एक बेरी के बात ह कि कैलाश मानसरोवर के एगो हंस के बियाह भइल त ऊ अपना मेहरारू हंसिनी से कहलस कि चले के बिहार घूमे. हंसिनी पुछलस कि ओहिजा देखे जुगुत का बा? तब हंस कहलन कि जवने बा तवने देखल जाई! फेर कहलस कि ओहिजा हिमालय नियन पहाड़ त नइखे, बाकिर कैमूर पहाड़ी बा, रोहतासगढ़ के किला बा. गंगा नदी नइखे त का भइल, दुर्गावती आ करमनासा नदी बाड़ी सन. भगवान भोलेनाथ नइखन त का भइल, उनके रूप गुप्तेश्वर नाथ के गुप्ताधाम बा. हंसिनी खुश हो गइली आ कहली कि चलिंजा!
दोनों जोड़ी जब कैमूर पहाड़ी पहुँचल तब कहाँ हिमालय के मानसरोवर आ कहाँ बिहार के कैमूर पहाड़ी! हंसिनी कहलस कि बड़ा उदास जगह बा जी! कइसे रहल जाई एहिजा? हंस कहलन कि कवनो बात ना, दू-एक दिन के त बात बा, कवनो बसे के बा एहिजा? रात भर रहल जाव काल्ह वापस चल दियाई. दिन भर घुमला के बाद रात में दुनो परानी एगो फेंड पर सुते चलल त एगो उरुआ हुंहुंकारे लागल. हंसिनी कहली कि अब आज सुतलो दुलम करी ई उरुआ! हंस कहलन कि अब बुझाइल कि ई इलाका काहें अतना उजाड़- वीरान बा! ई सब एह उरुआ के चलते भइल बा, जहाँ उरुआ रहेला, ओहिजा के जगह उजाड़- वीरान होइए जाला. खैर! काल्ह हमनी के अपना देश लवट चलबजा!
रात में उरुआ दूनो परानी के बतकही ध्यान से सुनले रहे. दोसरा दिन ऊ सबेरे हाथ जोड़ के कहलस कि हंस भाई, हमरा चलते रउआ सब बढियाँ से रात भर ना सुतनी, एह बात के हमरा बहुते दुख बा, माफ़ी मांगतानी, माफ़ कर दिहीं, आ एहिजे रहीं, देश मत छोड़ीं. रउआ के अब एहिजा कवनो तकलीफ ना होईा बाकिर हंस ना मनलन. कहलन कि अब कतनो बड़वरगी केहू सुनाओ, हमनी के मानसरोवर छोड़के एहिजा ना रहबजा. उरुआ कहलस कि ठीक बा, तब जाईं रउआ!
जब हंस अपना हंसिनी के संगे जाए लगलन तब, उरुआ चिहा के बोलल-” ए भाई! हमरा मेहररुआ के कहाँ लेले जा तानी! अकेले जाईं?”
हंसो एकदम चिहाइये के कहलन-“हम त अपना मेहरारू हंसिनी के लेके जा तानी!”
तब उरुआ कहलस कि ना, ऊ तोहार ना, हमार मेहरारू हई. अब हंसिनी के लेके हंस आ उरुआ में हुज्जत शुरू भइल, तब जंगल के सब जियाजंत बटोराईल आ लोग कहल ली अब पंचाइत होई. पंच लोग जवन कही तवन सबका माने के परी.
जब पंचायत बइठल तब पंच लोग पहिले आपुस में सउंजा कइल. बड़का पंच कहल कि हमार बात सुनजा, ई हंस बाहर से आइल बा, आज एहिजा बा, काल्ह अपना देस के राह धरी. एने उरुआ ह त का भइल, आपन ह, एकरे संगे जिनिगी भर रहे के बा हमनी के! एहसे उरुवे के पच्छ में फैसला सुनावे के होई! अब सब पंच लोग हुंकारी भरल आ कहल कि ठीक बा. तब बुढऊ पंच फैसला सुनावत कहलन कि ई भले हंसिनी हई, बाकिर उरुआ भाई के मेहरारू हई, हमनी के बहुते दिन से इनिका के जानिलाजा! ओही में एगो पंच खड़ा होके कहलन कि हं, एह लोग के लभ मैरेज भइल रहे—!
पंच लोग के ई फैसला सुनके हंसराम के कठुई मार देलस आ ऊ भोंकार फार के रोवे लगलन. पंच लोग कहल कि अब रोवला से कवनो फएदा नइखे, जा अकेले अपना मानसरोवर में डुबकी लगाके मू जा!
बेचारा हंस निरास होके उत्तर दिशा के राह धइलस. तले उरुआ ठठाके हंसल आ गोहरवलस—-“ए हंस भाई! हेने आव, हेने–!
हंस रोवते मुड़ी घुमवलस आ कहलस कि मेहरारू त लेइये लिहल, अबका परान लेब?
उरुआ कहलस कि कुछ ना लेब तोहार भाई! पहिले हमार बात त सुनल! लेजा-लेजा! ई हमार ना तोहरे मेहर हई, बाकिर एगो बात बतावे के बा—! रतिया में जवन बतिया तूं कहले रह न, ऊ हमरा करेजा में लाग गइलबा. तूं कहत रह कि जहवाँ उरुआ रहेला ओहिजा के देस-दुनिया उजाड़-विरान हो जाला! ई ठीक बात नइखे! ई इलाका हमरा चलते ना, एह पंच लोग के चलते उजाड़-विरान भइल बा. ई लोग हर ममिला में अइसहीं फैसला सुनावेला. ममिला चाहे मुखिया के चुनाव के होखे, मुख्यमंत्री के होखे भा प्रधानमंत्री के ! एहिजा फैसला योग्यता देखके ना, जाति-धरम, पंथ आ सम्प्रदाय के आधार पर ही होला!
हंस आपन मेहर लेके मानसरोवर चल गइलन आ कहलन कि अब कब्बो ना आइब एने!
- शंकर मुनि राय ‘गड़बड़’