे केहू कतना दिन सेवा करी । एक त मोबाइलवे  सभ किताब लील गईल ।बाचल-खुचल उपेक्षा में समा गईल । मातृभाषा दिवस के दिन पोस्ट देख के मन आघा गईल।अनघा पियार लउकल बाकी सभ फरेब में लसारल रहे ।

भोजपुरी भाषा के विकास खातिर भोजपुरी पढ़े के आदी होखे के पड़ी।एकरा साहित्य के किने के पड़ी । धसोरला से काम ना चली।एकरा के दौड़ावे परी।ना त मंच के टटराईल जियान हो जाई ।

” भोजपुरी  त  सहेली  बा ।

विकास एकर पहेली बा ।।”

 

(अगर गलत कहत होखब त विदवान भईया लोग बुड़बक समझ के छमा करीहन।)

 

  •          उमेश कुमार राय

जमुआँव , भोजपुर(बिहार)

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