मां, माई मे त पुरी दूनिया समाहित रहेले, माई से बड़ कुछ ना । जनम देवे वाली पालन पोषण करे वाली माइए होनी। शास्त्रन में माई के उत्पत्ति मैं तीन कारण बतावल गयल ह पहला इच्छा दूसरा शक्ति अउर तीसर ह क्रिया। माई से अलग कोई भी ए तीनों चीज शामिल ना कर सके ना। इच्छा शक्ति अउर क्रिया क नाम ही जीवन ह । शारदीय नवरातर में आदि शक्ति श्री दुर्गा भवानी के अंश अवतार का रूप मे महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती इ तीनों शक्तियन के पूजा का विधान शास्त्रन मे लिखाइल बा। दुर्गा जी एही तीनों रूपन मे अलग अलग बल प्रदान करैनी । आत्मबल, धनबल, जनबल । देवी माई प्रकृति से परिवार आउर परिवार से समाज आउर राष्ट्र के एकता का संदेश देनी । अगर तन मन स्वस्थ ना त सब निरर्थक बा । एही वजह से समस्त ग्रह नक्षत्र उनके अधीन रहेला । दुर्गा माई सिंह पर सवार रहेनी, सिंह (बाघ) शक्ति क प्रतीक बा । आत्म बल क प्रतीक ह। संपूर्ण जगत शक्ति से ही बनल बा। आदिशक्ति अपने अनेक रूपन में व्याप्त हईं । जेतना भी स्त्रीलिंग शब्द ह, सब में शक्ति क रूप ह। नवरातर में शक्ति पूजा खाति अखंड ज्योति जलावल जाला आउर गणेश पूजा, भूमि संकल्प, नवग्रह, भैरव पूजन जरूरी होला । सबसे पहिली कलश स्थापना कयल जाला, कलश के सुख, समृद्धि, वैभव आ मंगल कामना क प्रतीक मानल जाला । माई भगवती क पूजा अर्चना करत समय सबसे पहिले कलश क स्थापना कयल जाला। इ कलश सोने चांदी तांबा भा मिट्टी कुछों क हो सकेला। एकरा के मंत्रोंचार के साथे पवित्र नदी क नवरात्र में जल भर के बेदी पर स्थापित कयल जाला । कलसा में सुपारी ,सिक्का डालके आम क पत्ता रखल जाला । कलसा के मुँह के ढक्कन से ढक देवें के चाही। ढक्कन पर चावल भरके रखके चाही। कलश के चारों ओर मिट्टी में जौ या धान बोअल जाला। कलश पर स्वास्तिक चिन्ह बनावल जाला। नारियल के चुनरी में लपेटके रक्षा से बांधके नारियल के कलश पर रखके कूल्हि देवतन क आवाहन कयल जाला आउर अंत में दीप जला के कलश क पूजा करे के चाही । इहैं 9 दिन तक अखंड दीप जले ला। नवरातर में पहले दिने शैलपुत्री माइ पूजा कयल जाला। फिर ब्रह्मचारिणी रूप क , चंद्रघंटा माई क फिर कुष्मांडा माई रूप क स्कंदमाता रूप क ,कात्यायनी रुप क, कालरात्रि रूप का फिर महागौरी रूप में फिर सिद्धिदात्री स्वरुप माई क पूजा अर्चना कयल जाला।
अपने कुल परंपरा के अनुसार कुछ लोग नवरात्र के सप्तमी तिथि आ अष्टमी तिथि के आउर कुछ लोग नवमी के माई दुर्गा क विशेष पूजा आ हवन करेंलन आउर ओकरा बाद कन्या पूजन कयल जाला । कन्या पूजन में छोटी- छोटी नौ गो कन्या लोगन क माई क रूप मानके मां दुर्गा के भौतिक रूप क पूजा कयल जाला आउर ओकरे संगही एगो लंगूरा (छोट लइका) के खियावल जाला । कन्या माई दुर्गा क भौतिक रूप हई, शक्ति स्वरूपा हईं । उनकर श्रद्धा भक्ति से पूजा कइले से माई प्रसन्न होनी । कन्या पूजन के दौरान सबसे पहिले कन्या लोगन क पांव धोके उनके माथे पर रोरी – चावल का टीका लगाके हाथ में कलावा बांध के फूले क माला पहिनावल जाला । फेर कन्या लोगन के चुनरी हलवा – पूरी चना अउर अपने समरथ के अनुसार दक्षिणा देके, उनकर गोड़ लाग के माई क आशीर्वाद लेवल जाला।
विजया दशमी के दिने पुरे भाव भगति से नम आंखी से माई के विदा कयल जाला । ई कहि के फिर आया माई मोरे दुअरिया।
- डॉ ऋचा सिंह