भोजपुरी कविता के राह में युवा कवि गुलरेज के ‘धाह’

भोजपुरी के युवा पीढ़ी के कविता में ताजगी त बड़ले बा बाकिर ओमें जवन उबाल आ आक्रोश के अभिव्यक्ति बा ओकरो में तल्खी ले जादे तथ्य आ समझदारी के प्रधानता बा।ई पीढ़ीअपना असंतोष,खीस आ नाराजगी के अपना संघर्ष,प्रतिरोध आ तर्कपूर्ण अभिव्यक्ति के जरिए मुखर करे के जानेले।गुलरेज शहजाद एह पीढ़ी के एगो महत्वपूर्ण हस्ताक्षर बाड़न।
भोजपुरी कविता के दूनू रूप- प्रबंध आ मुक्तक काव्य में अपना प्रतिभा के लोहा मनवा देबेवाला कवि आज मौजूद बाड़ें।एह पीढ़ी में सुशांत कुमार शर्मा जइसन प्रबंध काव्य के रचयिता कवि अगर बाड़ें त अक्षय पांडेय जइसन नवगीत विधा के मँजल कवियो हाजिर बाड़ें।गुलरेज त अपना प्रतिभा के कमाल प्रबंधात्मक आ मुक्तक काव्यो दूनू में देखवले बाड़ें।उनकर प्रबंध काव्य ‘चम्पारण सत्याग्रह गाथा’ (2018)में हालाकि भोजपुरी के वरिष्ठ कवि आनन्द संधिदूत के गाँधीकथा पर आधारित महाकाव्य ‘अग्निसंभव’ जइसन प्रौढ़ि नजर नइखे आवत बाकिर उनकरा प्रयास के त दाद देबहीं के पड़ी। हमरा उमेद बा ऊ अपना आगामी प्रबंध काव्य-रचना ‘नारायणी के दुख ‘ मेंअपना हर तरे के कमजोरी से छुटकारा पा लीहें।
‘अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन’ के 2022 के मोतिहारी सम्मेलन के दौरान गुलरेज जी के काव्य-कृति- ‘धाह’ उनका से हासिल करे के मौका हाथ लाग गइल।’धाह ‘ हम पढ़ लेले बानीं आ ओकरा बाद ई बात पूरा भरोसा के साथ कह सकत बानीं कि गुलरेज जी भोजपुरी कविता के आज एगो अइसन आवाज बन गइल बाड़ें कि उनकरा स्वर में समकालीन भोजपुरी समाज आ संस्कृति के सुख-दुख,जय-पराजय,उपलब्धि-चुनौती,विशेषता-विसंगति आ खूबी-कमी मुखरित भइल बा। गुलरेज के बारे में हमार इहे धारणा बनल बा कि उनकर काव्य-प्रतिभा कथाकाव्य ले जादे मुक्तके के भाव-भूमि पर आपन सतरंगी सौन्दर्य (शब्द-सौष्ठव)आ सुरभि (अर्थ-गौरव) लेले खुल के खिल सकत बिया।
गुलरेज के कविता संग्रह ‘धाह'(2021) के अधिकतर कवितन में मनुष्यता के संघर्ष,बेचैनी आ बेकली के अगर जथारथ से भरल चित्र देखे के मिलत बा त साथही एगो आशा आ भरोसा से भरल दुनियो उहाँ साफ तरे नजर आ रहल बिया। गुलरेज ऊब,उलाहना आ आक्रोश से अलहदा एगो अइसन संघर्षधर्मी युवा कवि के रूप में दिखाई पड़त बाड़ें जवन सृजनात्मक आ सार्थक हस्तक्षेप में विश्वास करेला आ लगातार बेहतरी के सपनन के संजोवले, सच्चाई के पक्षधरता स्वीकारत, एगो सुभग संभावना बरकरार रखले आगे बढ़त चलेला।
गुलरेज ‘धाह’के शुरुआते में अपना वक्तव्य ‘धाह के ऐनक में आपन बात’ में कविता के बारे में कुछ गौरतलब बात कइले बाड़ें,जइसे-
