अँधेर पुर नगरी….!

का जमाना आ गयो भाया,सगरी चिजुइया एक्के भाव बेचाये लगनी स। लागता कुल धन साढ़े बाइसे पसेरी बा का। कादो मतिये मराइल बाटे भा आँखिन पर गुलाबी कागज के परदा टंगा गइल बा,जवना का चलते नीमन भा बाउर कुल्हि एकही लेखा सूझत बाटे। मने रेशम में पैबंद उहो गुदरी के। मने कुछो आ कहीं। मलिकार के कहलका के आड़ लेके आँखि पर गुलाबी पट्टी सटला से फुरसते नइखे भेंटत। मलिकार कहले बाड़े, ठीक बा, बाक़िर समय आ जगह का हिसाब से कुछो कहल आ कइल जाला। अपना लालच में मलिकारो के बदनाम करे के कवनो मोका बांव नइखे जाये देवे के, बस अपना आँखिन पर गुलाबी पट्टी सटा जाये के चाही। बेचारी हरिनंदी (हिंडन नदी) एहनी लोगन का चलते हर घरी पीरे में जी रहल बाड़ी।अइसने कुल्हि करतूतन का चलते दुबराय के काँट हो गइल बाड़ी आ उनुका जल के हाल जनि पुछीं महाराज, छुवाते खजुहट ध लेवेला। एह जुग में विसेश्रवा रिसि रहतें त नहइते कहाँ आ कवन जल दूधेश्वर नाथ के चढ़वतें? उजरी काकी के सहर के पहिलका नागरिक बनते दिन पलट गइल, चीन्हलो बन्न क देले बाड़ी, सरकारी ऑफिस में बइठला में तौहीन बुझाये लागल, त केराया पर ऑफिस लियाइल बा। सरकारी ऑफिस में बइठ के गुलाबी कागज के पट्टी साटे में कुछ दिकत होत रहे। अब जवन पइसा सहर के विकास में लागे के चाहत रहे, उ पइसा केराया में जा रहल बा उहो केकरा जेब में, बूझत रहीं। अब गुलाबी पट्टियो सटला में कवनो दिकत नइखे। साटीं, साटीं, खूब साटीं, जइसे मोट परत भइल सूझल बन्न हो जाई, फेरु त मुँहकुरिये ढहा जाये से केहुओ नइखे बचा सकत।

एह घरी मनराखन पांडे के नाकि के तागत ढेर बढि गइल बुझता, उहो सूंघ लीहलें आ भोरही से बउवाये लगलें। तनि हई देखS उजरी काकी के हो, ई त दोसरो के जमीन कब्जिया के ओहपर आपन मोहर लगावे खाति अकुलाइल बाड़ी। खाली मोहरे लागवे भर के बाति होखत तबो एगो बाति रहित। इहाँ त ओकरा के बेचे खाति पहिलही से रेहड़ी-पटरी वालन से बयाना अपने करिंदन से पकड़वा रहल बाड़ी।अरे भाई उ जगहिया त एगो मार्केट के पार्किंग खाति बा। फेरु उहाँ के लो आपन वाहन खड़ा करे खाति कहवाँ जइहें ? उनुका ई बुझाते नइखे। आ बुझइबो करी त कइसे बुझाई, ओहुओ में उनुका हिस्सा पहिलही से तय हो चुकल बा। अब अइसन कुछ होखी त मार्केट वाला लो स्टे लेबे करी त ओहमें गरीबे-गुरुबा नु पेराई। फेरु ओहनी के भरमा के आपन काम निकरिहें भा ओहनी उसुकइहें जवना से कि उहाँ के माहौल बाउर होखी। वाह रे ! सहर के पहिलका नागरिक उजरी काकी। सहर तहरा के पा के नीमन से अघा रहल बा हो।

मनराखन के एगो चेला बतवलस कि अइसन खेला ई उजरी काकी एक-दू जगह आउर क चुकल बाड़ी। उजरी काकी के एगो करिंदा ह बखोरना। असल में एह कुल्हि में बखोरने के दिमाग चलेला। उ उजरी काकी के समुझा-बुझा के आ गुलाबी माला पहिरा के खूबे माल कमा चुकल बा। बखोरना उजरी काकी के संगे मिल के रेहड़ी पटरी वालन के बसावे के नाँव पर कियोस्क दोसरा के दिया गइल आ फेरु रेहड़ी-पटरी वालन से केराया असुला रहल बा। मने जियलका त छोड़े के नइखे मुअलको हजम करे के भरपूर इंतजाम। कुछ अइसने खेला इहवों खेले के फेरा में बखोरना उजरी काकी के मिला के क रहल बा। ई दूनों मिल के नगर आयुक्तों के लपेटले बाड़ें स। मने बनूक त एहनी के बा आ कन्हा सरकारी।मने उहो सहर का बीचो-बीच। मनराखन पांडे बेचारु ठीके नु क़हत बाड़ें ‘बरियरा चोर सेंध में गावे’। ई कुल्हि खेला हरिनंदी के सहर में चल रहल बा। मने ऐतिहासिक नदी के सहर के ऐतिहासिक खेला। जय हो बाबा दूधेश्वर नाथ के, रउवो साक्षी बानी। हमनी का संगे रउवो खेला देखीं ए बाबा।

 

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

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