करतब वाली मुनिया

“का बताई बाबुजी, हमरा खातिर त रउरे लोग भगवान बानी, जे हमर करतब देखी के कुछ पइसा दे देत बानी लो, हम नईखी जानत की अल्लाह के ह ss अउरी राम के हs, हमरा खातिर त ई दर्शक लोग ही राम अउरी अल्लाह हवे लोग”, करतब वाली कहलिन।

थोड़ा सास लइके उ फिर कहली,”जब हमरा ,मुनिया के,अउरी ओकरा  छोट भाई  के, बाबुजी के भुख लागेला त हमनी के हाथ मेहनत खातिर उठे लागेला, निगाह बाजार के कोना तलासेला कि, जहवा करतब दिखाई जा अउरी दर्शक के भीड़ लागे, पइसा ज्यादा मिले अउरी हमनी के जीवन सुखमय हो जाव।”

करतब वाली के बात सुन के रंजन अउरी उनकर पत्नी निःशब्द हो गइल लोग। एगो छोट लईकी, ओकर 6 बरिस के एगो भाई अउरी ओकर 45 साल के बाबुजी,ओकर माई, बस 4 आदमी के परिवार।

रंजन फेरु से पूछलन,” अच्छा एगो बात बतावss ,  एतना छोट लईकी, अउरी हेतना ऊँच पतरका रसरी पर चलत बिया, त डर ना लागेला, गिर जाइ त हाथ गोड़ टुट, घायल हो जाई”।

“ना साहब, ई ना गिरी, भुख एकर इरादा मजबुत कर दिहले बा”

“उ कईसे”

“साहब जी, जहा भुख अउरी परिवार के बात आवेला, त इरादा मजबुत हो जाला, लक्ष्य निर्धारित हो जाला, साहब  मन मे ई बात बा कि अगर गिर जाइ त, ओकर परिवार भुखे रह जाई, एहीसे उ ना गिरी, उ रसरी पर संतुलन बना के चली अउर आपन करतब लोग के देखाई”।

रंजन अउरी उनकर मेंहरारु, ई देख के, सुन के भुख, गरीबी अउरी रोजगार जईसन विषय पर चिन्तन करे लागल लोss..। राजस्थान के ई घुमक्कड़ जाति, भारत के लगभग हर छोट, बड़ शहर, गांव गांव घुमके करतब दिखावेला अउर आप पेट पालेला। सचहु हमार भारत गरीब बा, भले शहरी चकाचौंध , अंधेरा के कुछ देर खातिर दूर करेला, लेकिन सही के अंधेर भारत मे अबहियो गरीबी बा।

रंजन से ना रहल गईल, उ फिर से पुछलन,” तहनी लोग त ई करतब घुम घुम के दिखावत होखबss  लोग”।

“जी साहब, हमनी ई करतब घुम घुम के हर ज़िला, हर शहर, हर गांव, कस्बा में जा के दिखावेली, ईहा तक ले की दोसरा राज में भी जाएनी सन, हमनी हर जगह घुम घुम के करतब दिखावे के पड़ेला”।

“अच्छा त ई बात बतावss की गोपालगंज में आइल बाड़ss लोग, कइसन लागल ई गोपालगंज, अउरी कइसन लागल ई गोपालगंज के लोगवा”, रंजन बड़ी उत्सुकता से ई पुछलन की आपन शहर अउरी इहा के लोगन के बारे में एगो बाहरी के का विचार बा, दोसर जगह के लोग हमनी के बारे में कइसन सोचत बा, का विचार रखत बा… ढ़ेर सारा परशन रहे।

“साहब ई जगह स्वर्ग खानी बाटे, ईहा शुद्ध पानी बा, शुद्ध हवा बा, ईहा के लोग बड़ी भावुक बा, इहवा के लोगन में अबहु व्यवहारिकता बचल बा, ईहा के लोग अभीयो आपन जमीनी संस्कृति के बचा के रखले बाड़न लोग, ईहा हर अवसर पर परब बा, गीत बा, संगीत बा, सबसे बड़हन बात की ईहा के लोग, अपना धरती के माई खानी मानेला सभे, ईहा के घर के लोग आपसे में बड़ी रहन से बात करेला,घर मे सबसे पवित्र दर्जा माई के बा, ईहा त सास अपना बहु के बेटी खानी मानेली, बड़का बड़का शहर में त बुढ़ऊ लोग अनाथालय में  नजर आवेला लेकिन एहिजा त उ अपना घर मे सम्मान से बाड़न,ईहा त ई संस्कार बा कि घर के पहिलका रोटी गाय के खियावल जाला ओकर बाद बुजुर्ग अउरी लइकन के तब ओकर बाद जवान लोग खाना खाला, एहिजा मास्टर साहब के देखी के, सभे उठ के खड़ा होके सम्मान करेला….. ।”

एतना बात अपना जवार के बारे में सुन के सीना शान से चौड़ा हो गईल, मन बड़ी खुश भ गईल, आज ले केहु एतना बढ़िया ढंग से आपन गोपालगंज के वरनन ना कइले होइ, आत्मा के बड़ी सन्तुष्टि मिलल। मन जिज्ञासु हो गइल रहे। बगल के होटल से समोसा अउरी चाय के आर्डर दिहलन। उ लोग भी समोसा खाये लागल लो। अउरी बतकही भी जोर पर रहे।

फेर से पुछलन, ” ई बतावss की तहनी लोग पन्द्रह दिन से ई जिला में घुमत बाड़ लोग, कुछो खास दिखलाई पड़ल का”।

“साहब, एक बार एक गांव में हमनी करतब दिखईनी सन, ओह दिन हमनी के पचीस रुपया ही मिलल, करतब के बाद हमनी के भुख लागल रहे, ओहजा होटल दुकान ना रहे, बड़ी हमनी समस्या में फस गइनी सन, हमनी आपस मे बतियाये लगनी सन की अब का होइ, मुनिया के भी जोर से भुख लागल रहे, तले एगो घर के खिड़की से केहु बोलल, की रुक जा लोगन, तहनी लोग भुखा ना  रहबss.., तहनी लोग के हम खाना ख़िलाइब,एगो देवी जइसन औरत अउर उनकरा संगे एगो बूढ़ी माई बाहर आइल लो, हमनी लागल की भगवान सीधे आ गइनी, हमनी भर पेट खाना खइनिसन.. रात भर उहवे रहनी सन, फिर सबेरे खाना खा के उ देवी से विदा लहनिसन, उ देवी कहली की ई क्षेत्र में केहु भुखा ना रहसकेला”।

करतब वाले के परिवार समोसा खा लिहलन, अउरी चाय भी पियलन। करतब वाली लईकी पास बईठल थी। बड़ी देख के मोह लागे की कइसन छोट लईकी बिया औरि केतना एकरा कष्ट बा। मन बड़ी मोहाये लागल। ओकर नाम मुनिया रहे।  मुनिया के कपड़ा फाटल रहे, ई देख के रंजन के पत्नी मुनिया के बगल के एगो दुकान में ले गईली। उ मुनिया खातिर, कपड़ा खरीदली, फिर जुती खरीदली।मुनिया बड़ी खुश रहे। बड़ी आत्म सन्तुष्टि भइल। अब मुनिया जाए लागल, त रंजन ओकरे बाबुजी के बुला के कहलन, जब भी तहरा अइसन लागे की मुनिया के पढावे के बा,त हई हमर कार्ड ले ल…एह पर हमर पता अउरी फोन नंबर बा, हमरा फोन कर दिहss , ना त चिट्ठी भेज दिहss, हमनी मुनिया के पढाईब, ओहके आगे बढ़ाइब।

करतब खत्म भ गईल,अब मुनिया अउरी ओकर परिवार अलविदा कह,धीरे धीरे आँख से ओझल होखत जात रहे,लेकिन मन अभियो मुनिया में रहे कि ओहके पढ़े के चाही….

 

“संजीव कुमार रंजन”

राजेन्द्र नगर, गोपालगंज (बिहार)।

 

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