भोजपुरी भाषा आ साहित्य : एक नजर

जवना माध्यम से अपना विचार के लेन-देन होला, उहे भाषा ह।

भारत में पैशाची,संस्कृत , पाली, प्राकृत आ अपभ्रंश के संगे-संगे चलत भोजपुरी हजारन बरिस पुरान भासा हS। प्राकृत आ अपभ्रंश से 12 वीं सदी आवत-आवत असमिया,बंगला,उड़िया, मैथिली,मगही,आ भोजपुरी के अलगा-अलगा रूप निखरल।

– उनइसवीं सदी का अंतिम चरन में भाषा के भोजपुरी नाँव मिलल।

– 1789 ई0 में काशी के राजा चेत सिंह के सिपाहियन के बोली के भोजपुरी  नाँव से उल्लेख भइल बाटे।

– सन् 1868 ई0 में जान बीम्स आपन एगो लेख ‘रायल एसियाटिक  सोसाइटी’ में पढ़ले रहन, जवना के मथेला रहे ‘भोजपुरी बोली पर संक्षिप्त टिप्पड़ी’।

– सन् 1878-1889 ई0 के बीच में डॉ गियर्सन के भोजपुरी संबंधी लेखन, उनकरे ‘बिहार पिजेस्ट लाइफ’  आ डॉ फाइलन के कहावत कोसन में भोजपुरी भाषा के चरचा भइल बाटे।

एह से ई साबित हो रहल बाटे कि जवन राजा भोज दसवीं शताब्दी के एगो बड़ प्रतापी राजा रहलें आ जिनकर राजधानी भोजपुर रहे,उनुके राज्य के भाषा भोजपुरी रहे।

– भोजपुरी एगो विकासशील सामूहिक श्रम के बरियार भाषा के नाँव हS।

 

भोजपुरी साहित्य के काल विभाजन

 

भोजपुरी साहित्य के इतिहास के कई गो ग्रंथ लिखाइल बा। जवना के भोजपुरी जगत हाथो हाथ लिहलो बा। भोजपुरी साहित्य के संक्षिप्त रूप रेखा (तैयब हुसैन पीड़ित), भोजपुरी के कवि और काव्य (दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह),भोजपुरी भाषा का इतिहास (रास बिहारी पाण्डेय), भोजपुरी भाषा आ साहित्य के उद्भव आ विकास (आचार्य हवलदार त्रिपाठी ‘सहृदय), भोजपुरी साहित्य का इतिहास (डॉ गदाधर सिंह)  जइसन पोथी लिखाइल बाटे। बाक़िर  डॉ अर्जुन तिवारी जी के  भोजपुरी साहित्य के इतिहास के सूर्यदेव पाठक ‘पराग’ जी   वैज्ञानिक दृष्टि से सर्वप्रिय , सोगहग , मानक इतिहास ग्रंथ मानले बानी।एह बाति के भोजपुरी के एगो इतिहास लेखक तैयब हुसैन पीड़ित जी आपन सहमति देले बानी।  डॉ अर्जुन तिवारी जी भोजपुरी साहित्य के 5 गो काल निरूपित कइले बानी –

1 प्रवर्तन (सिद्ध  आ नाथ) काल  – 700- 1100 ई0 तक

2 लोकगाथा काल                     – 1100-1400 ई0 तक

3  प्रबोधन (संत समागम ) काल  – 1400-1757 ई0 तक

4  नवजागरण काल                  – 1758 – 1974 ई0 तक

5  प्रसार काल/ आधुनिक काल   – 1975 से अब तक

 

 

  1. प्रवर्तन (सिद्ध आ नाथ) काल  :

एह काल में गुरु गोरख नाथ जन जन के आचरण के पाठ पढ़वलें। एह काल में चर्या गीत के अधिकता रहे। एही का चलते कुछ इतिहासकार लोग एह काल के चर्याकाल कहले बा। पं. गणेश चौबे के अनुसार सिद्ध आ नाथ पंथी सभ में भोजपुरी के प्रारम्भिक रूप ह, जवना के पाण्डेय नर्मदेश्वर सहाय पुष्ट कइले बाड़ें।

लोकगाथा काल :

एह काल में भोजपुरी साहित्य में गाथा काव्य के ज़ोर रहे। गाथा गायक बीरता के बखान करत अपना अपना राजा के मनोबल बढ़ावल, समय देखि के लड़बो कइलस। एह काल में आल्हा,लोरकी,सोरठी बृजभार, विजयमल,शोभानयका बनजारा, राजा भरथरी , राजा गोपी चंद जइसन कृति लिखाइल बाड़ी। गाथा काव्य में ललकार , गोहार, जागरण पावल जाला, जवन भोजपुरी माटी के विशेषता हवे। एह में दरबारी रूप नइखे।

कुछ इतिहासकार लो एह काल के चारण काल , पंवारा काल कहले बा। बाकि भोजपुरिया क्षेत्र में अइसन संस्कृति कब्बों नइखे रहल। एही का चलते ढेर लोग एह नांव से सहमत ना हो पावेला। जवना क्षेत्र में होरी के पहिल ताल एह गाना से ठोकल जात होखे-

‘बाबू कुँवर सिंह तोहरे राज बिनु, हम ना रंगइबो केसरिया।’

