कब दरक गइल जियरा
उधियाइल भिनुसहरा
अब टोवत बेवाई
सभे अहमक़ कहाई ।
साटल पेवना भइल जिनगी ॥
घाव बाटे जियतार
टकटोरत बार बार
उहाँ उजार खोरिया
देखीं जवने ओरिया
काँच खेलवना भइल जिनगी ॥
बड़की बिटिया सयान
सभे उझिलत गियान
दाना ला मोहताज
कइसे चली राज काज
ओद लगवना भइल जिनगी ॥
माँग बहोरि आंखि नम
पायल बाजल छमाछम
केहरो मन के खटास
टूटि बिखरल बा आस
बिसरल चूवना भइल जिनगी ॥
घरे खलिहा सिकउती
इचिको नइखे बपउती
कहवाँ बाटे चउपाल
भर गउवाँ बा बेहाल
जबरी पहुना भइल जिनगी ॥
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी