भोजपुरी कविताई के सुरूआती दौर भोजपुरी कविता के प्रारम्भिक दौर के पड़ताल करत खा हमरा सोझा ओकर तीन गो रूप आवत बा – एगो बा सिद्ध, नाथ आ सन्त कबियन क रचल, दूसर लोकजिह्वा आ कंठ से जनमल, हजारन मील ले पहुँचल, मरम छुवे आ बिभोर करे वाला लोकगीतन के थाती आ तिसरका भोजपुरी के सैकड़न परिचित-अपरिचित छपल-अनछपल कबियन क सिरजल कविताई. साँच पूछीं त भोजपुरी कबिता सुरूए से लोकभाषा आ जीवन के कविता रहल बा. एही से ओमें सहजता आ जीवंतता बा. भोजपुड़ी कविता का अतीत के देखला से…
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