फागुन के रात बा । आम के बउर के गमक लेके नवबसंत के मीठ-मीठ हवा बहsता। तालाब के किनारे एगो पुरान लीची के गाछ के घन पतsइयन के बीच से रात-रात भर जागे वाला कवनों बेचैन पपीहा के तान मुखर्जी के घर के एगो निद्राहीन शयन कक्ष में प्रवेश कर रहल बा । हेमंत तनी चंचल भाव से कब्बो आपन मेहरारू के माथा में बांन्हल जूड़ा के केश खोल के आपन अंगूरी में लपेटsता, कब्बों ओकर कडा के चूड़ी में भिड़ा के टन-टन आवाज करsता, आ कब्बो ओकर जुड़ा में लपेटाइल माला के उतार के ओकर मुंह पर रख देता । साँझ के बेरा चुपचाप ठाढ़ फूल के गाछ के सचेत करे खातिर हवा एक बार एने से अउर एक बार ओने से तनी-तनी हिला-डुला रहल बिया । हेमंत के भाव भी लगभग कुछ अइसने बा।
मगर कुसुम सामने के चाँद के अंजोर के बाढ़ में आपन दुनू आँख डूबा के स्थिर बइठल बिया । मरद के ठिठोली ओकरा के छु के वापस लवट जाता । अंत में हेमंत अधीर होके कुसुम के दुनू हाथ झकझोर देहलस कहलस,-तू कंहवा बाड़ू?एतना दूर चल गइल बाड़ू जे दूरबीन से गौर से देखला पर बड़ा मुश्किल से एगो बूंद नियर लऊकsतारु। हमार बहुत मन बा आज तू तनी नजदीक आ जा, देखs त केतना सुहावन रात बा। कुसुम सुन्ना से नजर हटा के हेमन्त के ओर देखत कहलस – इ चाँदनी भरल रात, इ बसंत के सुहावन हवा एही समय झूठ होके नष्ट-भ्रष्ट हो सकेला अइसन हम एगो मंत्र जानेनी ।
हेमंत कहलस – जदी जानेलु त ओकर उच्चारन करे के जरूरत नइखे भलुक अइसन मंत्र जवन याद होखो जेसे हफ़्ता में तीन-चार एतवार होखो भा रात साँझ के पाँच भा साढ़े पाँच बजे तक टिक जाए तब हम सुने के राजी बानी । क़हत उ कुसुम के अपना ओर अउर टाने के कोशिश करे लागल । मगर कुसुम ओकरे जकड़न से छुटत कहलस -आपन मरे के बेरा जवन बात हम कहल चाहत रहनी उहे आज कहे के मन करsता ,तू हमरा के चाहे केतना सजा दे द हम खुशी से सह लेब । सजा के बारे मे जयदेव के एगो श्लोक सुना के हेमंत जइसे ही दुलार करे के सोचत रहल । एतने मे सुनाई पड़ल गुस्सा मे केहु के चप्पल के चट-चट आवाज जे लगातार नजदीक आ रहल बा । इ हेमंत के बाबूजी हरिहर मुखर्जी के चिन्हल गोड़ के आवाज ह । हेमंत हड़बड़ा गइल। हरिहर दरवाजा के लगे आ के मारे खिसिया के गरजत कहलन -हेमंत दुलहिन के एही समय घर से निकाल बाहर करs।
हेमंत मेहरारू के मुंह के ओर तकलस । मगर मेहरारू तनिकों हैरानी ना देखsवलस। खाली दु हाथ से आपन लाचार मुंह के तोप के अपना के पूरा ज़ोर लगा के भरसक लुकाए करे कोशिश करे लागल। । दक्खिनी हवा के साथ पपीहा के तान घर मे आवे लागल । पर केहु के कान तक ना पहुंचल। दुनिया एतना सुंदर बा मगर तब्बो एतना आसानी से बेकल हो जाला ।
द्वितीय परिक्षेद
हेमंत बाहर से लवट के मेहरारू से पुछलस,
-इ साँच ह का ?
मेहरारू कहलस –हं साँच ह ।
-एतना दिन से काहे ना कहलू?
-बहुत दिन से कहे के कोशिश करत रहनी ,बोल ना पइनी,हम बहुत पापिन हइं।
-त आज सब खुल के कह द ।
कुसुम दृढ़ आ गंभीर हो के सब हाल कह सुनsइलस – कुल क़ह के मजबूत कदम आ धीर गति से जरत आग के बीच से निकल गइल, केतना जरत रहल केहु ना बुझ पवलस । सब सुन के हेमंत उठ गइल ।
कुसुम बुझलस जवन प्राणनाथ चल गइले उ फेर लवट के ना अइहें । कवनों अचरज ना बुझाइल । घटना भी रोज के घटना जइसन खूब सहज भाव से घटित भइल । ओकर मन में भी असहीं एगो सूखल सन्नाटा के संचार भइल बा । बार-बार ओके दुनिया आ प्रेम शुरू से लेकर आखिर तक के झूठ आ खाली बुझाये लागल । हेमंत के पहिले के कुल प्रेम के बात याद कर के खूब नीरस ,कठिन अउर फीका हंसी एगो चोख छुरी नीयर ओकरे मन मे एक किनारा से लेके दोसरा किनारा तक बेध गइल । शायद उ सोचलस कि जवना प्रेम के उ एतना बुझत रहल एतना दुलार आ एतना गाढ़ रहल जेकर क्षन भर के बियोग भी एतना दर्दनाक रहल आ क्षन भर के मिलन एतना सुखकर रहल । जवन असीम आनंद बुझात रहल । जन्म-जन्मांतर तक जेकर अंत के कल्पना भी ना कइल जा सकत रहे, उहे … उहे प्रेम ह इ ।
बस एही नीव प खड़ा रहल प्रेम । समाज जइसहीं तनी धक्का देहलस उ बालू के देवाल लेखां ढह के माटी में मिल गइल। हेमंत अभिए कुछ देर पहिले गद-गद आवाज में क़हत रहल नू –केतना सुहावन रात बा ,उ रात अभी खतम नइखे भइल ,पपीहा अभियो बोल रहल बा उहे दक्खिनी हवा पलंग के मसहरी के डोला रहल बिया अउर चाँदनी आराम अउर सुख के थकान से सुतल सुंदरी के तरह खिड़की के लगे बिछल पलंग प एक किनारे से बेहोश पड़ल बिया । सब मिथ्या ह माया ह अउर प्रेम ओसे भी से बड़ झूठ ह असत्य ह ।
तृतीय परिक्षेद
दोसरा दिने भोरहीं हेमंत रात भर के जागल बेकल हो प्यारीशंकर घोशाल के घरे पहुंचल। प्यारीशंकर पुछलन –का हो बाबू का हाल चाल ?
हेमंत एकदम आग में धू-धू करत जर उठल आ कांपत आवाज में कहलस –तू हमनी के जाति धरम नष्ट कइले बाड़s,हमार सर्वनाश कइले बाड़s,तहरा एकर सज़ा भोगे के होइ। क़हत-क़हत ओकर गर रुँध गइल ।
प्यारीशंकर तनी मुसकियात कहलन –अउर तहँsलोग हमार जाति के रक्षा कइले बाड़s ,हमनी के समाज के रक्षा कइले बाड़s । हमार पीठ प हाथ फेर के सुख के नीन सुतईले बाड़s। हमनी पर तहँ लोग के बड़ा प्रेम बा बड़ मेहरबानी बा नू?
हेमंत के मन कइल कि ओही खन प्यारीशंकर के भष्म कर दे मगर आगी में उ खुद जरे लागल । प्यारीशंकर निश्चिंत भाव से जस के तस बइठल रहल ।
हेमंत भर्राइल गर से कहलस –हम तहार का बिगड़ले रहनी?
