डूबि गइलें सजना सखी रे, कजरारे नैना के तीरे।
नैना के तीरे हो, नैना के तीरे।
डूबि गइलें सजना सखी रे, कजरारे नैना के तीरे।
अँकुरल मन में प्रीत क बिरवा,
बेर बेर हियरा के चीरे।
कजरारे नैना के तीरे।
तलफत जियरा पिय के खातिर ,
पीर बढ़ावत धीरे-धीरे।
कजरारे नैना के तीरे।
विरह में माति बनल बउराहिन
अब मन लागत ना कहीं रे ।
कजरारे नैना के तीरे।
पपिहा बनि पिउ के गोहराऊँ
उहो जेपी क मीत नहीं रे।
कजरारे नैना के तीरे।
डूबि गइलें सजना सखी रे, कजरारे नैना के तीरे।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी