गउए हई सास,
छोड़स ना रास ।
सिधा देस जोख के
सबसे पहिले खास ।
ससुरो अलबेला,
करस ना झमेला ।
घरनी से पूछी,
कदमवा उठेला ।
मरद भकलोल,
बुझाय ना झोल।
माई के देखते त्
सिआ जाले लोल ।
कस के लंगोटा,
धईनी झोंटा ।
बिग देली परेह,
देहनी दू सोटा ।
संगहीं खटेली,
पंजरो सटेली ।
कतनो हटाईं,
तबो ना हटेली ।
खींस बा खलास,
ससुरो मुस्कास ।
मरदो का चानी,
भइली अब दास ।
बुझऽ जनी भकोल,
लेइ बेटा के मोल ।
उनकर कमाई,
लेहेम मुंह खोल ।
सदा करेम सेवा,
खिआइबी मेवा ।
काहे बेलगाएम,
देहेम खर्चा खेवा।
- दिलीप कुमार पाण्डेय
सैखोवाघाट
तिनसुकिया, असम