बगौरा तs बगौरे हs !!

ए हे बगौरा !
तहार गजबे बा कहानी
केहू कहेला-
बड़हन -बड़हन बाग रहे एजवा
एही से नाम पड़ल-
बाग बड़ा -‘ बगौरा’
बीच गाँव में बड़का एगो गढ़
गाँव के बहरी
उत्तर से घूसे में बबुआ जी के कोठी
दक्खिन आ पूरब के कोन बन्हले
राम नारायन दास महंथ जी के मठिया
पच्छिम आ दक्खिन में शिवाला के मंदिर
पच्छिम आ उत्तर के भंडार कोन पर
टिकुलिया स्थान के भोले बाबा।
काली माई-चार जानी चार दिसा में
एक जानी शिवाला मंदिर का लगे
एक जानी पच्छिम टोला वाली
एक जानी बैलहाटा वाली
एक जानी पाठक टोली/अहिरटोली वाली
छठ घाट एके गो रहे कबो
शिवाला पोखरा पर
सभे ब्रती आँट जाव
बाद में भीड़ बढ़ल तs
बगौरा कोठरियो वाला पोखरा पर
छठ होखे लागल ।
ना पोखरा बँटाइल ना घाट
ना छठी माई, ना कवनों मंदिर
सभ जगे सभे बेधड़क आवे जाव
गाँव में दू गो मस्जिदो रहे
ईद में रसूल मियाँ
आ दिलजान धोबी
बाबा खातिर सेवई लेके पहुँचे लोग
तs छठीमाई के ठेकुआ
आ फगुआ के पुआ-पूड़ी
बड़ा जतन से जोगा के राखस इयाजी
चार दिन बादो आके ऊ लोग ले जाव ।
(2)
फगुआ कढ़ाईं
बाबू टोली के फागू राय जी
आ फेरू बाद में हर टोला में
मंदिरे- मंदिर नधा जाव
फगुआ बीतते रामनवमी के डोल में
मकून जी नाच गिरोह के
अगुआई करत जरूर दिखस
लहँगा पर करिया चसमा चढ़वले
बुढ़इलो पर लमहर केश से
मेंहदी के रंग उतरल
कबो ना दिखल उनकर ।
दू बेरा डोल निकले बगौरा में
बबुआजी के कोठी से ठाकुर जी आईं
नवका बाजार के मंदिर के
भगवान जी से भेंट करे
फेरू ओजवे से रामनवमी के
डोल निकले चैत में
आ भादो में कृष्ण जनमाठमी के
डोल निकले बगौरा गढ़ से
हमनीं त ना देखले रहनीं
बाकिर बाबा बताईं कि
बगौरा के बरह्मदेव मिसतिरी
भारी नामी कारीगर रहलें
जनमाठमी के अइसन चाका वाला
रथ बनवले रहलें
जवन बिना मोटरे के चले
पीछे से ठेलाव आ
डरेवरो बइठे सीट पर ।
बगौरा के कोठी के डोल में
बुढ़वा शाहियो जी आईं
बाकिर बगौरा गढ़ के
राजा ठाकुर प्रसाद शाही जी के
गुजरला के बाद
गढ़ के मैनेजर कैलाश बाबू आ
गढ़ के दुलहिनजी के भैया जी
जेकरा के मय गाँव ‘मामाजी’ कहे ,
उँहे दूनू आदमी
डोल के जुलूस में आगे-आगे चलीं ।
बुढ़ऊ शाही जी के अंगरेज
‘रायबहादुर’ के उपाधि दिहले रहले सँ
मुजफ्फरपुर के कमीश्नर रहनीं उहाँ के
बिहार के चौंतीस के भूँईडोल के बेरा
लोग कहेला खूब सेवा के मेवा
पवले रहनीं उहाँ के
कोठी के शाही- परिवार में
एके गो लड़िका के परम्परा
खूब चलत आवत रहे –
हरिहर शाही जी के भरत शाही जी
भरत शाही जी के शत्रुघ्न शाही जी
शत्रुघ्न शाही जी के कौशलेन्द्र शाही जी
कौशलेन्द्र शाही जी के कमल शाही जी ,
हमनीं तs एतने सुनले बानीं
बाकिर बा नामालूम ।
बगौरा गढ़ पर के शाही -परिवार में
लड़किये लोग के बहार रहे
राजा जी लड़िका खातिर
केतनो जतन कइनीं
बाकिर आजादी के बाद
दामादे लोग के जिम्मे
पूरा दरबार रहे।
बगौरा गढ़ आ कोठी में
बढ़िया दूरी रहे मील भरके
कोठी के मालिक
रायबहादुर साहेब के बेटा बबुआजी
आ गढ़ के मालिक
बेटी-दामाद लोग।
गढ़ पर के मामाजी
गाँव भर खातिर
पूरा मनलगावन रहनीं
हर शिवरात्रि के ‘मेंहदार मंदिर’
पैदले सात मील जाके
भोला बाबा के जलढरी करके
किरिन उगे के पहिलहीं
गढ़ पर चढ़ जात रहनीं।
(3)
बगौरा के बबुआजी के तs
बाते कुछ अलगा रहे
पटना सेंट जेवियर के पढ़ाई आ
आई सी एस के नोकरी छोड़ि
बगौरा -आवाई के कहानी
दोसरा के का कहे के
बबुए जी के मुँहे हमनीं सुनले रहनीं
बबुआ जी के गाँव में पूरा आदर रहे
उहाँ के बात ना केहू काटे, ना उठावे।
ओतना पढ़ल के रहे गाँव में ओह बेरा ?
संस्कृत ,हिन्दी, अंग्रेजी -सब
झार के बिग देत रहनीं उहाँ के
नवका बाजार में आ के
बइठीं रोज उहाँ के
कुरसी पर उहाँ के
आ बेंच पर दरबारी लोग
गेना बाबा, लल्लू लाल जी,
सीतापति चाचा
पुरनका बाजार के
घोड़ा वाला डाकडर साहेब जेकरा के
बबुआजी ‘ओ मिस्टर डाॅ.हार्स !’ कहीं-
रोज के सिंगार रहे लोग-
एह बइठकी के,
पियाजू आ चाय के चसका
खींच ले आवत रहे
गाँव भर के टोला-टोला के
खबरिया लालो लोग
साँझ होते पहुँच जात रहे लोग
बाकिर एजवा
झगड़ा- फरिअउवल ले जादे
मनोरंजने के महफिल जमे।
एगो पूरा पाकल कटहर
अकेले एके बइठकी में
खा जाये वाला के इनाम रखाव ,
एगो नागा बाबा अइले तs पूछाइल-
केतना किलो ले बान्ह के टान लेब ?
पाँचे किलो में भाग चलले ।
बबुआ जी गाँव के नाज रहनीं
मुखिया जब चुनाईं निरविरोधे
हर बेरी केहू ना केहू खुरिआव
बाकिर सभे मिल के
समुझा के बइठा देव।
बबुआ जी अकेले सबकुछ रहनीं
का ना रहनीं ?
किसानो निठाह , विद्वानो पकिया
कीरतनिहा अइसन कि झुमा दीं सभके
अपना जिनिगी में जिला -जवार में
पाँच सौ जग करवले रहनीं
कवितो लिखीं बबुआजी
‘तुलसी जयन्ती’ मनाईं
आपन जमीन देके इस्कूल खोलववनीं
नाटक करवाईं , कवि- सम्मेलनो करवाईं
क्रिकेट- फूटबाॅल टूर्नामेंटो चले
सभे गहागह रहत रहे
बबुआजी के मान-मरजाद बढ़त गइल ।
चुनाव के समय गाँव एकमुँहा रहत रहे
बबुआ जी परचार – मंच से
खूँटा- ठोक कहीं-
“बगौरा के भोट एके जगे जाला।”
माने बबुआ जी जेकरा के कह दीं
मय गाँव उनके पर मोहर मार आवे ।
(4)
बाद में समय बदलत गइल
बबुआजी केहू के कुछऊ ना कहीं
तबो राजनीति में मनवा त लागते रहे
महामाया बाबू के सरकार के बेरा
विधायको बने के सरधा पूरा लिहनीं।
बबुआजी बाद में
सब पार्टी के मंच पर
जाये लागल रहनीं
पार्टी-पउवा से अलगा
अपना गाँव के गाथा सुना के
ताली बजवाके
सब नेता लोग के खुश कर दीं ,
बबुआ जी समुझ गइल रहनीं-
गाँव में लोकतंतर आ गइल बा,
केहू के केहू सुनेवाला नइखे,
सभे सुराजी हो गइल बा-
अपना मनमरजी से
अरजी दागत जीयेवाला।
बबुआजी अब बबुआ जी
ना रह गइल रहनीं,
ना गाँवे खाली बबुआ जी के
रहि गइल रहे
बबुओ जी बदल गइल रहनीं
गाँवो बदल गइल रहे
एह बदलाव के बूझत
बबुओ जी ठहर आ
सँभर गइल रहनीं
आ गाँवो बबुआ जी के छोड़ि
आगे निकल गइल रहे ।
अब बबुआ जी सरग सिधार गइल बानीं
आ गाँव में ना जाने केतना बबुआ जी लोग
टोले-टोले,घरे-घर तइयार हो गइल बा
बाकिर केहू के सुने वाला आज केहू नइखे
बगौरा माने बबुआ जी
आ बबुआ जी माने बगौरा
होत रहे तब, आ आजो-
गाँव के नाम केहू के बताइब
तs ऊ जुरते पूछी-
“बबुआजी वाला बगौरा?”
(5)
आज बगौरा हमार एगो पूरा
निठाह भारत हो गइल बा
सभका के परसादी बाँट देला चुनाव में
भोट कबो हमरा इहाँ ना छपात रहे
ना आजे लुटात बा
किनइबो ना करे केहू से
बगौरा मनमौजी हs
बगौरा के लोग मनमौजी हs
बगौरा जमींदारी से उबरियो के
मिजाज में कवनों जमींदार से
कम ना हs!
उहे रसिकता, उहे कलाबाजी
ओइसनके रिझावन ,ओइसनके फँसावन
बात बनउवलो में
बगौरा से केहू ना आज ले
पार पवलस
ना आगहूँ पार पाई!
हमार बगौरा तs बगौरे हs !!
○○○○○
□ डाॅ.सुनील कुमार पाठक
पता-
(फ्लैट नंबर-303,परमानन्द पैलेस,सर गणेशदत्त मेमोरियल काॅलेज के सामने, आर पी एस मोड़ ,पटना।)
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