ए बाबू ! सपना सपने रहि जाई

का जमाना आ गयो भाया, अब त उहो परहेज करत देखाये लागल जे रिरियात घूमत रहल। आजु के समय में जब हिंदिये के ओकत दोयम दरजा के हो चुकल बाटे, त अइसन लोगन के का ओकत मानल जाव। हिंदियों वाला लो अपना बेटा-बेटी के अंगरेजी ईस्कूल में पढ़ावल आपन शान बुझता काहें से कि ओहू लोगन के नीमन से बुझा चुकल बा कि हिन्दी से रोजी-रोटी के गराण्टी भेंटाइल मोसकिल बा। हिन्दी के लेके जवन सपना रहे, उ ई रहे कि ई अङ्ग्रेज़ी के स्थान पर काबिज होई। बाकि अइसन कुछ भइल ना। अजुवों राजभाषा के राजभाषे बा। भलही सरकारी तंत्र कुछो गलत-सलत किताबियन में छाप के पढ़वा देवे। अपना के हिन्दी भाषी कहे वाला ढेर लोगन के आजु ले इहो नइखे पता कि हिन्दी राजभाषा ह कि राष्ट्रभाषा। मने राजभाषा आ राष्ट्रभाषा के अंतर नइखे पता।  हिन्दी दोयम दरजो से गवें गवें गारत में जा रहल बा। एकरा पाछे के कारण आजु हेरे के जरूरत नइखे। कारण सोझा बा, आजु के तथाकथित झंडाबरदार लो। एगो ‘हिन्दी बचाओ मंच’ बना के, सै – पचास लोगन के गैंग बना के ई लो आपन ऊर्जा लोक भाषन के नकारे में लगा रहल बा। जबकि लोकभाषावन के साहित्य बटोर के आपन बोलत बेरा सरमातो नइखे। रउवा लोगन के त कबीर, सूर ,तुलसी,मीरा,रहीम,रसखान आ विद्यापति जइसन साहित्यकारन के साहित्य से दूरी बना लेवे के चाही। बाकि अइसन रउवा सभे करियो ना सकित। लोकभाषा के साहित्य बिलगवते हिन्दी के अस्तित्वो बिला जाई, ई बाति नीमन से पता बा।

एह मंच वालन के भा कहीं कुछ अइसने मानसिकता वालन के सभेले बेसी मिरचाई भोजपुरी से लागेले। भोजपुरी भाषिन भा भोजपुरी के साहित्यकारन के देखते अइसन लोगन के साँप सूंघ जाला। कई बेर त मानसिक संतुलनों गड़बड़ा जाला। अइसन लो नया-नया कुतर्क गढ़ के रहता रोके में लाग जाला। जबकि अइसनका लोगन के इहो पता बा कि एह घरी सभेले तेजी से विकसित हो रहल भाषा भोजपुरी बिया, लिग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया के अध्यक्ष डेवी जी  त अइसने कुछ राष्ट्रीय चैनल पर कह चुकल बाड़ें। भोजपुरी 1000 बरीस से पुरान भाषा ह, जवन हिन्दी के पहिलहूँ  रहल, अजुवो बा आ आगहूँ  रही। भोजपुरी के साहित्य पहिलहूँ लिखात रहे, अबो खूब लिखा रहल बा आ आगहूँ  लिखाते रही।

 

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

 

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