प्यारीशंकर कहलस –हम पूछsतानी हमार एगो लइकी के अलावा अउर कवनों संतान ना रहल ,हमार उहे लइकी तहार बाप के का बिगडले रहल?तू तब छोट रहलs,एहीसे तू ना जानेलs.-घटना बहुत मन देके सुनs एमे बहुत कौतूहल बा ।
हमार दामाद नवकान्त जब बेटी के गहना-गुरिया चोरा के बिलायत भाग गइल तब तू बच्चा रहलs। फेर पाँच बरिस बाद जब उ बैरिस्टर हो के गाँव फिरल तब मोहल्ला में बवाल उठल,तहरा कुछ-कुछ याद हो भा ना भी याद होइ काहेसे कि तू तब कोलकाता के स्कूल में पढ़त रहलs। तहार बाप गाँव के ससरपंच हो के हुकुम देहलन कि –जदी बेटी के मरद के घर भेजे के बिचार बा त भेज द मगर फेर ओके घरे ना बोला सकेलs। हम उनकर हाथ-गोड़ जोड़ के बिनती कइनी – भइया ए बेर हमरा के बख्श द ,हम लइका के गोबर खिया के प्रायश्चित्त करा देले बानी ,रउआ लोगिन ओके जाति में शामिल कर लीं। तहार बाप कवनों हालत में राज़ी ना भइलन ,हमु आपन एकलवत बेटी के त्याग ना कर पइनी। जात छोड़ के देश छोड़ के कोलकाता में बसनी । एहिजो आके पिंड ना छुटल। आपन भतीजा के जब बियाह के समुचा तैयारी कर लेले रहनी तब तहार बाप लइकी वाला के एतना भड़का देहलन कि आखिर बियाह भइबे ना कइल । हमु किरिया खइनी कि जदि हम एकर बदला ना ले लेब तब ले हम बाम्हन के औलाद ना हइं। -अब शायद कुछ-कुछ बुझ गइल होखबs,मगर तनी अउर सुन ल ,सब बात सुन के तू बहुत खुश होखबs,एमे बहुत रस बा , कविता से भी बढ़ के ।
जब तू कॉलेज में पढ़त रहलs ,तहरे घर के लगे विप्रदास चटर्जी के मकान रहल । बेचारा बहुत भल मनइ रहल अब मर गइल बा । चटर्जी महाशय के घर में कुसुम नाम के एगो बाल विधवा अनाथ कायस्थ के लइकी आश्रित के रूप में रहत रहल ।-लइकी बहुत सुनर रहल । बेचारा बूढ़ बाम्हन कालेज के लइकन के नजर से बचा के राखे खातिर चिंतित रहल मगर बूढ़ आदमी के चकमा दिहल लइकी खातिर मामूली बात रहे । लइकी अक्सर छत पर कपड़ा सुखाये जाय अउर तहरा भी बिना छत पर जाये पाठ याद ना होत रहे। छत पर उ दु जन में बात-चीत होत रहे कि ना इ त तू ही जानेलs ,मगर लइकी के रंग-ढंग देख के बूढ़ के मन में संदेह उपटल । काहेसे कि काम-काज में लइकी से अक्सर गलती होए लागल । अउर तपस्विनी गौरी लेखां धीरे-धीरे ओकर अन्न-जल भी छूटे लागल । कवनों-कवनों दिन साँझ के बूढ़ के आगा ही ओकर लोर रोकले ना रुके ।
आखिरकार बूढ़ के पता लाग ही गइल कि छत पर तहंलोग के बीच बेरा-कुबेरा भेंट-मोलाकात ,बात-चीत-चल रहल बा ।इहाँ तक कि तू कॉलेज से नागा कर के दुपहर के एक कोना में छुप के सीढ़ी के छत के छांह में किताब के पन्ना पलटत रहलs। एकांत में तहार पढे के उत्साह बढ़ गइल रहल । विप्रदास जब हमरा लगे सलाह लेवे अइलन तब हम कहनी –चाचा तू त काशी जाये के बिचार करत रहलs।लइकी के हमरा लगे छोड़ के तू तीर्थवास करे चल जा । हम ओकर भार ले तानी ।
विप्रदास तीरथ करे चल गइलन । हम उ लइकी के श्रीपति चटर्जी के घर राख के ओही के ओकर बाप के नाम से मशहूर कर देनी । ओकरा बाद जवन भइल उ तहार जानल बा । साँचो तहरा से खुल के शुरू से आखिर तक कुल बात कहे में हमरा बहुत आनंद आइल । जइसे कवनों कहानी होखों । मन त हमार अइसन होता कि एकरा के लिख के एगो किताब छपवाइं । हमरा त लिखे ना आवेला मगर भतीजा सुनेनी जे थोड़ बहुत लिखेला। ओही से लिखावे के बिचार बा मगर तू दुनू जना मिलके लिखs त बेसी नीक होइ काहेसे कि कहानी के उपसंहार् नीक से हमार जानल नइखे ।
हेमंत प्यारीशंकर के आखिर के बातन पर खास ध्यान ना देत कहलन – कुसुम के इ बियाह में कवनों आपत्ति ना रहल ?