1-कविता जीवन आ समाज से निरपेक्ष ना होला बल्कि ऊ ओह में हस्तक्षेपो करेला।
2-बिना शिल्प के कविता विधवा के सून मांग खानी लागी।
3-राजनीति बाँट रहल बा आ हमनीं बँट रहल बानीं बाकिर कविता आ साहित्य आपन समाज आ लोग के जोड़ के अपना भूमिका के निर्वाह केतना कर रहल बा ,एह पर समय विमर्श के माँग कर रहल बा।
4- भौतिकवाद आ बाजारवाद के हल्ला-गुल्ला में मन के मुलायम कोना बज्जड़ भइल जाता।संवेदना के जइसे अकाल पड़ गइल होखे।
5-कविता भाषा में सपना देखेले,गावेले,सवाल पूछेले,आ चिंतित होखेले।जब सारा दरवाजा बंद कर दिहल जाला त कविता सारा खतरा का बावजूद एगो दरवाजा खुला-अधखुला राखेले- उमेद के।
एही उमेद के सपना के आदिमी के जीवन खातिर सबकुछ बतावत पंजाबी कवि पाश लिखले बाड़ें कि “सबसे खतरनाक होला सपनन के मर गइल,मिट गइल।” उमेद के अंत जिनिगी के अंत बनि जाला। कविता के लेके कवनो युवा कवि एतना साफ-साफ बतिया लेबे के अगर समरथ आ समझ राखत बा त ओकरा से ई भरोसा सहजे जाग उठी कि ऊ कविता में अपना कहन के लेके नाइंसाफी ना करी आ कविता के बरते खातिर ओकरा में हूनरो कम ना होई । समय,समाज,राजनीति,लोकतंत्र,अर्थतंत्र -सबके समझ आज केतना जरूरी बा आ एकरा बगैर कविता लिखलो आज दूर के कौड़ी हो गइल बा-ई बात आज एगो सच्चाई बनके सभ रचनाकारन के सामने उजागर बा। गुलरेजो एह से पूरा तरे वाकिफ बाड़ें। बाकिर कविता में शिल्प के लेके ऊ जवन उपमान गढ़ले बाड़ें ओमें हालाकि उनकर कचास जादे झलकत बा ,तबो ई बात त साफे हो जात बा कि कविता के शिल्प के लेके ऊ पर्याप्त सावधानी के बात जरूर गंभीरता से ले रहल बाड़ें।राजनीति के लेके उनकर बयान बा कि ई आज समाज आ देश के जोड़े से जादे तोड़े के काम करत बिया।गुलरेज शायद भूल रहल बाड़ें कि राजनीति के सब प्रयास सत्ता हासिल आ ओके बरकरार राखे खातिर होला।जोड़-तोड़ बराबरे ओकर एगो खास हथियार मानल जात रहल बा। राजनीति में सहजता आ सरलता के आज कवनो महत्व नइखे रह गइल,एकरा के मूरखपन मानल जात बा। ‘समावेशी विकास’ , ‘सभकर साथ सभकर विकास’ भा ‘सामाजिक न्याय’ आदि के जवन नारा उछालल जा रहल बा , ऊ छलावा से बढ़िके कुछऊ नइखे रह गइल-ई समझदारी आज के कविये ना हर नागरिक लगे जरूरी बा।गुलरेज जी खाली कविते ना लिखस ऊ सामाजिक-राजनीतिक दुनियो में पइसार राखेले। सांस्कृतिक कार्यकर्त्तो के रूप में ऊ भोजपुरी आन्दोलन के लेके अपना एह किताब में कविता लिखले बाड़ें, ओह से ई त साफ होइये जात बा कि ऊ पेट में गोइ के कुछऊ राखे वाला नखन। इहे कारण बा कि उनकर कवितो ठाँय से बनूक के गोली -जस छूट जाये वाली कविता बिया।गुलरेज कहत बाड़ें-“खबरदार अवगारे होई/ना सोचबs त मारे होई/बीचे कुछहूँ नइखे बाचल/अबकी आरे-पारे होई/मोल बा हमरो बात के बूझs/कइसे बात तोहारे होई/भोजपुरी के हक चाहीं अब/फरियवता बरिआरे होई।” सत्ता के अपना हक बदे खबरदार करत कवि अपना कमजोरियो से वाकिफ बा।लिखत बा-“अलगे अलगे दयरा में /डुगडुगी बाजे/अलगे अलगे खेल तमाशा/करतब होता/अपना आप से टकराहट बा।”भोजपुरी आज हतभागी बिया त अपने लोग के चलते,ऊ हारल -थाकल -लाचार दीख रहल बिया, त अपने बीच के लड़ाई , मनमुटउवल आ ‘हम’ के बेमारी के चलते।भोजपुरी के ‘हम’ कबो एकरा मजबूती के निशानी रहे बाकिर इहे भाव आज अपना नकारात्मकता आ निषेधात्मकता के चलते भोजपुरी खातिर आत्महंता हो गइल बा।
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भोजपुरी में जब आधुनिक भावबोधी शुरुआती कविता- संग्रहन के बात चलेले त ओमें ‘ ई हरनाकुस मन'(पांडेय सुरेन्द्र), ‘बाकिर'(शारदानंद प्रसाद),’बूँद भर सावन'(प्रो.ब्रजकिशोर), ‘टटात परछाई'(डा.विश्वरंजन), ”का कहीं'(शारदानंद प्रसाद), ‘कुछ खास किसिम के आवाज’ (शशिभूषण लाल), ‘लेके ई लुकार हाँथ में'(डा.स्वर्णकिरण),’एगो मेहरारू'(महेन्द्र गोस्वामी) आ ‘औरत जात'(मलयार्जुन) आदि कृतियन के चरचा बड़ी महत्वपूर्ण रूप में होला।ओही परम्परा में आज के कवि गुलरेज शहजाद के कृति ‘धाह’ के परखल जाए के चाहीं। गुलरेज के एह कृति में आज के मनुष्य के जीवने लेखाँ विविधता बा। ई विविधतापूर्ण विषय आ रूप- दूनू स्तर पर बा।गुलरेज के कविता एजवा शाश्वत मानवीय मनोभाव प्रेम के अपना तूलिका से चित्रित करत बिया त दोसरा तरफ प्राकृतिक उपादानन के मनुष्य द्वारा हो रहल दोहनो उनकरा चिन्ता में शामिल बा।उनकर कविता राजनीतिक छल-छद्म पर खुलके बात करत बिया त अभिव्यक्ति-संकट आ लोकतंत्र के उड़ावल जा रहल माखौलो पर ओकर नजर बा।’बाजारवाद’ खाली मनुष्य के आर्थिक शोषणे के जरिया नइखे बलुक ओकरा जरिये फइल रहल अपसंस्कृति आ ओह से घवाहिल हो रहल लोकसंस्कृति के बचावे खातिर व्याकुलता आ अकुलाहटो के स्वर प्रखर मिलत बा कवि गुलरेज के कविता में ।
कवि अपना अभिव्यक्ति के अकुलाहट आ ओमें समाइल पीड़ा आ कसक के व्यंजित करत कहत बा-“लिख-लिख के/कहिया ले आपन/मन के जहर-माहुर उबीछीं/कहिया ले /कविता में सुसुकीं/कहिया ले /गीतन में रोईं/कहिया ले/शब्दन में कुहुकीं?”(सभ केहू नाचे गाये)कवि चाहत बा कि अइसन परिवेश बनो जेमें सब केहू नाचे गावे आ कविता सतरंगी तितली बनके थिरके।दरअसल,कविता तितली बनके तब ले ना थिरकी जब ले आम मनई व्यवस्था के चक्की में पेरात -गरात रही आ समय के थपेड़ा ओकरा के अपना हिसाब से ता-ता-थैया नाच नचावत रही।
कवि अपना एगो रचना में कवनो रचनाकार के राजनीतिक हो गइला के ओकर कमजोरी मानत बाड़ें।उनकर पंक्तियन के देखल जा सकत बा-“रचनाकार जब /राजनीतिक हो जाला/ तब रचना -संसार/ओकरा खातिर/’वर्जित प्रदेश’ हो जाला/भोथड़ हो जाला/भावना आ शब्दन के हथियार।” कवि के एह समझदारी के आधार ई सोच बा जवना के चलते ऊ कह रहल बाड़न कि “गीत आ गजल के राधा/राजनीति के नगरवधु के/अन्हार कोना में/मुँहकुरिये गिरल बिया ×××××परिवर्तने परिवर्तन बा/ सिरजन नइखे/घात बा प्रतिघात बा/सिहरन नइखे/ ललाट पर चमकत/लहु के टीका बा/चंदन नइखे/लोभ बा दंभ बा/समर्पण नइखे/दुख के धाह बा/समूचा विचार झँउस रहल बा/आपन ‘आप’ /बचावे के जतन में बानीं/कोशिश बा कि/ मरे नाहीं आँख के पानी।” (मजबूरी) ई कविता एक तरे से देखल जाव त कवि के पूरा रचना-विधान पर प्रकाश डालत बिया। कवि के एह समझदारी से कि राजनीतिक बतकही से कवनो रचना भोथड़ हो जाले-सभकर सहमत भइल जरूरी नइखे। आज राजनीति के हस्तक्षेप,ओकर प्रभाव,ओकर तिलिस्म आ ओकर चकुरचाली के ना समझे आ समुझावे वाला कवि के या त बहुत मासूम आ नादान मानल जा सकत बा या बहुत चतुर।राजनीति से आँख चुराके चलता ले जादे जरूरी बा ओकर चाल आ चरित्र के पढ़ल,ओह पर बहस कइल। राजनीति सार्वजनिक जीवन आ समाज के पोर-पोर में आज समाइल बिया। अइसन में कवनो कविता भा रचना राजनीतिक होके भोथड़ा ना होई बलुक ऊ आउरो धारदार हो जाई।राजनीति से परहेजो एक तरे के बड़ी खतरनाक राजनीतिये मानल जाले।ललाट पर तिलक के जगहा लहू के टीका चमकत बा त एकर जिम्मेवार खाली राजनीतिये नइखे।लोभ आ दंभ आज समाज आ व्यक्ति में अगर समाइल बा , त एकर कारन खाली राजनीतिये बा- अइसनका सोच एकांगिये मानल जाई। साथही दोसरका तरफ एक बात हम इहो जरूर जोड़े के चाहब कि अपना ‘आप ‘ के बचावे के जतन आ
दंभ से छुटकारा पावे के कोशिश- ई दूनू बात ऊपर से भले विरोधाभासी लागत होखे बाकिर एह में वास्तविक विरोध नइखे। अपना ‘आप’ के बचावल दरअसल मानवीय अस्मिता आ वजूद के बचावल बा।
कवि राजनीति में नाजायज गठजोड़ के आज आम बात बतावत एकरा मौकापरस्ती के खूब दूसले बा ई कहत कि “जेने देखीं तेने लउके/एकहीं सोच के चट्टा-बट्टा/अट्टा पट्टा मार झपट्टा।”(नाजायज गठजोड़) कवि के एह राजनीतिक समझदारी भरल विचार आ ओकर अभिव्यक्ति से कविता आउरो ताकतवर बनल बिया ना कि ऊ कमजोर भइल बिया।
धर्म आ राजनीति के घालमेल से आज हलकानि आ तनाव बढ़त जा रहल बा।सामाजिक सद्भाव आ शांति एह से बुरा तरे प्रभावित हो रहल बिया।कवि के नजरिया एजवा एकदम साफ बा।ऊ कहत बा-“राजनीति के हल्ला-गुल्ला/धरम कबड्डी खेल भइल बा।” (चेत कबड्डी)
