ओढ़ि बसंती चुनरिया
गुजरिया फागुन फाग मचावै।
गम गम गमके नगरिया
गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–
फिकिर कहाँ फागुनी रंग के
बनल बनावल अंग अंग के
देखत झूमत डगरिया
गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–
चढ़ल खुमार इहाँ अनंग के
दरस परस आ साथ संग के
मातल बहलीं बयरिया
गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–
सहज सुनावत सभ ढंग के
होरी में कब भइल तंग के
बहके लागल नजरिया
गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी