दिनवा दिनवा भागत हउवअ केकरे खातिर
रतिया रतिया जागत हउवअ केकरे खातिर
बीवी-बच्चा ख़ातिर भी ना समय बचत बा
ऑफिस में ही सारा-सारा समय कटत बा
पइसा त आवत बा लेकिन जीवन बा फीका
पइसा खर्च करअ क टाइम कहाँ मिळत बा
बहरअ रहअ चाहत हउवअ केकरे खातिर
झूठअ मन बहलावत हउवअ केकरे खातिर
करअ नौकरी के रोकत बा खूब करअ
खिंचअ रुपिया के टोकत बा खूब धरअ
लेकिन अपने देहियों क तनी करअ फिकिर
के कहले बा नया जमाना देख मरअ
बेटाइम क चाभत हउवअ केकरे खातिर
छुप के चूरन फांकत हउवअ केकरे खातिर
दूसरे क बस देख -देख क होड़ मचल बा
काम भले नाही बा लेकिन चीज़ भरल बा
जीवन क आनंद न लेवे तोहके आइल
टेंशन दिनों रात कि आँख से नींद उड़ल बा
सुट्टा पी के हाँफत हउवअ केकरे खातिर
आपन देह जलावत हउवअ केकरे खातिर
तोहरे घरवालन के चाही समय तोहार
पइसा से ओनके ना हउवअ एतना प्यार
तोहरो काम भी कम पइसा में चल जाई
पइसा काम न आयी पड़लअ अगर बीमार
एतना माल जुटावत हउवअ केकरे खातिर
सुतले में भी ताकत हउवअ केकरे खातिर
ऑफिस में बस काम भरे क समय लगावअ
घरवालन के संगे भी कुछ समय बितावअ
आपन शउख भी पूरा करअब ,नीक लगी
इ जीवन फिर न पइबअ, आनंद उठावअ
असली कमवा टारत हउवअ केकरे खातिर
मनवा के तू मारत हउवअ केकरे खातिर
— विनोद पाण्डेय