कवि सामाजिक-राजनीतिक विसंगतियन के साथे-साथे मनुष्यता के सामने खड़ा पर्यावरण संकटो के प्रति सचेत बा।’पानी के मर्सिया’ शीर्षक से चार गो कविता एह किताब में बाड़ी सन आ कुछ आउरो रचनन में पर्यावरण के लेके कवि के गम्भीर चिन्ता अभिव्यक्त भइल बा । कुछ पंक्तियन के देखल जा सकत बा- ” दरक गइल धरती/हहर गइल पानी/जाके भीतरे/ठहर गइल पानी/जब से आँखिन के/मर गइल पानी।”(पानी के मर्सिया-एक)भा “भीतरे-भीतरे खौल रहल बा /उपरि में धूरा उड़िआये/सभे केहू छाती पीटे/सभे कहे हाय-हाय/डर के अदहन मन में डभके/अब केकरा के दोष दियाव/के भरी धरती के घाव?”(पानी के मर्सिया-2)
भोजपुरी कविता में पानी के लेके अइसन गंभीर चिन्ता एकर जीवंतता के परिचायक बा।
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‘धाह’ के भूमिका लिखत डा.ब्रजभूषण मिश्र लिखले बानीं -” गुलरेज के सोच में नयापन बा ,कहे के लहजा मुलायम बा।” भूमिका-लेखक के एह पंक्तियन के पढ़िके हमरा थोड़े देर खातिर अनकस बरल।सोचे लगनीं कि कवि अपना संग्रह के नाम ‘धाह’रखले बा आ भूमिकाकार ओकरा कविता के लहजा के मुलायम बतावत बा।फेर बाद में कवितन के पढ़ला के बाद बुझाइल कि कवि गुलरेज के विश्वास कविता के ‘कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे’ माने में जादे रहल बा। मिश्र जी गुलरेज के कवितन में जवना मुलायमियत के बात करत बाड़न ऊ शायिद उनकर ‘ बून बून के झाॅझर’, ‘सावन रंग’,’मन संतूर नियन बाजल’ ,’प्रेम’,’तबो प्रेम रहेला जीवित’,’समझीं प्रेम के मरम’ ,’राग माला’आदि शीर्षक कवितन आ ‘त्रिवेणी’ आ ‘बूनी’ पर लिखल कवितन के हिसाब से बिल्कुल सही बा।बाकिर कुछ कवितन में जहाँ कवि जथारथ के जमीन पर नंगे पाँव टहलत नजर आवत बा ऊ व्यंग्य के नश्तर उठा लेत बा।कवि एजवा बेलाग होके साफ-साफ बोले लागत बा आ ओकरा कविता के धाह से दयानिधि के हिटलरी शान परेशान होखे लागत बा-“तीत भइल तीना तरकारी/मार पड़ल गजब सरकारी/खाके जेबी में सन्नाटा/जिनिगी लागे बहुते भारी/निपट गँवार बानीं का बूझीं/विश्व बैंक के अझुरा-अझुरी/वर्ल्ड ट्रेड के दउरा-दउरी/कार्पोरेट के रगेदा-रगेदी/का जानें इंडिया शाइनिंग/×××××अच्छा दिन आ बाउर लागे/खुद्दी-खुद्दी चाउर लागे/राउर जस दुनिया में चमके/सुन्दर बस्तर झमझम झमके/कड़क तरख बोली बा राउर/मुस्की जस बसमतिया चाउर/कतना करीं महिमा गान/हिटलरी बा राउर शान/दया करीं हे दयानिधान।”(दया करीं हे दयानिधान)हिटलरी शान वाला दयानिधान से दया के भरोसा कइसे पालल जा सकत बा!कविता एजवा प्रकारांतर से जवन सवाल खड़ा कर रहल बिया ओह से आमजन के स्वर सहजे जुड़ जात बा।कवनो कविता आम मनई के आवाज अगर बन जाव त एह ले बढ़ के ओकर दोसर सफलता का होई?
