भोजपुरी कविता में रचल – बसल रस के मिठास से सराबोर एगो मजिगर पोथी

भोजपुरी कविता के इतिहास बहुत पुरान बा। बाबा गोरखनाथ आ संत कबीर के कवित के थाती त भोजपुरी कविता में बड़ले बा साथे ओह काल से लेके आजु तक भोजपुरी कविता समय के साथ कदम ताल करत कविता के हर विधा में आपन जोड़दार उपस्थिति दर्ज कइले बा। महेंद्र मिश्र, भिखारी ठाकुर, रघुवीर नारायण सिंह, प्राचार्य मंनोरंजन, महेंद्र शास्त्री से होत आजु तक के भोजपुरी कविता के यात्रा अपना भीतर बहुत कुछ समेटले बा जेकरा पर हमनीं भोजपुरिया के गुमान बा। भोजपुरी काव्य में का नइखे? राष्ट्र गीत, सिंगार गीत,…

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विश्व भोजपुरी सम्मेलन गाजियाबाद इकाई का ओर से पुष्पांजलि अर्पित !

विश्व भोजपुरी सम्मेलन गाजियाबाद इकाई का ओर से आज 20जुलाई के संस्था के अंतरराष्ट्रीय महासचिव डॉ अरुणेश नीरन जी के पुष्पांजलि अर्पित कईल गइल ।बतावत चलीं कि डॉ नीरन जी 15 जुलाई के शिव लोक गमन क गइलन ।उनके व्यक्तित्व आ कृतित्व पर इकाई के महासचिव जे पी द्विवेदी विस्तार से प्रकाश डललेंं। इकाई अध्यक्ष मनोज तिवारी जी उहां के भोजपुरी खातिर कईल योगदान के कबों ना भूले जोग बतावत उनके राह चले के सभी के प्रेरित कइले।

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प्रकृति किहाँ बा मेला भारी

प्रकृति कहाँ बा मेला भारी, सभे करे मिलि-जुलि तइयारी। बादर-बदरी खुश हो अइलें, ढोल बजावत गीत सुनइलें, मस्ती में बूनी बरिसइलें, बिजुरी के सँग नाच देखइलें, धरती के हिरदया जुड़ाइल, घर-आँगन होखल फुलवारी। प्रकृति किहाँ बा मेला भारी।। सगरो लउके हरियर-हरियर, रसगर भइलें आहर-पोखर, नदी-नहर नाला उमंग में, गागर-गागर लागे सागर, बीज बोआइल हँसी-खुशी के, हँसल भविष्य के मनगर क्यारी। प्रकृति कहाँ बा मेला भारी।। पर्वत पत्थरदिल ना कहलस, तनिको कम ना ओमें बा रस, प्रेम बढ़ावत भू के छुअलस, हरखित होके सुध-बुध तेजलस, देखसु सूरज-चाँद चिहाके, कहसु हव सचमुच…

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रिमझिम बरसेला सवनवां

रिमझिम बरसेला सवनवां में संवरिया बदरा। रस के गगरी चुआवेले बदरिया बदरा डर लागे अन्हियरिया में चमके चहुँ ओर बिजुरिया ओरियानी के पानी छींटा मारे सोझ दुवरिया । खटिया मचिया भीजे तकिया मुडवरिया बदरा करिया घटा नचावे बन में मोरवा संग मोरिनिया । दादुर मेघा मेघा टेरे चातक मांगे पनियां । बैरिन बंसिया बजावे बंसवरिया बदरा। अंगना लागे काई सम्हरि न पाईं फिसले पउवां झुलुआ झूलें कजरी गावें मिलि के सगरी गउवां उफनलि पोखरी में उछलेलीं मछरिया बदरा । चान सुरुज मिलि छिपि के खेलें दिनवो लागे राती। पवन झकोरा…

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के हो लिलरा पर छिरकल गुलाल

के हो लिलरा पर छिरकल गुलाल बदरा उठल मनवां में केतनी सवाल बदरा।   गइलें सुरूज़ देखS पछिम के देसवा बबुआ के दादी सुनावेली खिसवा लवटे लगलें मदरसा से  लाल बदरा । के हो लिलरा पर छिरकल गुलाल बदरा।   दफ़तरवा से लवटे लगलें नोकरिहा होखे लगल पनघट पनिहारिन से खलिहा नापे चरवहवा  गइयन के चाल बदरा। के हो लिलरा पर छिरकल गुलाल बदरा।   लवटेली चारा ले चोंच में चिरइया उगे लगलीं नभवा में छिटफुट तरइया माझी खोलेला नइया के पाल बदरा । के हो लिलरा पर छिरकल गुलाल…

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मुखिया के पटीदार

तेल पिला के राखीं लाठी सभ देखी तेल के धार । हम मुखिया के पटीदार।   जीत क पगरी हमरा माथे रक्षक बनि डोलीं हम साथे हूँ-टू होखे कतौ कबों जे सुधरि के उपरे हमरा पाथे। हम बड़का हईं जुझार। हम मुखिया के पटीदार।   बरिस पाँच जे गुन गन गावै बदले मोट मलाई पावै सोझा रखि आपन अपनापा आँखि मुनी के मान बढ़ावै। बस उहवें दिखे बहार। हम मुखिया के पटीदार।   कलेक्टर के पी ए लेखा बनल भौकाल जहाँ क देखा गली मोहल्ले जय-जयकार माथ दिखे ना कउनों…

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भोजपुरी साहित्यकार सम्मानित

22 जून, 2025, गाजियाबाद, विश्व भोजपुरी सम्मेलन, गाजियाबाद इकाई द्वारा विचार संगोष्ठी आ सम्मान समारोह के आयोजन गणपति फार्म हाउस, अवंतिका II, गाजियाबाद में सम्पन्न भइल। भोजपुरी के तीन दशक से गद्य लेखन में एगो स्थापित नाम अंकुश्री जी इहाँ मुख्य अतिथि रही आ वशिष्ठ अतिथि डॉ.मधुलिका बेन पटेल रहीं। एह कार्यक्रम के दौरान अंकुश्री जी के संस्था द्वारा “भोजपुरी भाष्कर सम्मान” आ भोजपुरी काव्य लेखन खातिर डॉ.मधुलिका बेन पटेल के “भोजपुरी सौरभ सम्मान” प्रदान कइल गइल। अंकुश्री साहित्यिक यात्रा पर विचार रखत भोजपुरी जन जागरण के अध्यक्ष आ कवि…

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पार्टी विथ डिफरेंस

पार्टी विथ डिफरेंस हईं हम होखे जय-जयकार। हो बाबू !हाउस टैक्स उपहार।   तहरे माला हमै बनवलस पार्षद, मेयर आ विधायक । हमही लायक सांसद बानी टैक्स के चलाइब सायक।   चैन से रहि ना पइबा घरे नगर निगम के मार। हो बाबू !हाउस टैक्स उपहार।   पानी बिजुरी कूड़ा पूरा घर-घर हेरवाइब सर्वे कर । टैक्स क सोंटा चली दबा के कंहरे भा जीयें मर मर कर ।   जनता के राहत ना कउनों देखत अँखिया फार। हो बाबू !हाउस टैक्स उपहार।   चमचा फोरें घर-घर के आ बेलचा…

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सवाल आ सपना

सवाल अपना जगे खड़ा रहेला खड़ा रही जे भागेला सवाल से सवाल ओकर पीछा परछाईं जस करेला काहे कि सवाल आपने उपराजन होला सामने बस ठाढ़ करेला कबो केहू त कबो केहू। [2] सवाल से भागे वाला के ना बुझाला कि ऊ जिनिगी से भाग रहल बा आ ढो रहल बा लाश बस अपने जिनिगी के। [3] सवाल दोसरा के पूछे के मौके ना मिले जब कवनों आदिमी अपना बारे में अपने से पूछ लेला सवाल । [4] सवाल कबो ना मरे ऊ पीछा करत जीयल मुहाल कर देला सवाल…

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भोजपुरी भाषा के मानकीकरण’, ‘ओकर शब्दन के एकरूपता’

‘भोजपुरी भाषा के प्रमाणिक रूप’, ‘भोजपुरी भाषा के एकरंगी रूप’, भोजपुरी भाषा के मानकीकरण के आवश्यकता’ जइसन विषय पर समय समय पर विद्वावनन के विचार आइल। भोजपुरी के मानक रूप के तैयार करे के प्रयास लगातार चल रहल बा। कहे के ना होई कि भोजपुरी साहित्य के सृजन सिद्व आ नाथ पंथ, कबीर पंथी, भगताही आ सरभंग सम्प्रदाय के संत भक्त कवियन के ‘बानी’ से शुरू भइल। बाकिर साहित्यिक रूप में भोजपुरी भाषा के निर्माण पिछला 100 साल से हो रहल बा। जब भोजपुरी साहित्य के निर्माण शुरू भइल तब…

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