किशोर के कवित

 

नाक

 

नाक के सवाल रहे

आपन ना

खानदान के,

कान पर गइनीं

आँख अछइत,

सब करम हो गइल

नाक ना बाँचल।

 

 

 

जाल

 

आदमी

आपन हाथे आपन पाँखि काटी

आपन बीनल जाल में आज

अझुराइल फँसल छटपटात बा,

जाल बिछवले रहल हा

दाना डलले रहल हा

अनकरा खातिर,

बाकिर ई का !

दाना के चक्कर में

खुद के जाल में

खुदे फँस गइल।

 

 

मजहब

 

मजहब

कौनो होखे

ना सीखावे बँटवारा।

हमनी का अपने के ना

जानवर , फूल, पक्षियो के

निर्जीव वस्त्र आ भाषा के

बाँट देनी जा

मजहब के नाम पे।

 

 

कानून

 

कानून

आन्हर होला सुनले रहीं,

बाकिर ई का !

बहिरो बा

आज देखतानीं।

ना मानब

तऽ रउवो देखलीं

ऊँच आवाज में

टेबुल ठोक के

आपन बात बोलेला

कानून।

लक्षण बतावत बा

कानून

आन्हरे ना बहिरो होला।

 

 

राह

 

राह

गलत ना होखे

राही गलत होला

राह के बदनाम

कर जाला

आपन करनी से।

रहिया मंजिल तक ले जाला

रूकीं मत

बढ़त चलीं

हम ना

राह कह रहल बा।

 

 

 

अबहूं

 

बहुत कुछ

अबहूं

उहे बा।

बदलाव

समय में आइल

सोच

कहाँ बदलल।

इक्कीसवी सदी

मजदूर, नारी

अबहूं

एक मुट्ठी अंजोर बटोरे के चक्कर में

आस के ललकी किरिणिया देख

मृगतृष्णा के ओरिया भाग रहल

तबहूं

ना भेंटाइल

नवकि बिहान।

 

 

रहमान

 

 

रहमान काका

ना रहलन आज

बुझाईल कि

तू ना धरम मु गइल।

होली में सेवइ, ईद में पकवान

क्रिसमस में सेंटा क्लॉज बनि

नाचे रहमान,

तजिया में लाठी खेलस

संगे मंगल पहलवान

हिन्दू के काका, मुस्लिम के भाईजान

सांचो आदमी ना

फरिश्ता रहन

आपन रहमान।

 

 

  • कनक किशोर

राँची( झारखंड)

 

Related posts

Leave a Comment