प्रेम पर हालाकि बढ़िया कविता एह संग्रह में बाड़ी सन बाकिर ऊ कवि के मूल स्वर नइखे ।ऊ खुदे कहत बा-“कतना कुछ त हमरो भीतर/चक्कर खा के नाच रहल बा/मौन के भाखा में बेचैनी/आउर-बाउर बाँट रहल बा।”(आउर-बाउर बाँट रहल बा)। साँच कहल जाव त इहे ‘आउर-बाउर’ आज के कविता के मूल स्वर बा।
कवि के छोट कविता में बड़ बात कहे में मास्टरी बा। नजीर के तौर पर दू गो कविता देखल जा सकत बा-1-“केहू/बोलल/बोल/रहे /बतिया /गोल/रहे /घूमत/ मन/बात/भइल/घात/आँख/झरल/ रात।”(बूनी-2)2-मन मोर पियासा बा/एने पानी के बदला में/अमृत के दिलासा बा।”(त्रिवेणी-1)पानी जहाँ दुश्मन होखे ओजवा अमरित के दिलासा केतना बड़ ठगी बा ,कवि अपना एह बहुते छोटहन कविता में गंभीरता से बता देत बा।
गुलरेज अपना कविता में भोजपुरियत कवनो फैशनिया ढंग से नइखन घोरले-पिरोवले। उनका कविता में अगर चना-चबेना,सतुआ,चिउड़ा,मकुनी,जाउर,मालपुआ,गुलगुल्ला,दुधपुआ,भभरी रोटी,पिड़ुकिया,ठेकुआ जइसन पकवान बा त कनवा भर गमकौवा तेल, हचका में गइल साइकिल बिया,कटहर के लासा बा,पानी बतावे वाली घोघो रानी बाड़ी,नदी आ पनसोखा बा।जहाँ ई सब बा ओजवा गाँव में शहरीपन के हो रहल पइसार के साथे-साथे शहर में घुसिआइल देहातो के कइसे अलोता कइल जा सकत बा?एही से कवियो कहत बा-“आपन कथी बात बताईं/अलग बा आपन रामकहानी/जे बा देसिल,थाती बा/भले शहर में बानीं लेकिन/मनवा ई देहाती बा।”(मनवा ई देहाती बा)
अपना एह संग्रह में अमरीकी कवि मार्क स्ट्रैंड के एगो कविता के भोजपुरी अनुवादो गुलरेज प्रस्तुत कइले बाड़ें। बढ़िया कविता के पूरा भाव-विचार के जोगावत साफ-सूथर अनुवाद ई बतावे खातिर काफी बा कि अब भोजपुरी के ठाट आ कलेवर में पूरा दुनिया भर के सोच आ संवेदना के सहजे परोसल जा सकत बा।एही तरे भिखारी ठाकुर पर लिखल गुलरेज के कविता’नटमेठिया’ पढ़े लायेक बिया।
कविता में बिम्ब-प्रतीकन के प्रयोग के साथे कवनो तरे के जबरदस्ती नइखे दिखत।कवनो युवा कवि अगर आपन बात के राखे खातिर आपन एगो खास भाषा गढ़े लेले होखे आउर ओमें अगर ताजगी होखे आ ओकर संवेदना आ विचारन के धारदार ढंग से राखे के लूर-सहूर होखे त कविता के ऊँचाई मिल गइल स्वाभाविक बा। गुलरेज एह दिसाईं निराश करेवाला कवि नइखन। विश्वास कइल जा सकत बा कि उनकर आगे आवे वाली कविता आउरो मजिगर आ मँजल होई।
  • सुनील कुमार पाठक, पटना

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