इसक समंदर डूबि नहइला, धत्त मरदवा हाँले।
का रहला आ का बनि गइला, धत्त मरदवा हाँले।।
ओझा सोखा पीर मौलवी, तहरे से माँगे पानी
खबर नबीसन के खातिर तू, बनला अधिका ज्ञानी।
नुक्कड़ नुक्कड़ तोही जपइला, धत्त मरदवा हाँले।
का रहला आ——–
डगर नगर में सभै सुनावे, तहरे रामकहानी
आगे आगे महा गुरुजी,पीछे से मधुरी बानी।
पकड़ि पकड़ि के खूबै कुटइला, धत्त मरदवा हाँले।
का रहला आ———
के के बेंचला के खरीदल, केहू जान न पावल
कलुआ खातिर प्रान वायु ह, तहरे गुनवा गावल।
मुसुकी मुसुकी घाहिल कइला, धत्त मरदवा हाँले।
का रहला आ———-
सब गावै तहरे लीला के, तू केकरो भाव न देला
बड़ बड़ूवन के खोमचा दे के, कइला बड़का खेला।
घर घर बबुआ घेरि पूजइला , धत्त मरदवा हाँले।
का रहला आ का बनि गइला, धत्त मरदवा हाँले।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी