चइता गीतन पर एगो दीठी

चइता, चैता भा चैती पुरवी उत्तर प्रदेश, बिहार आ झारखंड में चइत महीना में गावल जाये वाली एगो लोकगीत भा लोक शैली हवे। चइत महीना के हिन्दू पंचांग (कैलेंडर) से हिंदू लोग पहिल महीना मानल गइल ह अउर फागुन के अंतिम महीना। भगवान राम के जनम चइत महीना में भइल रहे। कहल त इहाँ ले जाला कि चइता गावे के चलन त्रेता जुग से चालू हो गइल रहल,काहें से कि चैती भा चैता  में ‘हो रामा’ के  टेक का संगे गावे के चलन बाटे। एह में राम जन्म, राम सीता के होरी अउर  उनका बियाह के  कई गो चइता भा चैती गावल जाला । चैती शैली के गीतन के आम तौर पर तीन प्रकार बतावल गइल बा- 1. सधारन चैती 2. झलकुटिया चैती 3. घाँटो चैती। सधारन  चैती में एके गो गायक ढोलक, तबला, हारमोनियम आदि वाद्यन के संगे चैती गावेला। सधारन चैती के खड़ी चैती, निर्गुण चैती आ झूमर चैती तीन गो उपभेद बतावल गइल बा। झलकुटिया चैती में सामूहिक चैती-गायन होला। पहिला दल एक पंक्ति तऽ दोसर दल ओकरा टेक पद के जोर से दोहरावेला। ‘झलकुटिया’ चैती सामूहिक रूप से झाल कूटके भा बजाके गावल जाला। ‘घाँटो चैती’ के चैतिये के एगो रूप मानल जाला , ढेर विद्वान लोग एकरा के स्वतंत्र गीत-गायन-शैली माने के पक्ष में नइखीं, बाक़िर कुछ लोग एकरा के एगो अलग शैली मानेला।

चैत महीना के मधुमास कहल जाला । त मधुमास में होखे वाला सगरे श्रिंगार, वियोग, विरह, मधुरता आ कोमलता एह चइता  गीतन के परान ह। लोकगीतन के अउर कवनो विधा में अतना विविधता कमें भेंटाले। सिंगारिक चइता के कुछ उदाहरण देखे जोग सोझा बा –

‘बैंगन तोड़े गइनीं ओही बैंगनबरिया

गड़ि गइल छतिया में काँट हो रामा।’’

भा  इहों देखल जाव –

‘‘चइता मास जोबना फुलाइल हो रामा

सइयाँ नहिं अइलें।’’

चैत महीना में मद मातल एगो नायिका के मनोभाव देखे जोग बा-

‘‘कुसुमी लोढ़न हम जाएब हो रामा

राजा के बगिया

मोर चुनरिया सैंया तोर पगड़िया

एकहिं रंग रंगाएब हो रामा।’’

                   जतने मजबूती से श्रिंगार  के बात चइता में लिखल गावल गइल बा, ओतने मजबूती से बिरहो के बाति इहाँ  भइल बा। देखीं न केशव मोहन पाण्डेय जी का कह रहल बाड़ें –

‘पीपर पात झरि गइलें हो रामा,

पिया नाही अइलें।’  

डॉ अशोक द्विवेदी के एह दिसाई नजरिया चेतावनी भरल लउकत बा । देखीं न –

गते-गते दिनवा ओराइल हो रामा,

रस ना बुझाइल।

 

एह देस के लोगन के परान राम  आ कृष्ण में बसेला । इहवाँ त राम आ कृष्ण  से इतर कुछ सोचलों असंभव लेखा बुझाला। अइसना में उनुके जनम के बात आ उनुका गइला के बात त उछाह आ उत्सव के बाति लेखा बा। फेर लिखले भा गवले बेगर ई अछूता कइसे रह सकेला। देखीं न –

जागि गइले कोसिला के भाग हो रामा
अवध नगरिया।।
कोसिला माई लेली बलइया
धन-धन हवें राजा दशरथ हो रामा
अवध नगरिया ।।
घर-घर बाजत लला के बधइया
शोभा बरनत नाही जाला हो रामा
चइत राम नौमिया।।

एही राम नवमी का लेके  खेती किसानियों के बात चइता में कम ना देखाले । केशव मोहन पाण्डेय जी के ई चइता देखीं-

फुदुक चहके ले गौरैया, हो रामा,

मोरा अँगनइया।

अगराइल मन ले बलैया, हो रामा,

मोरा अँगनइया।

कंत किसनवा के चिंता करे मेहरी,

पिया बिना गेहुँवा से के भरी डेहरी,

धनि-धरती ले ली अँगड़इयाँ, हो रामा,

मोरा अँगनइया।

 

कृष्ण के गोकुल से मथुरा चल गइला पर उहाँ के गोपियन के पीर स्वर देत डॉ जौहर शाफियाबादी के एगो चइता देखे जोग बा-

 

“जस मधुबनवा में कुहुके कोइलिया

कान्हा बिनु कुहकेली हमरो सहेलिया

सूना- सूना लागेला नगरिया हो रामा

कान्हा निरमोहिया…!

जबसे गइलें श्याम बनली जोगिनिया

दिन नाही कल, राती आवे ना निनिया

बेरी बेरी साले उनकर पतिया हो रामा

कान्हा निरमोहिया…!”       (डॉ जौहर शाफियाबादी)

 

 

चइता में उत्सव के हुलास खूब निखर के आइल बा। सिया राम के सोवागत में लिखाइल एगो चइता देखे जोग बा।
राजत राम सिय साथे हो रामा
अवध नगरिया।
माता कौशल्या  तिलक लगावे
सुमित्रा के हाथ सोहे पनमा हो रामा
अवध नगरिया ।।
दासी सखी चलो दरसन कर आवें
पाऊं आनंद अपार हो रामा
बाबा दशरथ दुअरिया।।

 

चैती गीतन में प्रेम , बिरह , उत्सव , हुलास का संगे आलसो के बात कइल गइल बा। एगो चैती देखीं-
“चढ़ल चईत अलसाने हो रामा

जिया गोरी के।
सेजिया बइठल गोरी सोहे पिया संग
गम गम गमके चमेलिया हो रामा
सोहे गोरी के।।’’

आजु चइता के फ़लक ढेर लमहर हो चुकल बा। राम, कृष्ण, प्रेम, बिरह, उत्सव, हुलास, खेती, किसानी से आगु बढ़त चइता आम मनई के पीर से लेके राजनीति के तीर तक चला रहल बा।त कहीं मतदान करे खातिर लोगन के जगा रहल बा। एह घरी त ढेर अलग अलग प्रयोगो हो रहल बा। अइसने प्रयोग नीचे देखल जा सकेला-

“कुरसी के महूरत न भेंटइलें हो रामा,

करिखा पोतइलें।

तब नाही बुझनी माई मोर बतिया

कुरसी पठवनी दोसरा के सेतिहा

बनलो भाग आगी जरी गइलें हो रामा,

करिखा पोतइलें।’’                       – (जयशंकर प्रसाद द्विवेदी )

 

भा ई देखल जाव-

भइलें चुनाव के एलनवाँ हो रामा,

करै चलीं मतदनवाँ।

करै चलीं मतदनवाँ हो, करै चलीं मतदनवाँ

भइलें चुनाव के एलनवा हो रामा,

करै चलीं मतदनवाँ।।

 

इहै चुनउवा हउवे सरकार गढ़य के

एही से हउवे देस आगे बढ़य के

छोड़ीं काम अउरी जलपनवाँ हो रामा,

करै चलीं मतदनवाँ।।           – (जयशंकर प्रसाद द्विवेदी )

 

 

दुनियाँ में पसरल कोरोना महामारी के बातो चइता में खूब भइल रहल। अइसने एगो चइता देखीं-

 

“चइता के साध मरि गइलें हो रामा

चहके कोरोनवाँ।

चाइना अइसन हवा चलवलस

सबके मुँह पर ढकनी लगवलस

गाँव-सहर कुल्हि डेरइलें हो रामा।

चहके कोरोनवाँ।’’                                              – (जयशंकर प्रसाद द्विवेदी )

 

गाँवन से होत पलायन का चलते पहिले वाली लहोक अब कमे देखे सुने के मिल रहल बा। गांवनों नवकी पीढ़ी एह कुल्हि से दूरी बना चुकल बा भा गवें गवें दूरी बना रहल बा।  बाक़िर कतों-कतों आ कबों-कबों सहरो में जब चइता धुन सुने के मिल जाला त मन हुलस उठेला। मन के एह मुसुकी आ हुलास के जोगा बचा के राखे के काम बा।

 

 

 

(साभार – डॉ  सुनील कुमार पाठक जी के आलेख ‘चैता गीतन के रुचि आ रचाव’)

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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