ब्रजभूषण मिश्र आ उनकर रचना संसार

ब्रजभूषण मिश्र कवि, निबंधकार, संपादक, समीक्षक आ संगठनकर्ता होखे का पहिले साफ मन-मिजाज आ दिल-दिमाग के सोगहग मनई हउवें। साफ मन-मिजाज के मनई मतलब सभकरा हित आ चित के खेयाल राखेवाला। घरियो छन जे इनका से बोल बतिआ लेलस ओकरो के पीठ पीछे कहत सुनले बानी – ए जी, एह जुग-जबाना में मिसिर जिउवा अइसन सहज मनई मिलल मुश्किल बा। एकदम से ‘बारह भीतर एक समाना’। गोसाईं जी का सबदन में – सुरसरि सम सभकर हित होई। एही गुन-धरम वाला के बावा जी कहल जाला। इसे सब गुन-धरम त इनका लिखनी, पढ़नी, करनी आ कथनी में फरके से झलझल फरछिन झलकेला। बाकिर ओहू के परखे खातिर आँखि चाहीं। आँखि मतलब लोचन। आ लोचन जब विस्तार में आकार लेके के बिना लाग-लपेट के साफगोई से आपन बात राखी त ऊ हो जाई आलोचन। अइसने आलोचना वाला आलोचक के आचार्य लोग तत्त्वानिभिनिवेशी कहके इज्जत देले बा। जे कवि के, कवि का कार्य के, कवि आ काव्य के परिवेश आ प्रसंग के तह में अमाके आ खूब नाप तउल के संतुलित, सार्थक भाव-विचार के बोध करावे। जे हंस मतिन दूध के दूध आ पानी के पानी क देवे। आ ना त मत्सरी आ मुंहदेखी डेर्अछरी लोग के कमी थोड़े बा।
संस्कृत के मान्य आलोचक राजशेखर कवियो लोग के विषय के हिसाब से तीन गो भेद बतवले बाड़न – शास्त्र कवि, काव्य कवि आ उभय कवि। उभय कवि मतलब जे काव्य, शास्त्र आ देस – समाज के संस्कार, बेवहार अउर बेयापार सब में पारंगत होखे। खाली काव्य भा शास्त्र कवि के मित कवि मतलब आम कवि कहल बा उहंवे उभय कवि के महनीय मतलब खास कवि कहके मान देहल बा। जे भीतर से संवेदनशील ना होई। जे जन सरोकार के धनी ना होई। जेकरा भीतर समय आ समाज में घटत उनइस-बीस घटनन के देख-जान के बेचइनी – छटपटाहट ना पैदा होत होई अउर जेकर भाव-विचार आ संवेदना सहजे काव्यशास्त्रीय ढांचा में ना ढ़ल जात होई ऊ मिसिर जी जइसन उभय महनीय कवि होइए ना सके।
सन् १९८२ ई. में ‘ भोजपुरी परिवार, पतरातू (हजारीबाग)’ से ” दू रंग ” नांव के एगो कविता संग्रह छपल रहे। जवना में मिसिर जी के अठारह गो कविता छपल रहे। जवना में फुटकर कविता के रूप में कुछ गीत, गजल, मुक्तक आ छंद मुक्त के रचना छपल रहे। जवना के पढ़े से ई महसूस भइल कि मिसिर जी जन सरोकार के मोल-महातम देवे वाला संवेदनशील कवि बाड़न। देस-समाज में घटल कवनो मानवीय मूल्य विरोधी घटना इनका भीतर बेचइनी बढ़ा देला आ ई उबिआके उलाहना देवे लागेलन। मिसिर जी अपना ‘आपन कथ ‘ में खुदे लिखले बाड़न – ‘ कबहूँ कुछ उनइस- बीस लउकेले, एगो छटपटाहट होले आ एगो रचना शब्दबद्ध हो जाले। अपना भावना के स्पष्ट करेला प्रयास करिले। आपन बात सीधे, स्पष्ट आ बेलाग कहिले। कुछ लोग रचना मानेले, कुछ लोग बकवास।” मिसिर जी के कविता होखे, निबंध होखे, समीक्षा होखे भा संवाद-संपादकीय होखे – एही साफगाई पर पाठक लट्टू हो जालन।