प्यारीशंकर कहले -ओके आपत्ती रहल कि ना इ बुझल कठिन रहल । जानेलs बेटा मेहरsरूअन के मन ह, जब ना कहे त हं बुझे के चाहीं। पहिले-पहल नया मकान में तहरा के ना देख पावे के कारन कइसे दो पगली लेखां हो गइल रहे अउर तूहूं पता ना कइसे पता लगा ही लेलs उ मकान के । अकसर किताब हाथ में लेले कॉलेज जात समय तू रास्ता हेरा जात रहलs अउर श्रीपति के मकान के आगा पता ना का जोहत रहतs। ठीक प्रेसीडेंसी कॉलेज के रास्ता जोहत रहलs अइसन त ना बुझात रहल ?काहेसे कि कवनों भल आदमी के जंगला से खाली कीट-पतंग अउर उन्मुक्त आदमी के हिरदय खातिर ही रास्ता होला । इ सब देख-सुन के हमरा बड़ा दुःख भइल । देखनी कि तहार पढाई के बड़ा हर्जा हो रहल बा अउर लइकी के हालत भी दिन ब दिन बिगड़ल जा रहल बा ।
एकदिन कुसुम के बोला के हम कहनी – बेटी हम बूढ़ आदमी हईं,हमरा से लजाये के कवनों काम नइखे –तू मने-मन जेकेरा के जपेलू ओके हम जानेनी, उ लइका भी माटी होखल जाता अउर तू भी । हमार मन बा जे दुनू के मेल करा दीं। सुनला भर से कुसुम छाती फाड़ के रोए लागल अउर तेजी से उठ के भाग गइल।
एही तरह से साँझ के कब्बो-कब्बो श्रीपति के घरे जा के कुसुम के बोला के तहार बात कर-कर के ओकर लाज छोड़ाइं । एही तरह के बात कह-कह के ओकरा के जता देहनी कि बियाह से अलावा दोसर अउर कवनो उपाय नइखे । एकरे अलावा दुनू के मिलन के कवनों रास्ता नइखे । कुसुम कहली – इ कइसे होई ?
हम कहनी – बाम्हन के बेटी बोल के चला देब। बहुत बहस के बाद उ तहार राय जानल चहलस । हम कहनी –उ त वइसहीं पगलाइल बा ,ओसे इ कुल गड़बड़ के बात बतावे के कवन जरूरत ?बिना परेशानी के शांति से काम हो गइल ही दुनू खातिर अच्छा बा । खास कर जब कि इ बात के खुल जाये के कवनों डर ही नइखे तब बिला वजह काहें उ बेचारा के जिनगी भर खातिर परेशानी में डालल जाओ ।
कुसुम बुझली कि ना बुझली इ हम बुझ ना पइनी। कब्बो रोए कब्बो चुप रहे । आखिर में जब हम कहीं कि-जाए द,त उ बेचैन हो जाये । इहे दसा में श्रीपति के जरिये तहार बियाह के प्रस्ताव भेजवइनी । हम देखनी कि अपना तरफ से राय देवे में तू तनिकों देर न कइलs अउर तब बियाह के बात पक्का हो गइल ।
बियाह के एक दिन पहिले कुसुम अइसन छितरइली कि बटोरल मुश्किल हो गइल । उ हमार हाथ-गोड़ धर के कहली –ना बड़का बाबूजी अइसन मत करs। हम कहनी –का सत्यानाश ! सब कुछ तय हो गइल बा अब का बोल के लौटाइब ?कुसुम कहली – तू ऐलान कर द कि कुसुम अचानक मर गइली,आ हमरा के कहीं भेज द । हम कहनी – अइसन होला पर लइका के का दशा होई ?ओकर बहुत दिन के मनता काल्ह पूरा होई इ जान के उ स्वर्ग मे बइठल बा आज हम ओकरा लगे तहार मरे के खबर दीं?अउर दोसरके दिन ही तोहरा लगे ओकर मूए के खबर भेजीं?अउर ओही दिन साँझ के तहार मरे के खबर आए ? हम का इ बुढ़ौती मे स्त्री हत्या अउर ब्रह्म हत्या कराए बइठल बानी ?
ओकरा बाद शुभ लग्न मे शुभ बियाह समपन्न भइल । हम आपन काम के ज़िम्मेदारी से फारिग हो गइनी , फेर का भइल?उ त तू जानते बाड़s।
हेमंत कहलस -हमनी के जवन करे के रहल उ कर ही लेनी फेर इ बात उजागर काहें कइनी ?
प्यारीशंकर कहलन -हम देखनी जे तहार बहिन के बियाह से कुल बात-चीत पक्का हो गइल बा । तब मने-मन सोचे लगनी कि एगो ब्राह्मन के जात त बिगाड़ देनी मगर उ त खाली कर्तव्य समझ के। अब जे दोसर बाम्हन के जात जा रहल बा त हमार ज़िम्मेदारी बा कि ओकर रक्षा करीं । एहीसे ओ लोग के चिट्ठी लिख देनी ,ओमे लिख देनी कि हेमंत शूद्र के लइकी से बियाह कइले बा,एकर हमरा लगे सबूत बा । हेमंत बड़ा मुश्किल से अपना के संभार के कहलस – अब जदी हम ओकरा के छोड़ दी त ओकर का दासा होइ?रउआ ओके आसरा देब ?प्यारीशंकर कहलस – हमार जवन काम रहल उ पूरा भइल अब दोसर के छोड़ल मेहरारू के पोसल हमार काम ना ह ।
-अरे केहू बा ?हेमंत खातिर बरफ डाल के एक गिलास डाब के पानी त ले आवs,अउर पान भी ले अइहs। हेमंत इ तरावट के खातिरदारी के परवाह कइले बिना ही उहाँ से चल गइल।
चतुर्थ परिक्षेद
कृष्ण पक्ष के पंचमी बा अउर अनहियार रात । चिड़िया के चहचहाहट बंद बा । पोखर के किनारे ठाड़ लीची के पेड़ बुझाता जइसे करिया चित्रपट पर गहिर स्याही के लेप कर दिहल गइल बा । खाली दखिनी हवा इ अन्हीहार में आन्हर जइसन घूम फिर रहल बिया। अन्हार जइसे ओके पकड़ लेले होखे । आकाश के तारा टकटकी लगा के आपन चौकस निगाह से अन्हीहार के भेद के पता ना कौन रहस्य उजागर करे के उत्सुक बा । सुते के कमरा में आज दीया नइखे बारल गइल। हेमंत जंगला के लगे पलंग पर बइठल सामने के घन अन्हीहार ले ओर ताक रहल बा अउर कुसुम जमीन पर आपन दुनू हाथ से ओकर गोड़ धर के ओकर पाँव के उपर आपन मुंह रख के पड़ल बिया। समय जइसे स्तंभित समुद्र जइसन स्थिर हो गइल बा । अइसन लागsता जइसे नियति के चित्रकार अनंत गंभीर रात के ऊपर अमिट छवि आंक देले बा। चारो तरफ प्रलय बा । बीच में एगो विचारक बा अउर ओकर गोड़ के लगे एगो अपराधी।
फेर चप्पल के चट-चट आवाज भइल । हरिहर मुखर्जी दरवाजा के लगे आ के बोलsलन – बहुत अबेर हो गइल बा अब अउर समय ना दे पाइब ,दुल्हिन के घर से निकाल बहरी करs ।
कुसुम इ आवाज के सुनते ही क्षन भर खातिर जिनगी भर के सरधा मिटावे बदे हेमंत के दुनू गोड़ अउर ज़ोर से पकड़ लेहलस। फेर चरन चूम के पाँव के धूर माथा में लगा पाँव छोड़ देहलस । हेमंत उठ के बाबूजी से जा के कहलस – आपन विवाहित मेहरारू के ए तरह से हम नइखी छोड़ सकत। हरिहर गरजत कहलन –त का जात से जइबs ? हेमंत कहलस –जात-पात हम ना मानेनी ।
-त जा तूहूँ निकल जा ।
बँगला मूल कहानी -रवीन्द्र नाथ ठाकुर
अनुवाद -सरोज सिंह