उहवाँ चारण वाली संस्कृति के होखल संभव नइखे। मने जेकरा रग-रग में क्रान्ति , जेकर लट्ठमार बोली-भाषा बा,ओकरे खातिर चारण शब्द का परयोग उचित नइखे बुझात। डॉ गियर्सन ठीक कहले बाड़न कि ‘ हिंदुस्तान में नवजागरन  के श्रेय मुख्यतः बंगाली आ भोजपुरिया लोग के जाला। बंगाली लोग जवन काम अपने कलाम से कइलें, उहे काम भोजपुरिया लोग अपना लाठी से कइले बाड़न।’

“सभ हथियारन छोड़ि हाथ में रखिहS लाठी’

एगो-दूगो भाँट, चारण  भा दरबारी का चलते पूरे का पूरा काल के नाँव राख़ देहल बेमानी बा। माहेश्वराचार्य जी एह काल के भोजपुरी साहित्य क स्थायी काल कहले बाड़न।

प्रबोधन काल (संत समागम काल):

एह काल में कवि लोग देश,देश के जनता के सम्हारे, जगावे आ आत्मगौरव के खातिर काव्य के रचना कइलन। ओह घरी देश पर विदेशी सासन रहे। एही काल में भोजपुरिया क्षेत्र में मठन के स्थापना भइल आ उहवाँ महन्थ आ साधु-संत लोग अपना पंथ बिसेस के गीत, भजन भोजपुरी में लिखलें। एह काल में रचना निम्नलिखित रूप में बा-

– भक्ति भरल गाथा गीत

-प्रेम कथा गीत

-प्रकृति सम्बन्धी लोकगीत

-लोकोक्ति

-संस्कार गीत

एह काल में सूफी संप्रदाय, निर्गुण संप्रदाय, सगुण संप्रदाय , सखी संप्रदाय,शिवनारायनी संप्रदाय आ बावरी संप्रदाय के गतिविधि खूब पावल जाले। कबीर, दादू,कमाल दास,धरम दास, धरनी दास,पलटू दास, बाबा कीनाराम, भीखम राम,टेकमन राम,रूपकला जी,रामाजी,लछमी सखी, कामता सखी,वीरन साहब, बूला साहब, गुलाल साहब, भीखा साहब जइसन कवि लोग एही काल के उपज बाड़न।

नव जागरण काल :

अपना भोजपुरी क्षेत्र में फिरंगी लो से संघर्ष के शुरुवात 1765 ई0 हो गइल रहल। सारण के कलेक्टर हुस्सेपुर(गोपालगंज) के महराज फतेह बहादुर शाही से कंपनी के गुलामी करे आ टैक्स भरे के आदेश देहलन, जवना का चलते बगावत भइल। करीब 20 बरीस ले कबों आमने-सामने आ कबों छापामार ढंग से शाही जी फ़िरंगियन के छक्का छोड़ा दहलें। हुस्सेपुर के किला ढहाइल आ राज्य के तबाह कइल गइल, तबो फतेह बहादुर शाही जी आपन लड़ाई जारी रखलें। इहवें से आजादी के लड़ाई के बिरवा रोपा गइल रहल।

1857 ई0 के बिदरोह ना मान के एकरा के स्वतन्त्रता संग्राम के पहिल युद्ध मानल ढेर उचित बुझाता । एह काल में सामाजिक स्थितियन से राष्ट्रीय चेतना के रचना भइली सन। आपुसी सद्भाव के जगावे खातिर सखी संप्रदाय के लोग खूब काम कइलें। सन् 1940 ई0 आवत-आवत भोजपुरी में एकांकी, नाटक आ कहानी के विकास हो चुकल रहल।

भोजपुरी लोक साहित्य के पोढ़ आ भरल-पूरल परम्परा आ भासिक क्षमता के विकास के चलते स्वतन्त्रता का बाद भोजपुरी साहित्य के चहुमुखी विकास भइल।

भोजपुरी भाषा के लोक साहित्य बहुत विस्तार में बा। लोक साहित्य के पाँच भाग में बांटल गइल बा- 1>लोक वार्ता 2>लोकगीत 3>लोकगाथा 4> लोककथा 5> प्रकीर्ण साहित्य (क) मुहावरा (ख) कहावत (ग) पहेली (घ)सूक्ति (ड़) लोक नृत्य

 

प्रसार काल (आधुनिक काल):

एह काल में भोजपुरी साहित्य के प्रचार-प्रसार ज़ोर पकड़े लागल। कई गो संस्थन के गठन भइल आ लोगन के परयास से बिहार विश्वविद्यालय में भोजपुरी विभाग स्थापित भइल।  सन् 1975 से सन् 1977 तक आपातकाल रहला का बादो  नीमन-नीमन 100 गो किताब लिखा छपा गइल। कई प्रदेसन में अकादमी के स्थापना भइल, जवना का चलते भोजपुरी साहित्य के बढ़न्ति में चार-चाँद लाग गइल। आजु भोजपुरी साहित्य हर विधा में लिखा रहल बा, छप रहल बा। पत्र-पत्रिको प्रकाशित हो रहल बाड़ी सन। सोसल मीडिया के उपस्थिति भोजपुरी भाषा साहित्य के बढ़न्ति में गुणात्मक बदलाव ला रहल बा। लिंगविस्टिक सर्वे आफ इंडिया का हिसाब से भोजपुरी एह घरी विश्व में सभेले तेजी से बढ़त भाषा बनि चुकल बा।

 

(संदर्भ- भोजपुरी साहित्य के इतिहास – डॉ अर्जुन तिवारी)

 

 

संकलन

जे पी द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

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