परिवार के देल पगड़ी: खानदान के इज्जत

बाप – दादा के नांव के आगे सिंह लागल रहे। सिंह के आपन एगो अलगे पहचान होला आपन एरिया में। आगे अउर बनल बाबू कुंवर सिंह नवाज देलन एगो अउर टाइटिल,नाम के आगे चौधरी लगाके काहे कि एक जंगल में दूगो सिंह ना रहे। अउर बनल चौधराहट के जोमे मातल खानदान धन के किनारे करि रईसी आ इज्जत बढ़ावे में लागि गइल।रईसी एह परिवार में ऊ ना रहे जेवन रईस परिवार में रहेला। इज्जत ढोये खातिर रईसी कान्हे ढोआत रहे। जेकर पहचान ओह घरी के बिहार के सतरहो जिला में रहे। भोजपुर मोट गिनाला मगह – मैथिल के सामने बाकिर भोजपुर के कुरमुर्ही  ना। कुरमुर्ही के महिनिये पहचान रहे।बसिंदा ओहिजे के रहे परिवार,बस गइल रहे नोनार में नतुहा बनके ना। एगो मुसस्माति के गोद में बइठ।

बाबूजी कृषि स्नातक, खानदान के दोसर नोकरिहा।अपना नांव के साथे खानदानी टाइटिल त रखलहीं रहन साथे प्रसादो जोड़ लेलन।उहाँ के साहित्यकारो रहीं त गाहे बगाहे ‘ बसर ‘ आ ‘ आरोही ‘ बन जात रहीं जगहा देखि। बाकिर ई का जब लडिकन के नांव धरे के बेरा आइल त आपन पाँचों टाइटिल ना देके खाली नांवे देई जग में उतार देनी आपन नाव खेवे के अपना बले।अपना बले एह से कहनी ह कि राहि उहाँ के देखा देत रहनी बाकिर कबहूँ पतवार ना संभलनीं,अँगुरी ना पकड़नी,नाव के गंतव्य के ओरि खुद बढ़ावे के ज्ञान देनी। जरूरत पड़ला प ठेलियों देनी अब तू जानऽ सूखल जमीन पर मुँह भरे गिरबऽ भा पानी में डूबी मरबऽ।स्वभाविक बा अकेलुहा हाथ – गोड़ मारी।अउर त अउर खानदानी भा आपन टाइटिलवो ना देनीं।ओकरो पीछे कवनो कारण होखे। हमरा त बुझाला कि टाइटिलो से कहीं जाति के नाम, परिवार के नाम, समाज के नांव पर कवनो सहारा ना मिले आ संतति आपन करम अनुरूप बढ़े इहे सोच होई टाइटिल ना देवे के पीछे। उहाँ के सोना से विशेष प्रेम ना रहे, ना विरासत में ढ़ेरका सोना के ढ़ेर मिलल रहे। किसान खातिर माटियो सोना होला,उहो सोना हिसाबे से उहाँ पास रहे। नौकरी सरकार के कृषि विभाग में करत रहन ऊ किसाने जस कूट पीसके खाये वाला विभाग रहे, सोना उगले वाला ना। रउवा जानत बानी ढेर सरकारी विभाग सोनो उगलेला। तब फेर कवना फेरा में बाबूजी हमनी दू भाई के नाम कनक किशोर आ कंचन किशोर अउर पाँच बहिन के नाम स्वर्ण चम्पा, स्वर्ण रेखा, स्वर्ण रेण, स्वर्ण लता आ स्वर्ण किरण रखलन ई ऊ जानस। बाकिर दुनिया सोना के प्रेमी होला, सोना से कुछ विशेष आस रखेला एह से सोना से जुड़ल नाम के माथे आपन नाम के सार्थकता बचावे के भार होला।मन में एगो डर बइठल रहेला कि करम छोट देखि लोग ई ना कहे कि चौधरी जी के सोना खाली नांवे के सोना बा।