” दू रंग ” कविता संग्रह के बाद सन् १९९० ई. में मिसिर जी के एकतीस गजलन के संग्रह ” अचके कहा गइल ” नांव से ‘कबीर भोजपुरी पुस्तकालय, साहेबगंज, मुजफ्फरपुर प्रकाशन’ से छप के सुधी पाठक लोग के हाथ पड़ल। एह गजल संग्रह के समीक्षा भगवती प्रसाद द्विवेदी जी लिखलें जवन भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका में छपल तब एह संग्रह के प्रति भोजपुरी साहित्य साधक आ समीक्षक लोग के उत्सुकता बढ़ल। भोजपुरी के मंजल-सधल गजलगो स्व. जगन्नाथ जी ‘ सवाद लीं संवाद दीं ‘ आ नीतीश्वर शर्मा ‘ नीरज ‘ ” शायद यहाँ है तूं ” शीर्षक से एह संग्रह के बरिआर भूमिका तइयार कइल लोग अउर चूकि मिसिर जी के गजल ‘अचके कहा गइल’ रहे एह से ऊ आपध बात लिखत लिखलें कि अब एह में ‘ हम का कहीं ‘। पाठके लोग पढ़ो आ जगन्नाथ जी के मोताबिक सवाद लेवो आ संवाद देवो। एह संग्रह के एक-दू गजल के छोड़ के हर गजल बहर-वजन आ भाव- भाषाशैली के दिसाईं असरदार बा। कहीं समुझाव ता त कहीं गुदगुदाव ता। कहीं गभिआव ता त कहीं बंद दिमाग का ताला के चभिआव ता। छोट बहर में बड़ बात कहे के हुनर मिसिर जी से लीं। रउरा के बोधे के ना पड़ी आ रउरा दिमाग का शोधे के ना पड़ी। बात सीधे हिया में उतरी आ जिया जी उठी। बानगी लीं-
” सगरो बाह बाह हो गइल
बेटा बादशाह हो गइल
पंच भइल घर के सवांग
माफ हर गुनाह हो गइल। ”
जइसे ‘हनुमान बाहुक’ लिखके तुलसीदास जी का कलजुग से छुटकारा मिलल रहे। जइसे ‘सूर्यशतक’ लिखके मयूरभट्ट के कुष्ट रोग से मुक्ति मिलल रहे। जइसे ‘रघुवंशम्’ लिखके कालिदास सिव- पार्वती का कोप से उगरिन भइल रहस आ जइसे ‘अपूर्व रामायन’ लिखके महेन्दर मिसिर जेल का यातना से मुक्त भइल रहस ओइसहीं ब्रजभूषणो मिसिर ‘महावीर जी सदा सहाय ‘ खंडकाव्य लिखके बहुते बड़ मानसिक आ दैहिक यातना से छुटकारा पवले रहलें। सन् २००१ में समीक्षा प्रकाशन से छपल एह महत्त्वपूर्ण खंडकाव्य में आपन अनुभूति साझा करत मिसिर जी साफ लिखलें कि –
“कतना कहीं कथा हनुमत के
कहला से त नाहिं ओराय
ना त ओतना कागज बड़ुए
ना लूर हमरा लिखल जाए
निश्छल मन से जबे पुकारब
जै बजरंग बली गोहराय
जब जब कवनो भीड़ पड़ेला
महावीर जी सदा सहाय।।”
ई साफ हृदय का मनई के स्वाभाविक विश्वास ह। जवना के असर से अंजान होलन घुरचिआह मन के मनई।
सन् १९१५ ई. में मिसिर जी के फुटकर कवितन के बरिआर संग्रह ” खरकत जमीन बजरत आसमान ” वनांचल प्रकाशन, बोकारो से छपल। किताब के नांवे बताव ता कि आज आदमियत से कटला के चलते आदमी का पांव का नीचे के जमीन खरकत जा रहल बा आ प्रकृति के प्रकोप देखीं कि ऊपर आसमान से आफत-बिपत के बज्रपात हो रहल बा। अइसन अवस्था में भ्रम ब्रह्म हो गइल बा आ ब्रह्म लोग का भ्रम लाग रहल बा। शब्द ब्रह्म ह आ अर्थ ओकर शक्ति। बाकिर एकर बोध साधक का होला। तीन-पाँच के फेरा में पड़ेवाला जोगाड़ी मनई के ना हो सके। अइसन अवस्था के पहुँच गइल बा आदमी कि मिसिर जी का सबदन में –
” शब्द पकड़ में नइखे आवत/ अगर पकड़ात बा त अर्थ धनक जाता।/ मन के भाव दुनियावी प्रपंच से घबड़ा के भाग जात बा/ शब्द के अर्थ कइसे दीं? शब्द डायरी तक आवत आवत राख हो जात बा/ आ कविता उड़ियाए लागत बिया/ कहाँ बांचल बा शब्द/ जवन खोल सके अर्थ।”
आज आदमी के ढ़ोगी-प्रपंची बेवहार-ब्यापार के चलते शब्द आपन अर्थ खो चुकल बा भा संकुचित हो चुकल बा भा उलट चुकल बा। हर ओर अराजकता के माहौल बनत जा रहल बा। शब्द निष्प्रभावी हो चलल बा।
ब्रजभूषण जी के भोजपुरी कविता के जै गो आपन मौलिक किताब छपल बा ओह से अधिका त कई आउर संपादक लोग का संपादन में छपल ‘भोजपुरी काव्य संकलन’ सब में ससम्मान जगह पवले बा। सन् १९८८ ई. में जब बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर में भोजपुरी के स्नातक प्रतिष्ठा स्तरीय पाठ्यक्रम खातिर डॉ. रिपुसूदन प्रसाद श्रीवास्तव के सम्पादन में ” आगे आगे ” नांव में मुक्त छन्द के युगबोधी कवितन के संग्रह के प्रकाशन भइल त डॉ. जितराम पाठक, रिपुसूदन प्र. श्रीवास्तव, माहेश्वर तिवारी, परमेश्वर दूबे शाहाबादी, सतीश जी, प्रभुनाथ सिंह, हरि किशोर पाण्डेय, बसंत कुमार, आनंद संधिदूत आदि जइसन तपल-तपावल कविलोग का संगे मिसिरो जी के चार गो मुक्त छन्द के युगबोधी कविता – ‘शक्ति शब्दन के, हम दहात रह जात बानी, चान उगला पर आ बिहान होत रहे ‘ के जगह मिलल। एस संकलन के संपादक मिसिर जी के भोजपुरी के चेतनगर धारा के कवि मनले बाड़न। अइसहीं सूर्यदेव पाठक पराग के सम्पादन में सन् १९९३ ई. में २०५ समकालीन कवियन के प्रतिनिधि संकलन ” काव्या ” साहित्य कला मंच, भिट्ठी, गोरयाकोठी (सिवान) से प्रकाशित भइल रहे जवना में इनकर ‘ मौसम बउराइल बा ‘ छपल रहे। कवि लोग के सूची में स्थान बीसवां रहे। पारिवारिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक मौसम के मिजाज के माप देखल जाव मिसिर जी का छन्द में –
‘ धू धू जरे सगरो गाँव घर भइल मसान।
एक दुअरा, ओह अंगना अखरेरे जाए प्रान।।
चउपाली कउड़ा पर जिनगी बोझाइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा।।
आज हमरा रउरा आ हर अँखिगर का एह बात के आभास बा कि पच्छिम के पछेया परिवार आ समाज का मौसम के तापमान केतना बढ़ा देले बा।
सन् १९९५ ई. में पाती प्रकाशन, बलिया (उत्तर प्रदेश) से मधुर नज्मी आ डॉ. अशोक द्विवेदी जी के साझ संपादन में प्रकाशित ‘ समकालिन भोजपुरी गजल ‘ में मिसिर जी के गजल छपल रहे जवना के एगो शेर देखीं। हांड़ी के एगो भात से पकला आ अधपकला के बोध रउरो हो जाई –
‘ अब त पतझड़ के अंत आइल बा।
सोर सुनलीं ह बसन्त आइल बा।।
——– —— ——- ———
लाज सेमर के बना दिहलस लाल
कवन परदेसी कन्त आइल बा।।’
‘बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय भोजपुरी पद्य संग्रह’ के दूसरका संस्करण सन् २००१ ई. में छपल ओकरा में मिसिर जी के दूगो रचना ‘कविता’
आ ‘ मछरी ‘ संकलित बा। एह संकलन में बतावल बा कि मिसिर जी के जनम मुजफ्फरपुर जिला का साहेबगंज थाना के धर्मपुर में २२ दिसम्बर, १९५४ ई. में भइल। बी. एस-सी., एम. ए. ( हिन्दी) आ पी-एच. डी. क के भोजपुरी के सर्जनात्मक आ संगठनात्मक साहित्यिक काम में लागल बाड़न। अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री रह चुकल बानी आदि।
दिनेश्वर प्रसाद सिंह ‘ दिनेश ‘ के सम्पादन में जमशेदपुर भोजपुरी साहित्य परिषद् प्रकाशन से सन् २०१५ ई. में भोजपुरी के श्रृगांर गीतन के संकलन छपल जवना में मिसिर जी के गीत ‘गीत मन गावे लागल ‘ के आखिरी छन्द
‘ न लागल पता कुछ, उनका संग
समय कुछ अइसे बीतल
खुसी से हारल, लागे जीत
नया धुन आवे लागल !
छेड़ल भीतर ऊ नव संगीत
गीत मन भावे लागल ! ‘
बरबस ध्यान खींच लिहल। अइसहीं डॉ. पशुपति कुमार ‘ विप्लव ‘ आ रमेश चन्द्र झा कृष्णधारी संपादित काव्य संग्रह ” घाटी की आवाज ” में मिसिर जी के हिन्दी-भोजपुरी के आठ गो स्तरीय कविता, गीत आ गजल छपल रहे। जवना में ‘ गांव के याद ‘ कविता का दू पांती में रउरो गंवई गमक के आनंद लीं –
‘ लागत सुहावन टुन टुन बैलन के जोड़ी
लदले अनाज पीठ साहू के घोड़ी
गइया रँभाले बछवा पियावेला
गाँव याद आवेला। ‘
अइसहीं पाण्डेय कपिल के संपादन में छपल भोजपुरी के चुनिंदा हाइकू के संग्रह होखे भा उनके सम्पादन में प्रकाशित भोजपुरी के सात सौ दोहन के संग्रह ‘ भोजपुरी सतसई ‘ में छपल मिसिर जी के दोहन में गाँव के बदहाली, राजनीतिक प्रपंच, सामाजिक विद्रूपता वगैरह के अजगूत तस्वीर देख सकिले। एगो बानगी देखीं –
‘ जात पात के घात में गाँव भइल बदहाल।
गाँव रह के ना मिली सुबहित रोटी दाल।।’
आजादी मिलला के बाद नेहरू सरकार द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज आ हिन्द स्वराज का सिद्धांत आ योजना के टोकरी में फेंकला के दंश आजो गाँव झेल रहल बा। मिसिर जी के ई दोहा एही बात के बयान दे रहल बा।
भोजपुरी के लगभग डेढ़ सौ गजलन के संग्रह ‘ समय के राग ‘ जगन्नाथ जी आ भगवती प्र. द्विवेदी जी के सम्पादन में छपत रहे त मिसिर जी से दस गो गजल माँग के ओकरा में ससम्मान छापल गइल रहे। भोजपुरी आ हिन्दी का पत्र-पत्रिकन के नांव गिनावे लागीं त बहुत लमहर सूची बनावे के पड़ी जवना में मिसिर जी के गीत, गजल, हाइकू, दोहा, छन्द मुक्त के कविता छपत आइल बा।
जनवरी-फरवरी,सन् २००० ई. के साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के अंगरेजी संस्करण में साभार -‘ पाती ‘ पत्रिका से मिसिर जी के दू गो कविता के अंगरेजी अनुवाद ‘ The Poem ‘ आ ‘ Word and Meaning ‘ छपल रहे। अंगरेजी अनुवादक लहरें उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’। ‘ The poem ‘ के कुछ पांती प्रस्तुत बा –
‘ I am looking for poetry !
My belly is full,
And I have dressed up well
With a shirt of the latest design
As I sit in a new house. ‘
ब्रजभूषण जी के भोजपुरी पद्य साहित्य के भंडार जेतना बड़ बा ओकरा से इचको कम गद्य साहित्य के आढ़त नइखे। खास करके विषयनिष्ठ निबंध, जीवनी, आलोचनात्मक निबंध, पुस्तक समीक्षा, पुस्तक भूमिका, भोजपुरी साहित्य के ऐतिहासिक स्वरूप संबंधी छात्र आ शोधार्थी लोग ला उपयोगी अध्ययन सामग्री आदि केहू साहित्य साधक आ सेवक खातिर प्रेरक हो सकता।
साँच पूछीं त ब्रजभूषण जी के गद्य लेखन उनका पद्य लेखन पर भारी पड़ेला। मंच से काव्य पाठ करे का चलते लोग इनका कवि से ज्यादे परिचित बा। बाकिर जे भोजपुरी साहित्य के पाठक जमात बा ऊ इनका गद्यकार से ज्यादे जुड़ल बा। ई बी. एस-सी. के बाद हिन्दी से बी. ए. कइलें। फेर अपना बिजली विभाग का नोकरी-चाकरी में लाग गइलें। ओही दरम्यान ई उहां के ‘भोजपुरी परिवार, पतरातू ‘ संस्था से जुड़लन। भीतर साहित्यिक प्रतिभा कुलांच मारते रहे। अइसे त ई आपन पहिल कविता देस के पहिला प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जी पर लिखले रहलें। उहो हिन्दी में। बाकिर पतरातू के भोजपुरी परिवार संस्था आ ओकर कर्ताधर्ता लोग से मिलला-जुलला के बाद इनका भीतर मातृभाषाई अस्मिताबोध प्रबल आ प्रखर होके उफान लिहलस। सभका संगे मिलके कई गो राष्ट्रीय स्तर के भोजपुरी कार्यक्रम करावल शुरू कइलें। एक से बढ़के एक नामचीन धाकड़ कवि-साहित्यकार लोग के नेवतलें, सुनलें आ सम्मान कइलें। सन् 1982 ई. से भोजपुरी परिवार के विपिन बिहारी चौधरी आ अनिरूद्ध दूबे जी का संगे मिलके ‘भोजपुरी परिवार पत्रिका’ के संपादन आ प्रकाशन शुरू कइलें। ओकरा बाद जब इनकर बदली कांटी थर्मल पावर, मुजफ्फरपुर मे हो गइल त इहंवा के साहित्यकार लोग के मंडली से जुड़ के भोजपुरी के सेवा में लाग गइलें। सन् 1987 ई. से इनका संपादन में ‘कोइल’ पत्रिका के प्रकाशन होखे लागल। जवना में हमहूं लगातार छपीं।ओही ‘कोइल’ में छपल कविता पढ़के पं. गणेश चौबे जी हमरा के बरमहल पोस्टकार्ड लिख के प्रोत्साहित करीं आ आशीर्वाद दीं। जवना के फल बा कि आज हमरो टुकदम टुकदम लेखनी चल ता। लगभग चालीस अंक ‘कोइल’ निकल के भोजपुरी साहित्य के भंडारे ना भरल, बल्कि हमरा अइसन केतने नवही के भोजपुरी लेखन आ आंदोलन से जोड़ल। आजुओ सिसवां खरार, पूर्वी चम्पारन के नवकी उत्साही कवि, कहानीकार आ संगठन-आयोजन कर्ता स्व. रवीन्द्र रवि आ बुजुर्ग शिक्षक स्व देवनाथ सिंह जी ना भुलास। मिसिर जी मुजफ्फरपुर में ‘सेवाती’ नांव के एगो भोजपुरी सेवी संस्थो के गठन कइले रहीं। जवना से ‘आगे आगे’ भोजपुरी के छंदमुक्त युगबोधी कवितन के संग्रह छपल रहे। मुजफ्फरपुर में डॉ. प्रभुनाथ सिंह, डॉ. रिपुसूदन श्रीवास्तव, सतीश्वर सहाय वर्मा सतीश, कुमार विरल आदि लोग भोजपुरी भाषा-साहित्य के बढंती में लागल विभूति रहे लोग। एह सबलोग के बीच मिसिर जी सेतु के भूमिका में रहीं। आज भलहीं गीतकार डॉ. कुमार विरल के भोजपुरी फिल्मी दुनिया के ओर रूझान बा। बाकिर आजुवो दूनों मितराम बैरिया, मुजफ्फरपुर के पूर्वी मोहल्ला आदर्श ग्राम में अगले -बगल रहेला लोग। एही मोहल्ला में माहटरी से अवकाश लेला के बाद कविवर अनिरुद्ध जी अपना बेटा के आवास पर रहत रहीं। जहां हमनी के बरमहल मजलिस जमे। आज अनिरुद्ध जी नइखीं। उनका के हमनी भोजपुरी विभाग से सम्मानित कइनीं। उनका दू दू भोजपुरी कविता-गीत संग्रह के लोकार्पण करववनी। गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के भोजपुरी पत्रिका ‘भोजपुरी साहित्य सरिता’ के अनिरुद्ध विशेषांक ब्रजभूषण जी आ हमरा अतिथि संपादक का संपादकत्व में निकलल। एकरा अलावे भोर, रचनात्मक बातचीत, भोजपुरी मंथन के सम्पादन का संगे-संगे आउर कई पत्रिकन के संपादक मंडल में रहके सब के सही मार्गदर्शन कइल जा रहल बा। नमूना के रूप में हम ‘कोइल’ के एगो संपादकीय के कुछ हिस्सा पढ़वावे के चाहत बानी जवना से मिसिर जी के भाव आ भाषा शैली के बोध हो सकेला –
मोजराइल आम, फुलाइल सहिजन, फूले लदाइल सेमर, कोंचिआइल महुआ के गन्ध लेके सनसनाइल बसंती बेआर देह छू छू के गुदरावे लागल। आ गनगना गइल मन। तब साँचे नू बसंत आ गइल।
ब्रजभूषण जी राँची विश्वविद्यालय से हिन्दी से एम. ए. आ पी-एच. डी.कइलीं। शोध के विषय रहे – ‘भोजपुरी प्रबंधकाव्य वस्तु आ शिल्प’। इनकर शोधकार्य आ शोधप्रबंध एतना ना पसन्द पड़ल कि परीक्षक विश्वविद्यालय के फीस बाज गइलन बाकिर इनकर शोधप्रबंध विश्वविद्यालय के ना लवटवलन। बाह्य परीक्षक रहलें हिन्दी-भोजपुरी के स्थापित साहित्यकार, व्यंग्यकार , निबंधकार, नाटकार आ हास्यावतार प्रोफेसर डॉ. रामेश्वर सिंह काश्यप जी। मौखिकी त अभूतपूर्व भइबे कइल। राँची में एगो बहुत बड़ साहित्यिक जलसा हो गइल रहे। एह शोधकार्य के दरम्यान मिसिर जी का माथे अध्ययन आ अनुसंधान के भूत सवार भइल ऊ आजो इनका के पछेटले रहेला। इनकर हर निबंध, पुस्तक समीक्षा , पुस्तकीय भूमिका में उहे समोलोचनात्मक छौंक आइए जाला। तब से लेके अब तक ई भोजपुरी भाषा, साहित्य, लोकसाहित्य, लोकसंस्कृति, आलोचना, भोजपुरी काव्य साहित्य के इतिहास आदि केतने काम कइलें आ छपइलें। सब में इनका गंहीर अध्ययन आ अनुसंधान के प्रमाण मौजूद मिलेला। चाहे इन्द्रिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली होखे, चाहे पटना के नालंदा खुला विश्वविद्यालय होखे, बिहार सरकार के राज्य शिक्षा शोध एवं प्रक्षिक्षण परिषद् होखे चाहे आउर कवनो शैक्षिक संस्थान के आउर अध्ययन सामग्री के लेखन कार्य। एह हालत में मिसिर जी के लेखन बिना कवनो भेदभाव के मणिदीप जइसन हर अवस्था में चमकत दमकत रहेला।
कुछ साल पहिले छपल पुस्तक विपिन बिहारी चौधरी के माटी के गीत ,गोरख मस्ताना के जिनगी पहाड़ हो गइल , हरीन्द्र हिमकर के रमबोला के दूसरका संस्करण, रविकेश मिश्र के गंगा तरंगिनी ,गुलरेज शहजाद के चम्पारन सत्याग्रह गाथा वगैरह के भूमिका एक ओर पोथी पर आशीष के अच्छत छीट ता त दोसरा ओर इनकर आलोचक राहो बताव ता। दरअसल मिसिर जी साहित्यामृत के पान करे वाला सज्जन हउवन। जे एह घोर उपयोगितावादी दौर में अपना लेखनी से मातृभाषा आ साहित्य के उपयोगिता से मानव आ मानवीयता के परिचित करावे बदे जुझत रहेलन। इनका के पढ़ला के बाद आ इनका से मिलला के बाद हमरा ध्वन्यालोक के आचार्य आनंदवर्धन आ उनकर ऊ श्लोक मन पड़ जाला। जवना में ऊ कहले बाड़न कि एह असार दुखभरल संसार रूपी गाछ में दूइए गो मीठ-मधुर फल लागल बा – पहिला – काव्यामृत के रसास्वादन आ दूसरका – सज्जन के संगति –
संसार- विषवृक्षस्य द्वे एव मधुरे फले ।
काव्यामृतरसास्वाद संगम सज्जनै सह।।
बाकिर आलोचना के समय मिसिर जी बड़ी बारीकी से आलोचना धरम के पालन करेलन। इनका आलोचना का आन्ही-पानी में मणिदीप मतिन स्तरीय साहित्य त आउर दमक-चमक उठेला बाकिर विज्ञापनी सामान्य दीप फदफदाए-बुताए लागेला। एह सबके बावजूद इनकर आखिरी उद्देश्य आगे का लेखन ला ताकीद कइल होला।
बनल २००८ ई. में भोजपुरी आलोचना के एगो मजबूत जमीन तइयार करवाला इनकर पुस्तक ‘कसउटी पर भोजपुरी कविता’ किताब पब्लिकेशन, मुजफ्फरपुर से छपल । जवना में कई भोजपुरी पुस्तकन के भूमिका, समीक्षा आ कुछ मौलिक आलोचनात्मक आलेख छपके सुधी पाठक लोग का आगू आइल। जवना के समीक्षा कई स्तरीय पत्र-पत्रिकन में छपल। पुस्तक समीक्षा, साहित्यालोचना आदि के लेके हमार जवन समझ बनल बा ऊ एग पुस्तक के पढ़के आउर पोढ़ हो गइल।
भारतीय वाङ्मय में पहिले कविते रचे के चलन चलल। फेर कवि लोग अपना कवितन के जमीन, संदर्भ आ भाव जनावे खातिर ओकरा बारे में आपन विचार राखल शुरू कइल। जवना से ओह काव्य-रचना के बारे में सुननिहार-पढ़निहार के समुझ बनत गइल। समय सरकल आ ओह रचनन के भाव-बात समुझे-समुझावे आ कविता रचे का परम्परा के आगे बढ़ावे खातिर ओकरे ढ़ंग-ढ़ांचा मतलब स्वरूप-सामग्री के अनुरूप नियम-सिद्धांत आ प्रतिमान गढ़ात गइल। जवना सब के संगिरहा क के काव्यशास्त्रीय पोथी के रूप दिआइल। फेर ओही सब नियम-सिद्धांत के कसउटी मानके बाद के रचाइल काव्यन के जांचे-परखे आ मूल्यांकन करेके चलन बढ़ल। जवना से साहित्यिक जगत में आलोचना समालोचना, समीक्षा आ प्रत्यालोचना के विकास भइल। एह तरह से आलोचना, समालोचना, समीक्षा आ प्रत्यालोचना के विकास काव्य-रचना के काव्यशास्त्रीय नियम-सिद्धांत का कसउटी पर परखे-जांचे के प्रक्रिया के रूप में भइल। एह से कहर जा केला कि आलोचना काव्य के शास्त्र ना होके काव्य-रचना के ऊ जीवन है जीवन बार बार गढ़ाला आ जाना के तय नियम- सिद्धांत के कसउटी पर जांचे-परखे आ मूल्यांकन करेंगे काम होला। बाकिर जब जब कवनो नया रचना ओह काव्यशास्त्रीय सिद्धांतन के घेरा-डंड़ेरा के तूड़े के चुनौती देने वाघेला तब ओकरा बोध-व्याख्या आ आलोचना-मूल्यांकन खातिर नया प्रतिमान के खोज-शोध संधान होखे लागेला। नया काव्यशास्त्र सिरजाला।
भोजपुरी भाषा में साहित्य सिरजे के परम्परा सतवे सदी में बानभट के दूगो भोजपुरिया पीरो गांव के मित्रों इंसान चन्द आ बेनीभारत ( बेनी कवि) शुरू कर लेवे रहलें। जेकर चर्चा बानभट का हर्षचरित आ आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का हिन्दी साहित्य का इतिहास में दर्ज बा। किसे भगवान बुद्ध आपन उपदेस अपना मातृभाषा भोजपुरी में ही देत रहस। जलना में आगे चलके अलग-अलग इलाका के अनुयायी लोग अपना भाषा के शब्द मिला-मेराके संस्कृत आदि भाषा के दार्शनिक पारिभाषिक शब्द के भोजपुरिया भाषिक रूप में डाल के पाली नाम दिहल। फेर उनका बाद उनका नाम पर चलल बौद्ध सम्प्रदाय के मुख्य सहजयान, महायान आ बज्रयान कूंड़ी के सिद्ध आचार्य सरहपा, शबरपा, कन्हपा, भुसुकपा, डोम्भिपा, कुकुरिपा आदि आपन उपदेस आ तंत्र-मंत्र-मुद्रा, अनुभवजन्य दर्शन आ अध्यात्म के लोक प्रचार खातिर एही भाषा के प्रयोग कइल। नाथ सम्प्रदाय के चौरंगीनाथ, गोरखनाथ, जालंधरनाथ, भरथरी, गोपीचंद आदि आ निरगुन भक्ति कूंड़ी के कबीर धर्मदास, रविदास, दादू, दरिया, पलटू, धरनी, शिवनारायण, किना, भिनक, भीखम, टेकमन, आदि सगुन सम्प्रदाय के तुलसी, शंकर, रूपकला, रामाजी, लक्ष्मी सखी, कामता सखी, बावरी साहिबा, बुला, भीखा आदि सभे एही भाषा के जरिए अपना अनुभवजन्य ज्ञान-दर्शन आ आध्यात्म के गूढ़ बात सहज ढ़ंग से बतवलें-जनवलें। फेर भोजपुरी के आउर लोककवि, साहित्यकार लोक जीवन का हर पक्ष से जुड़े अनुभव के संस्कार, श्रम, जाति, पर्व, ऋतु, आस्था-मान्यता, खेलकूद, रीति-रिवाज आदि के गीत, कथा-कहानी लोकोक्ति, बुझउवल आदि के माध्यम से अभिव्यक्त करत आइल लोग। जलना के शास्त्रीय आलोचक लोग लोककाव्य, लोककथा आदि कहके हिंगरावत रहल लोग। समय के धारा में अबूझ शास्त्रीय साहित्य तो लुप्त हो गइल बाकिर ई कुल्ह लोकतत्व सम्पन्न साहित्य ओह तमाम शास्त्रीय सिद्धांतन के चुनौती देते आजुओ अड़ल आ लोकमानस में पड़ल बा।
