ई बीमारी बड़का भारी।
सनमुख डंणवत, पीछे गारी।।
काटे भीतर घात लगाके,
राम राम ई कइसन यारी?
कवन भरोसा केन्ने काटी?
जेहके भइल सुभाव दुधारी।
ढेला भर औकात न जेकर,
ऊहो मुँह से लादे लारी।
छेड़के ओके नीक न कइलऽ,
बहुत पड़ी तोहरा के भारी।
कबहूँ जे सोझा आ गइलऽ,
सात पुश्त ले ऊहो तारी।
निकलल बाटे फन त काढ़ी?
राखल बाटे लाठी – कारी।
- अशोक कुमार तिवारी