गांवे लइकाई में एगो खूब बोल सुनत रहीं ‘ ई हाल रहल त हाकिम (नांव के) बनबऽ फलनवा के बेटा जस,ना सीखबऽ लुर त माथे चढ़ी गनऊर ‘। बाबा तनिको ऊँच – नीच देखस त तड़ दे  आनो घर के लइकन के टोक देस कि बाप ना दादा पूत हरमजादा। एगो छोट चचेरा भाई के बाति – बाति पर सुनावस कि सराहले बहुरिया डोम घरे जाले उनकुर गलती देखके। बाबूजी हमरो के तनिका ऊँच – नीच पावस त कह देस चौधरी खानदान के खून हव हमरा में आठि आना असर होई खनदान के त तोहरा में चवन्नी भ त होखे के चाहीं।अब ऊ चवन्नी भर जोगावे बचावे के चक्कर आजु ल चलत बा।लइकाई में का पढ़नी ओकर जिक्र नाही करीं त ठीक बा तबो पढ़ाकू गिनात रहीं गाँव में।उहे विसेषणवा के लाजि बचावे खातिर सोझबकि बनी कबो मौन त कबो नाटक के सहारा लेत बढ़ल जाति रहीं। बाकिर ढोंग कबले चलित। आखिर ऊ दिन आ गइल जब दसवाँ में रहीं।मिश्र जी हेडमास्टर साहब भरल क्लास में नंगा करत कहले कि ई घुन पहिले से लागल बा कि एहिजा आके। एहिजा आके मतलब नबीनगर, बिहार के चितौड़गढ़ आके ।पूछले भर रहिते त कवनो बाति ना ऊपर से धमाधम। बाकिर कबो – कबो ठोकरो बड़ा काम के साबित हो जाला।उहे ऊ ठोकर रहे कि सोझ राहि धरा गइल।ओइसे पहिलहूँ के राहि टेढ़ ना रहे काहे कि बाबूजी से के कहो उनुकर बोली आ आँखिनो से डर लागे। आगे बढ़नी त पहिला पोस्टिंग सख्त ना बाकिर निछुका ईमानदार पदाधिकारी बशीर अहमद खां के संगे आ विभागाध्यक्ष आर पी सिंह ग्रेट, जेकर इमानदारी से माननीया प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी प्रभावित रही, के मातहत भइल।एक त करईला ऊपर से नीम के चक्कर, दूनो पदाधिकारी अपना आपि में अनोखा।कुछ व्यक्तिगत कारण से आर पी सिंह के सानिध्यो मिलल आ खां साहब त तीन साल साथे रहले।संगत बहुत कुछ सीखा जाला। नोकरी में कई आदमी से भेंट होला बाकिर नजदीकी सबसे ना होखे। एगो गुजराती भाई के निकटता मिलल आ संबंध गहिर होत गइल। घरेलू आ आत्मिक संबंध बनल।आजु चालीस बरिस ले बरकरार बा।अब ऊ दुनिया में ना रहले।कोराना के भेंट ढेर लोग के साथे उहो चढ़ि गइलन। उनुकर बाबूजी उनुका के कहत रहले बबूआ खनदान के इज्जत बढ़इहऽ जनि त इतिहास कम से कम बरकरार रखिहऽ जहाँ बा तहाँ,गिरइहऽ जनि।ई बाति हमरो दिमाग में घर करि गइल आ आजुओ बा।पईसा- रूपईया, जमीन – जायदाद, उद्योग – व्यापार के अलावा परिवार के इज्जत से बनल, परिवार के हाथे बनावल एगो पगड़ी होला आ उहे खानदान के पहचान होला,ऊ बढ़े ना त गिरे के ना चाहीं ई जरूर इयाद रहे के चाहीं। रूपईया, जमीन, व्यापार के देल पगड़ी आपन चाल समय के अनुसार बदल लेला।

 

कबीर के लुकाठी संग ढाई आखर 

 

नैतिकता के पाठशाला परिवार आ समाजे होला। संस्कार आ अनुसासन के नींव धर – परिवारे में रखाला। खूनो में होला तब नूं कहल गइल बा बाँसि के कोठ में बाँसे फुटेला रेंड ना।अइसे अपवाद कहाँ ना होखे।रेंड के कहो अब त लेंढो फुटता। बाकिर रेंड आ लेंढ फुटला खातिर बाजारवाद आ वैश्वीकरण परोक्ष रूप से जिम्मेवार बा, प्रत्यक्ष रूप से पारिवारिक आ सामाजिक परिवेस।असहूँ सब दोष दोसरि ओरि कबले टराई, कुछ अपनो माथे लेवे के चाहीं। पगड़ी हमनी के लेब जा त दोषवो लेवे के पड़ी। भोजपुरिया गमछा – पगड़ी के असहूँ सवखिन होला। माथे पगड़ी इज्जत के प्रतिक ह त खोल देला पर दोषो ढाकि लेला गमछा बनि ।समय अइला पर माथ से उतारि अगिला के गोड़ पर धर दिआव त डूबत इज्जत बाचि जाला। गमछा त  बहुउपयोगी होला हमनी के के बताई, सर्वविदित बा। गमछा से इयादि पड़ गइल छोटका नाना मधेसर नाना के जे भर जिनिगी ऊपर के बदन पर एगो गमछे रखि काट देले। धोती त पहिरल मजबूरी होला, लाज ढाकेला।लइकाई में देखत रहीं त ना बुझात रहे एकर कारण।सयान भइला प गमछा के राज बुझाइल। मानीं भा जनि मानीं बाकिर विधि के विधान प्रबल होला। छोटका नाना शहर के बाति छोड़ीं अपना लइकन के बराति छोड़ि गाँव के बहरी लात ना रखलन जियते जी। उनुकर हिन्दुस्तान गाँव के सीवान भीतर रहे, राजधानी दुआर पर आ रेस्टुरेंट घरे के रसोई घर।रसोई घर जे कोठा पर रहे ओह में बाजारू चीजन खातिर नो एंट्री के बोर्ड लागल रहे। गलती से एंट्री के जानकारी होखला पर केहू होखे तीन पुसुत के उघटा पुरान बिना दया – माया के सुद्ध मगही में काहे कि ममहर हमार मगह में ह। बाकिर अंत समइया मुअत घरी मउअत भा विधना टाँगि ले गइल गाँव से बाँहि पकड़ टाटानगर के कारखाना में धधकत आगि के बीच काम करत हमरा मामू घरे।इहे बाति हमरा नाना जोरियो भइल। अंतर अतने रहे कि नाना के चौबीसों घंटा देहि पर गमछा जोरे गंजी रहत रहे खादी के आ दुनिया में आगि लागो भा पानी बरसो नाना राम अपना चरवाही के दुनिया में मस्त। असहूँ त ई जिनगानी में आदमी जे करता ऊ मस्ती आ आनंदे खातिर नूं।

बाति विषय छोड़ि दूसरा ओरि जा रहल बा। होला अइसन, बात से बात निकलत बाति बढ़ल जाला आ लगाम ना लगवनी त बतंगड़ बनि जाला।हम तनी कम बुझींना राजनीति, खिलाड़ियों नइखीं रहल तास छोड़के कवनो खेल के एह से प्रतिस्पर्धात्मक प्रवृत्ति नइखे, प्रबुद्ध श्रेणी में रउवा ना रखब काहे कि पढ़ाई-लिखाई कामे भर कि काम मिल जाये रोटी खातिर।तबो कहब बाति आ संवाद में अंतर होला।बाति में अहम् घुसल जाला नाहियो चाहला पर बाकिर संवाद अपना में अनेरिया ढुकहीं ना देवे,बले ढूका दीं त अलग बात। स्वस्थ संवाद जेकरा के संज्ञा देल गइल बा ऊ हमनी अस बतकुचन करे वाला खातिर ना ह। ओहिजा आधार कार्ड के प्रावधान रहित त हमनी के नामे ना स्वीकारित। एगो अउर बाति हमनी के जवन आईना बेवहार में ला रहल बानी जा ऊ सरवा झूठो बोलेला,सुनर देखा के फुला के तुमा कर देला,साँच त बोलबे ना करे इचिको नतीजा सामने होला आपन टेटनवा के ज्ञाने ना होखे आ ई आँखि दोसर के टेटन के बढ़ा – चढ़ा के देखा देला।इहे प्रवृत्ति मनई के देखि बाबा गाँव के एगो मामिला फरिआवत कहले रहन कि ‘रघु तू काली माई त के जमीन के आरि छिले के शिकायत लेके आइल बाड़ऽ आ तोहार करनी छुपल बा केहू से पतेल त मुदई मदन के डेढ़ कट्ठा कबजिया मड़ई बना लेले बाड़ऽ।अपना में झांकि देख तब पंचायत में आवऽ ना त लेन के देन पड़ि जाई।सुधर जो बबुओ आगि जनि मूत ‘। आइल मूते के बात त इयादि पड़ गइल ससुर जी सेवानिवृत्त प्रो मदन प्रसाद सिंह, रसायनशास्त्र विभागाध्यक्ष,मगध विश्वविद्यालय के बाति जे हम ग्रेजुएशन में रही त कहले रहन आपन एगो बिगड़त आ रंगदार बनत भतिजा के देखि। स्थिति आ भतिजा के चाल देखि कहलन कि इनकर बाबा ( नाम लेकर) के पिसाब से चिराग जरत रहे,ओहि खानदान के चिराग ई कहीं खानदान के चिरागे ना बुझा देस।एक दिन रसायन शास्त्र पढ़ावत रासायनिक जोड़ के समझावत कहले कि रिसता के जोड़ इलेक्ट्रोभेलेंट बोर्ड ह आ दोस्ती कोभेलेंट। समय के साथ रिसतन में कमजोरी आ दोस्ती में मजबूती आइल बा।दोस्ती में मजबूती पहिलहूं रहे निस्वार्थ से जुड़ल,आजु स्वार्थ घुसि गइल बा। रिसता में स्वार्थ घुसि परिवार आ समाज के रूप बिगाड़ रहल बा। हमनी के मौन धारण करि खेला देखि मजा ले रहल बानी जा,एह खेल के एगो किरदार के हैसियत से।अब कवनो रसायनिक योग रिसता आ दोस्ती के संभाले के स्थिति में नइखे काहे कि जुड़ाव के जड़ के नीचे स्वार्थ के आगि जल रहल बा।आजु रिसता के जारि, काल्हु समाज के आ परसों देस के।जरत आगि में मिलजुल हाथ सेंकल जाई,आगि अकेले हमहीं त नइखी लगवले,रउवो बराबर के साझेदार बानी। मदन बाबू अब एह दुनिया में नइखन ना त ई देखि कहितन हमार रसायन शास्त्र में योग के नियम ना बदलल आजु ले तोहन लोग समाजशास्त्र के योग नियम बिगाड़ दिहल तऽ भोगे के त परबे करी। कबीर के देस के आदमी हईं जा लुकाठी हाथ थाम लेले बानी जा त घर खुल के जारीं जा ई आस जिंदा रखत कि वैराग्य जागी आ सत्य के अँगना खाड़ि हो गावल जाई –

 

एक तूही सत्य बाकिर सब ह झमेला

मेला  के रेला में तू रह रे मन अकेला।

 

असहूँ मानव तन के जतरा त सदगतिये खातिर नू हो रहल बा।बाकिर ई जतरा खाली लुकाठी थाम्हि पूरा नइखे होखे के।कबीर बाबा के ढाई आखर पढ़ही के पड़ी। प्रेम आ सौहार्द के बिना सदगति ना भेंटाई भाई।सदगतियो के बाद देहिया छोड़ला पर भाईये नूं घाटे ले जाई आ पार घाटि लगाई। हम त कहब कि जब सदगति कबीर के दुआरे भेंटाई त आपन जाति छोड़ि कबीरा के जाति बनि जाईं जा। सद्गति जब मिली तब अबहीं बगलो में निंदक रहला पर आँचि ना लागी।ई आ ऊ दूनों संसार आनंदमय हो जाई। निंदक ना भेंटाय त भाड़ा के घर लेइके बसाईं।घाटा के सौदा ना ह ई। हम आपन एगो मित्र बाबू साहब प्रभाकर प्रसाद सिंह के सचहूं ई सलाह देले रहीं जब ऊ एगो निंदक मित्र से दूर भागल चाहत रहन।ऊ अमलो कइलन आ फलाफल सार्थक रहल।अब इहो बता दीं कि ओह घरी कबीर के पाठ दिमाग में ना रहे। एगो सत्संग में प्रयागराज से एक सप्ताह रह लौटत रहीं त ट्रेन में उहाँके दूनो परानी के दुख सुनी लगले हाथ सत्संग में आसाराम बापू के शिष्य के मुखारविंद से सुनल निंदक पाले के सलाह सिंह साहब के दे दिहनीं।सलाह के जडि में त कबीरे बाबा रहले।बोलीं – बोलीं कबीर बाबा जी की जय।आवाज गवें आवत बा माने मन में सहमति नइखे बनल लुकाठी संग ढाई आखर साथ राखे के।

 

  • कनक किशोर

राँची, झारखंड

चलभाष – 9102246536

 

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