सिद्ध साहित्य, नाथ साहित्य आ नाथ साहित्य के त मनमाफिक भाषिक परिष्कार करके खड़ी बोली के हिमायती आंदोलनकारी साहित्यकार लोग हिन्दी के कलेवर देके अपना नांवें बयनामा करा लिहल लोग। भोजपुरी का कबीर के, मैथिली का विद्यापति के, भोजपुरी-अवधी का तुलसी के ब्रजभाषा का सूर के आ राजस्थानी का मीरा के हिन्दी के संतकवि आ भक्तकवि घोषित कर दिहल लोग आ बाद में जब खड़ी बोली में साहित्य सिरजाए लागल त एह भाषा भाषी अउर साहित्यकारन के हिन्दी का बोली के लोककवि कहके हिकाह ताके लागल लोग। जलना उत्तर भारत में हिन्दी के की तरह से विरोध शुरू होखे के स्थिति पैदा होंगे लागल।
जब सोरहवां-सतरहवां सदी से भोजपुरी में साहित्य गढ़े के सिलसिला तेज भइल आ बीसवां-एकइसवां सदी आवत आवत भोजपुरी भाषा आ साहित्य के पड़ताल आ मूल्यांकन के दौर में भोजपुरी भाषी हिन्दी, अंगरेजी आ भोजपुरी के विद्वान भाषाविद, कवि, साहित्यकार, समालोचक सम्मिलित होंगे लगलें त खड़ी बोली वालन के कान खड़ा भइल। सन् १९१५ ई. से भोजपुरी में पत्रकारिता, शब्दकोश रचना, व्याकरण-चिंतन आदि के दौर शुरू भइल। साहित्य का हर विधा में लेखन शुरू भइल। ज्ञान-विज्ञान आ अन्तर्ज्ञान का हर क्षेत्र में भोजपुरिया कलम चले लागल। फेर दुनिया महसूस करे लागल कि हिन्दी रूपी खड़ी बोली के तुलना में भोजपुरी बड़ी बोली बा। एकरा हर साहित्यिक रचना साहित्य शास्त्र का कसउटी पर खड़ा उतरे वाला साहित्य बा। एह सब तथ्य के बोध ब्रजभूषण मिश्र के पुस्तक ‘कसउटी पर भोजपुरी कविता’ के अध्ययन से हो सक ता।
किसे हम ब्रजभूषण मिसिर जी के कथाकार से भी कम परिचित नइखीं। कई कहानी संकलन में इनकर कहानी पढ़े के मिलल बा। बाकिर सूर्यदेव पाठक पराग के सम्पादन में छपल भोजपुरी लघुकथा संग्रह तिरमिरी में छपल इनकर लघुकथा ‘अबहीं ओर नइखे नू लागल’ पढ़े जुगुत बा।
जब हम भोजपुरी स्नातक के छात्र रहीं त भोजपुरी में काव्यशास्त्रीय पोथी के घोर अभाव रहे। सर्वेन्द्र पति त्रिपाठी आ पं. धरीक्षण मिश्र जी के कुछ किताब रस, छंद , अलंकार आदि पर रहे। बाकिर काम के चीज भेंटाइल ब्रजभूषण जी के किताब ‘ भोजपुरी के अलंकार रस आ छंद ‘ में। एह पुस्तक पढ़ला के बाद मिसिर जी का काव्यशास्त्रीय ज्ञान के बोध भइल। जवना के समीक्षा कई गो काव्यशास्त्री लोग करके एह पोथी पर सत्यम् शिवम् सुन्दरम् लिख के प्रमाणित कर चुकल बा। मिसिर जी के भोजपुरी रचना संसार जेतना बिस्तार लेले बा ओकरा से तनिको कम इनकर सांगठनिक अवदान आ आंदोलनात्मक भागीदारी नइखे। क्षेत्रीय आ प्रांतीय संस्था-संगठनन से लेके राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय स्तर का कई संस्था-संगठनन में कई प्रभावी पदाधिकारी के पद पर दायित्वबोध का संगे काम करत आ रहल बाड़न जवना के सम्मान करत दू दर्जन से ऊपर संस्थन से इनका कईगो सम्मान आ पुरस्कार मिल चुकल बा आ अबहीं त एह दिअना में एतना ना तेल बा अउर बाती अइसन ना सजोर तेलाइल-बोथाइल बा कि कई सदी ले भोजपुरी साहित्य के संसार जोत-अंजोत पावत रही। ब्रजभूषण मिश्र जी के दीर्घ आ सार्थक-सुखी जीवन के कामना करत उनका लेखनी के आगू माथ नवावत बानी। एतने अबहीं फेर कबहीं।

  • डॉ जयकान्त सिंह ‘ जय ‘

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