का जमाना आ गयो भाया,सभे बेगर आगा–पाछा सोच के भोंपू पर नरियाये में जरिको कोर-कसर नइखे उठा राखत। मने कतों, कबों, कुछो जबरिये फेंक रहल बा। एह ममिला में सावन से भादों दुब्बरो नइखे। सुननिहारन के कत्तई अहमके बूझ रहल बा लोग । एहनी के केहू बतावहूँ वाला नइखे कि- ‘ उ जमाना लद गइल जवना में गदहो पकौड़ी खात रहले सन। समय बदल रहल बा। सोच बदल रहल बा आ मनई उत्तर देवे क तरीको बदल रहल बाड़न। अब दोसरो लोगन के अपना काम-काज के तौर-तरीका बदले के पड़ी, ई क़हत तिवारी बाबा ठठा के हँसलन। फेरु बेगर रुकले बोले लगलन- सुनी लोगिन, हम इहवाँ बइठ के पाने भर ना लगाइले, लोगन के मनवो पढ़त रहीले। 2014 में भुंवरी काकी ‘मौत के सौदागर’कहलीं आ करियवा कोट चाय के दोकान खोलवावे के दिल देखवलें, का भइल ? पता बा नु ! काकी फेरु अबले कुछो कहे जोग ना बचलीं आ करियवा कोट के दोसर दुवार देखे के पड़ गइल।चारा खाये वाला सब ‘ब्रह्म पिचास’ क़हत रहलें, अब मंदिर- मंदिर घूम के ओझाई करवा रहल बाड़न। अतना का बादो कुछ लोगन के बोखार नइखे छूटल। बोखार त बोखारे ह, केहुओ के आ सकेला। ‘ब्रह्म पिसाच’ कहे वालन से प्रेरणा लेके उनुके नौरासी एह बेरी ‘ संविधान बदले’ के बात करे लगलन, उनकरो हाल रउरा लोगन के सोझा बा। अब का बोले के चाही, ना सोचब , त फेरु बोले जोग ना बाचब।
उहवाँ ठाढ़ ढेर लोगन के पेसानी पर लकीर का संगही पसेना चुकचुका गइल। कब के आके रउरा मार्गदर्शक मण्डल के स्थायी सदस्य बना जाई, नइखे पता। आँख-कान खोलके आ मुँह बन्न राखी के ढेर कुछ करत आगु बढ़ला के समय चल रहल बा। जे राउर आपन कबों ना रहल, ओकरा पाछे भागब , त मुँहकुरिये ढिमिलाए क गारंटी बूझीं। बेगर बतकुचन कइले, अपनन के जोगावल जरूरी बाटे। बुद्धि के भसुर बनला आ कुकुर-बिलार भा कवनो फेंकू-कबारू पर दाँव खेलल आ पपुआ के बिरादरी से जुड़ल एक्के कहाई। बड़बोलवन खातिर मुँह के टेप साटे पड़ी, नाही त भईस के पानी में जाये से रोकल मोसकिल बाटे। इहवाँ त ‘ जथा एने तथा ओने, एने-ओने तथैव च’ के हाल बा। पुरनिया लोग कह गइल बाड़न ‘सुनS, गुनS तब धुनS’, एह मंतर के भुलाए के काम नइखे। एह मंतर के जापे भर मति करीं, एकरा अपना जिनगियो में उतारीं, भलाई एही में बा। नाहीं त धोबी के कुकुर वाला हाल होखहीं के बा। भरम में भंगुअइला पर ना त पूरा मिली ना त आधा। दोसरे लोग सधा लेही, बुझलीं नु।
तिवारी बाबा अपना पान के दोकान पर आजु कामे जेयादा नेतन के कोसे में लागल बाड़न । हर 10-5 मिनट मे एकसुरिए बोले लागत बाड़ें- ‘बेसरमन के त लाटरी लाग गइल बाटे। कतों राजनीति करे से बाज नइखे आवत सन। व्हाट्सएप स्कूल के पढ़निहार सभे नवकी दुंदुभि बजा रहल बाड़ें । भाषा के अस्मिता के त धज्जी अइसे उड़ावत देखात बाड़ें सन, जइसे कि पिजरा में बन्न चिरई के उड़ावल जाला। शब्द चयन के त पूछीं मति, ओहके त कोठा के रसता देखा चुकल बाड़ें सन । न जाने कवना ओर देस के ले जइहें सन, एहनी भाषा अउर कतों कुछों बोले के आदत के नीमन क इसे कहल जाई, समुझ में नइखे आवत। एहनी के राजनेता कहे में सरम केहुओ के लाग जाला।’ अबरी के बितलके चुनाव के हाल देखि के तिवारी बाबा के खोपड़िया चकरघिन्नी बन चुकल बाटे। सुतत-जागत अकबकाए लागत बाड़न। बुझाता कवनो डागदर बीरो भीरी ले जाये के पड़ी उनुका। उनुकर सभे संघतिया लोग उनुका हाल देखि के बेकल हो चुकल बा। अजोधिया जी खातिर कतने लोगन के बाउर बोल सुनिके उनुका के ढेर धक्का लागल बा। ई कुल्हि जान-सुन के हमरो मन दुखी बा। हम त भगवान राम से इहे निहोरा करेम कि निकहा अइसन लोगन के सद्बुद्धि जरूर देसु, कि एह लोगन के बोल-बचन से तिवारी बाबा आस केकरो धक्का ना लागसु। हमरा ओर से बेर बेर तिवारी बाबा के शुभकामना बा कि उहों के एह मकड़जाल से बहरा निकल आवसु आ फेरु से अपना काम में लग जासु। रउवो सभे अपना-अपना हिस्से के शुभकामना जरुर दे देब सभे।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
संपादक, भोजपुरी साहित्य सरिता