बिख उगे घमवा अषाढ़ महीनवां में,
बरखा के आस नाहीं सुरुज धिकाइल बा।
पोखरी तलइया में नीर नाहीं नदी सूखि,
त्राहिमाम सगरो धरतिया सुखाइल बा।
झन-झन झिंगुरा झनकि दुपहरिया में,
पेड़वा क पतवा मुरुझि लरुआइल बा।
दुबुकल चिरइया खतोंगवा में छांह खोजि,
बचवन के सँगवा पियासल पटाइल बा।
धनि-धनि बदरा ना लउके सपनवों में,
पपीहा वियोग जरें गर रून्हिआइल बा।
केकरा अंजोरवा तूं अइबा बदरवा हो,
जुगुनू के बत्तिया पसेनवा बुताइल बा।
हेरें असमनवां में चान के अंजोरिया हो,
खेतिया किसनिया के बेला इहे आइल बा।
मेझुका मिलन बाट जोहेलीं मेझुकिया हो,
कहां राग मिलन के गीतिया सुनाइल बा।
धनवां परल बेंग धधके धरतिया हो,
बरखा जोहत अब आंखि पथराइल बा।
कहां बाड़ा नाथ हो अनाथन के पारावार,
आवा अब बेला जात जीउ धुधुकाइल बा।
तरु-तृन पशु-पक्षी कीटवा-फतेंगवा हो,
सबही जोहत बिनु पानी बउराइल बा।
नदिया पहार झील पोखरी इनरवा में,
आस नाहीं त्रास जग-जीवन झुराइल बा।
पछिवां बयरिया भूंजत देंह झोंकरल हो,
अमवां झरत बिनु रस चिचुआइल बा।
कोइली के बोलिया जहर लागे येहि बेला,
मोरवा-मोरिनिया क जोड़ी बिछुड़ाइल बा।
धरती जरत असमनवें में आगि लागल,
संझवा झंउसि गइल रात करिआइल बा।
पुरुआ के संघवा जो अवतू बदरिया हो,
गिरतू अमिय बूंद धरती खखाइल बा।
बरसत बदरिया त खेत हरियाई जात,
रहिया जोहत पीत कनइल फुलाइल बा।
दादुर मल्हार गीत स्वागत में तान छेड़ि,
पपीहा करेजवा जुड़ात मउलाइल बा।
जोहें दहिबेचनी मगन होइ खेतवा में,
बरखा जुड़ात पीठ जोड़िया हेराइल बा।
रोपनी क धुन जागि हरवा चलत खेत,
कनई में सोनवां क बियवा डलाइल बा।
संझवा लजात देखि बदरा अंगनवां में,
चिरई भींजत पांख मन हरसाइल बा।
चमकत बिजुरिया बजत मेघ घम-घम,
घमवा दुबुकि जात सुरुज लोभाइल बा।
खुशिहाली चंहु दिशि हरियाली दिशि-दिशि,
जियरा जुड़ात कवि कविता लिखाइल बा।
आवा नभ अंखियन के कजरा बदरवा हो,
बरखा अषढ़वा सावन निअराइल बा।
- राकेश कुमार पांडेय
हुरमुजपुर,सादात
गाजीपुर,उत्तर प्रदेश