गज़ब हाल बा भाई! एक त चइत चहचहाइल बाटे आ मन,मनई,मेहरारू संजोग वियोग के चकरी में चकरघिन्नी भइल बाड़ें, ओही में ई चुनाव के घोषणा, मने धधकत आगि में घीव डला गइल। दूनों ओर जी हजूरी के तड़का, अब उ नीमन लागे भा बाउर। जिये के दूनों के पड़ी, मन से भा बेमन से। जब लोग बाग खेती-किसानी से दूरी बनावे लागल बा, त ओहमें ई राँड रोवने नु कहाई कि अब ढोलक के थाप आ झाल के झंकार सुनात नइखे। खेती-गिरहस्थी से थाकल लोगन खातिर फगुआ आ चइता टानिक लेखा रहल। जवन उछाह घर में आवे वाली नई फसल का लेके रहत रहे, उ राग बन के गाँव –सिवान पंवरे लागत रहे। उहाँ सिंगार, वियोग ,जर, जमीन, देवता, पितर ,बोली – ठिठोली, मान-मनुहार मने कि सभका खातिर उचित समरपन के बोध का संगे अपना परंपरा के पीढ़ी दर पीढ़ी जोगा के चलत लोगन के जियतार समूह गवें गवें आपन जिनगी के दिन पूरा क के जा चुकल बा। गाँवो गिरांव के नवकी पीढ़ी धूर माटी से दूर हो चुकल बा भा सहर पलायन क चुकल बा। सहरन में होखे वाला कार्यक्रम गोबरउरा के जनम से बाचे के परयास भर बा। प्रेम के रसगर गीतन से पहिले सुमिरन के परम्परा आ ओहसे उपजे वाला आनंद आ ओहके जीये वाला समूह के रंगत अलगे रहत रहे। बसंत पंचमी से गवनई के सिरीगनेस आ भर चइत तक गुलजार रहे वाला गाँव अब बिरान हो चुकल बाड़ें सन। मादकता भरल गीतन पर लवंडा के नाच के देखनिहार आ सुननिहार लोग अब ओह नचिया का संगे अलोप हो चुकल बा।कहीं कुछ लोग एहके जियतार बनावे खातिर लगलों बाड़न बाक़िर अइसन लोगन के कमी ढेर बा। एकरा से हटिके देखल जाव त चैत महीना भगवान राम के जनम के महीना हवे। उनुके जिकिर बेगर चैता के बात बेमानी लागेला। फेर देखीं-
‘रामजी जे लिहनी जनमवा हो रामा
चइत महिनवा।’
एह उतपाती चइत में चुनाव अपने रंगत के संगे बा। केंद्र सरकार के चुने खातिर लोगन के अपना मत देवे के बा। चैता गीतन लेखा इहवों ढेर उदासीनता बा। सरकार के मतदाता जागरुकता अभियानो चल रहल बा। एह अभियान में विद्वत जन, ब्योपारी, डाक्टर, मीडिया, प्रशासनिक अधिकारी के संगे-संगे साहित्यकारो लोग जनता के जगावे में लागल बा।ई त चुनाव के एगो पक्ष बा।हर चुनाव के कई कई गो पक्ष होला, इहवों बा। पाँच बरीस के बाद नेता लोग जनता के हाल-चाल ले रहल बा। वादा आ नारा के बौछार से जनतों खूब सराबोर हो रहल बा। पीये-खाये वाला समूह अपना काम में लागल बा। कुछ ठीकेदारो लोग वोट के ठेका लेत देखात बा। मने इहवों चैता लेखा कई कई गो राग बज रहल बा। एह घरी के चुनावी बयार में कुछ लोगन के बहार बा। तबे नु कहे के पड़ेला-
‘बरीस पाँच बीतल अइहें संवरिया।
सजाय राखो फुलवा से दुवरिया॥’
मने गवनई इहों कम नइखे।सोसल मीडिया पर अलग अलग ढंग के गवनई आ छीछालेदर अपना मति गति से चल रहल बा। इहाँ बड़का बड़का विश्लेषक लोग विश्लेषण में जुटल बा।चाल, चरित्र आ चेहरा लोग आपन आपन झमका रहल बा। जनता के लोभा रहल बा। अब एहमें के कतना सफल होखी, ई त 4 जून के सोझा आई । एह घरी सभे चुनाव आ चैता के ढेर थोर जी रहल बा। अपनों के एह सब से विरत होखल मोसकिल लागल, से भोजपुरी साहित्य सरिता के ई अंक चइता पर केन्द्रित बा। कुछ सुघर सामग्री जुटावे के परयास भइल बा। हमनी के अपना परयास में केतना सफल भइल बानी सन, रउवा सभे के एकर निर्णय करे के बा। पत्रिका परिवार के अपना एह निर्णय से वंचित मति राखब सभे ।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी