आपन ढेंढर भूलि दोसरा के फुल्ली निहारे के फैसन

का जमाना आ गयो भाया, एगो नया फैसन बजार में पँवरत लउकत बा, ढेर लो ओह फैसन ला पगलाइल बा। उचक के ओह फैसन के लपके खाति कुछ लोगन के कुटकी काट रहल बा। एह फैसन के फेरा में हर जमात के कुछ न कुछ लोग लपके ला लाइन लगवले देखात बा। कुछ लो लपकियो चुकल बा। एह फैसनवा के लपकते लोगन के चरचा होखे लागत बा। मने मुफ़ुत में टी आर पी के कवायद। ई कुछ चिल्लर टाइप के लो बा भा रउवा चिरकुट टाइप बूझ सकेनी, एह फैसन में डुबकी लगा रहल बा। चिल्लर भा चिरकुट कहे के मतलब ओह लोगन के सोच आ चरित्तर से बा। ओइसे त लो बड़का-बड़का ओहदा ज़ोर-तोर से बना के बइठल बा।इहो जानल जरूरी बा कि ई फैसन जानल जाला ‘ आपन ढेंढर भूलि दोसरा के फुल्ली निहारे’ के नाँव से। एह फैसन के असर साहित्यिक क्षेत्र में ढेर गहिराह बले भइल बा।  अइसनका लो दोसरा के समान के आपन बोले में जरिको देर ना करेला। अइसन लोगन खातिर भोजपुरी में ढेर कहाउतो बा ।  रउवा सभे सुनले होखब, ‘जवने थारी में खालें ओकरे में छेद करेलन’ भा ‘जेकर खइलन लिटिया ओकरे धइलें बिटिया’  जइसन कहाउत एही लो खाति बनल बुझाले। मने भर जिनगी इहें के हवा, इहें के दाना-पानी आ सनमान लीहलें बाकि इहें के बुराई  करत जरिको नइखे सरमात। कहे वाला लो त इहाँ ले कह रहल बा कि ई लो आपन सरम बेचि के सुल्फा पी चुकल बा। अब ई मति बूझब कि सुल्फा पर खाली मनराखने  पाड़ें के अधिकार ह। अउरो ढेर लो एह पर आपन अधिकार राखेला।

रउवा सभे के त मनराखन पाड़ें इयादे होखिहें, अरे उहे भुंवरी काकी के बेटवा। उनुका चेला लो साहित्यो में ढेर बा। पछिला छव महीना से एह लोगन के मिरगी के दउरा परि रहल बा आ ई लो अपना देश, आपन भाषा आ अपनही लोगन के गरियावे में अझुराइल बा। एक जने त भोंपू लगा के कुछ लोगन के जुटा के एगो पुरनिया के इजत के छीछालेदर कइलें आ खुद कतना मौलिक हवें इहो सभे के पते बा। ओह जुटलका लोगन में कुछ लो अइसनो रहे जेकर खुदो के कमीज पर कम दाग नइखे लागल आ उ लो रिन सुप्रीम से खूब रगर-रगर के धोवलो बा बाकि दगिया के रंग अबहियों चटके देखाता। कुछ दिन पहिला रोटी-पानी लेके अइसने काम के बचाव करत देखइने, ओही काम के वकालत जेकरा ला भोंपू लगा के गरियावत रहलें। मने बिरोधों मुँह देख-देख के, जात देख-देख के, छेत्र देख-देख के।

एह घरी कुछ अंतरराष्ट्रीय टाइप के शायर लोगन के एह फैसन के गहिराह असर भइल बुझाता। बुद्धू बकसवा में आपन चउखटा उघार के अपनही देश के उलटा-सीधा बोले में जरिको नइखे सरमात। पानी पी-पी के उलटा सीधा बोल रहल बाड़ें। बुझता इनका के प्रवक्ता के नोकरी भेंटा गइल बा। अब मति कहब लोगिन कि उनुका उपर बोले भा लिखे क हमार ओकत नइखे। भुलाई जनि, उनुको से उनके मौलिकता के साटिक-फिटिक माँगल जा सकेला। का पता दोसरा के रचना के दू-चार शबद भा एक-दू लाइन एने-ओने क के आपन नाँव लिख देले होखें भा गूगल बाबा के खजाने पर हाथ साफ कइले होखें, कुछो बिसवास का संगे कहल नइखे जा सकत। इहो हो सकता कि दोसरा के डायरी भा फाइले उड़ा देले होखे, एह फैसन परस्तन खाति कुछो असंभव नइखे।

अइसन फैसन परस्तन के एगो बेमारी जरूर रहेले जवना के नाँव ह अभिव्यक्ति के स्वतन्त्रता।ई पता ना कि बेमारी ह भा कवच, फट ओढ़ लेवे ला लो। अइसन लोगन के ‘जय श्री राम’  के बोल सुनाते डर लागे लगेला। कुछ लो अइसन साहित्यकार भा शायर  लोगन बाउरो बाति पर कम्मल ओढ़ि के सुत जाला, बोलला पर मंच से छुट्टी होखे के डरे। मने जयचंद आ विभीषण अथिराह बले देश के सनमान पलीता लगा रहल बाड़े। कुछ लो त भोरही से दना-पानी लेके अपना देश भा समाज के कोसे में जुटल देखा जाला। अइसन लोगन के पर-पलिवार के लोग कतौ  आ केहुओ के जर-जोरू-जमीन पर हाथ साफ करत भेंटा जाला। फेर जब कबों सरकारी चाबुक चलेला त अइसनका  लो कुछ अउरो खटराग अलापे लागेला। जवना  के इहाँ समरसता भा  धरमनिरपेक्षता के नाँव दीहल गइल बा। अइसना में केहुओ के ई मन परल कि ‘उ करें त रासलीला आ हम करें त करेक्टर ढीला’ बाउर ना कहल जा सकेला। अइसन बात मन परले भर के बात नइखे, उघटला के काम बा। अब त एकरा के देश के करेजे नु कहल जाई जे अइसनो से ई देश गढ़ुआत नइखे, ढोइए रहल बा।  ई लो त सभे के डंहकावते नु बा। जबकि होखे के त उलटा चाहत रहे। हम त अब इहे क़हत इहाँ से विदा ले रहल बानी कि अइसन फ़ैसन से भगवान बचावसु। रउवा सभे अइसन लोगन के गीत सुनी, गजल सुनी भा बगेद दीं, आपन मरजी।

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

 

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