एगो मनसायन

[नमन भर से काम ना चली।पढ़ीं -जानीं -सोचीं सभे अपने पुरखन के बारे में]
भोजपुरी कवि विचित्र जी ,मुँहदुब्बर जी
आ मुखिया जी के इयाद करत
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भोजपुरी के स्वनामधन्य कवि स्व.कुबेर मिश्र ‘विचित्र ‘ जी आ राघवशरण मिश्र ‘मुँहदुब्बर’ जी ओह बेरा भोजपुरी कवि- मंचन के जान-परान रहनीं।मुँहदुब्बर जी आ विचित्र जी ई दूनू जने जब एक मंच पर जुट जाईं तब फेर पूछहीं के का रहे!
हमरा इयाद बा छपरा नगरपालिका मैदान में ‘तुलसी पर्व’ के आयोजन में हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ कवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी आ केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात ‘ जी पहुँचल रहनीं।आचार्य शास्त्री जी आ प्रभात जी दूनू आदमी में अध्यक्षता के लेके ठनल रहे।बाद में बात फरिआइल तऽ कवि-सम्मेलन शुरु भइल ।मंच पर मुँहदुब्बर जी शास्त्री जी का ओर इशारा करत आपन कविता पढ़लें-“छरिआईं मत।हुरपेटीं जनि मुँहदुब्बर के हई चार सौ बीस के डाली लीं।हुरपेटीं जनि मुँहदुब्बर के।” शास्त्रिये जी ना हँसे लगनीं बलुक पूरा पंडाल ठहाका से गूंज उठल।मंचसंचालक के मुँहे ‘मुँहदुब्बर’ के नामे सुनत ओह बेरा शास्त्रीजी हरक गइल रहनीं। हास्य में व्यंग्य घोरल सामान्य बात हऽ।कवि खातिर। बाकिर फूहड़ता से बचि के खाँटी हास्य के सिरिजना कइल ओतने कठिन काम होला।काश! आज भोजपुरी के फूहड़ गीत गाके माल झारे वाला कवनों गवैया लोग एह बात से सबक लीत लोग।
भोजपुरी कवि राघवशरण मिश्र ‘मुँहदुब्बर’ जी(हरपुरकोठी,बनियापुर,सारण) के बारे में हमार डाॅक्टर चाचा बतवले रहनीं कि एकबेर मुॅहदुब्बर जी के गाँवे कवनों बारात आइल रहे।बारात में रास के ‘लौंडा- नाच’ खूब जमल रहे।पाठ शुरु होखे के पहिलहीं तबला जबाब दे दिहलस।गाँव वाला लोग नाच-मास्टर पर टूट पड़ल।एगो समझदार मनई ओकरा के सिखवलें कि चल जो तनीं गाँव के बहरी मुँहदुब्बर बाबा के बथान पर।ऊ हरमुनिया-तबला सब रखले बाड़ें अपना रियाज खातिर। गाँव वाला केहू ना जा सकत रहे मुँहदुब्बर जी का लगे ,ना तऽ एको करम बाकी ना छोड़ितें।पिटाये आ साटा के पइसा ना मिलला के डरे बेचारा नाच-मालिक मुँहदुब्बर जी के बथान पर रात भर खातिर तबला माँगे चहुँपल। बाकिर ऊहे भइल जवना के अंदेसा रहे। कविजी तरना गइलें आ कहलें कि “भाग रे सरवा ! तें हमरा गाँव के अधिकवन के चढ़वला पर चढ़ि अइले हऽ हमरा लगे।आज तबला फूटल बा तऽ आपन तबला हम दे दीं आ लौंडवा भागल रहित तऽ कहितिस तें कि बाबा तनीं चलीं ना ,गाँवे के नू बात बा,चलि के अपनहीं डोला दीं।” नाच-मालिक भागल उहाँ से जान बचा के।अइसनका हास्य- रसावतार पहिले कवि होत रहले हँ भोजपुरी कवि- मंच के।आज ना ऊ कवि बाँचल बाड़ें ना ऊ मंच।
आजे जुगानी भाई के कविता संग्रह ‘भोजपुरी कवितई क पंचामृत ‘ के ‘भूमिका ‘ में रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी जी के आलेख पढ़े के मौका हाथ लागल हऽ।उहाँ के बतवले बानीं कि भोजपुरी कवि विचित्र जी एकबार अपना किहाँ समाज में कन्या -भ्रूण- हत्या आ दहेज- प्रताड़ना के बढ़त घटनन से मर्माहत होके एगो विचित्र आयोजन करवले रहनीं।बारात निकलल रहे आ ओमें दुलहा बनल रहनीं -खुद कविराज बिचित्रे जी। कार्यक्रम के नाम रहे-‘अजा कुमारी के बिआह’।माने कि जे पाठी (बकरी) के बिआह । खूब बिधि-बिधान से बिआह भइल,भोज-भात भइल।आ आखिर में , कवि-सम्मेलनो भइल जवना में समाज में लइकिन आ मेहरारुन के दुरदसा के लेके खूब कविता कवि सभे पढ़ल।ई आयोजन 2003 में भइल रहे आ एकर चरचा जिला-जवार में तब महीनन चलल।
भोजपुरी कवि रामजी सिंह ‘मुखिया’ जी ओही परम्परा में रहनीं।भोजपुरी हास्य-व्यंग्य के अद्भुत आ जब्बर कवि।इमरजेन्सी में सीधे सत्ता से टकराये के जज्बा मुखिये जी में रहे अपना कवितन के जरिये।मुखिया जी के कविता में व्यंग्य एतना मारक,प्रभावक आ प्रखर बा कि केतनो सुहुरउवल होखी बाकिर गँथाये वाला टड़पते रह जइहें।उनका कविता में व्यंजना के चमत्कार अद्भुत बा।देखीं सभे उनकर पंक्तियन के-
“गाँधी जी के तीन बानर,एगो गूँग,एगो बहिर एगो आन्हर।”
ई सब घटना आ प्रसंग – ई बतावे खातिर काफी बा कि कवि का तब समाज से सीधा जुड़ाव केतना हद ले रहे।समाज के दुख-दरद से ऊ केतना ले प्रभावित होत रहे आ सही राह गहे खातिर ऊ समाज के केतना ले प्रेरित कर सकत रहे अपना कविता भा सामाजिक मुखरता आ स्वीकार्यता के बल पर।
सोचे के जरूरत बा कि का आजो कवनों लोक कवि भा कलाकार ओहू तरे से सोचत बाड़ें जइसे मुँहदुब्बर जी , विचित्र जी भा मुखिया जी सोचत रहनीं।का कविता भा भोजपुरी गीत -संगीत आपन सामाजिक दायित्वो बूझे खातिर तैयार बा आ कि खाली बकैतिये से सब काम फरिया जाई?
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□सुनील कुमार पाठक, पटना,7261890519.

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