गयल गाँव जहाँ गोंड़ महाजन

का कहीं महाराज , समय के चकरी अइसन घूमरी लीहले बा कि बड़ बड़ जाने मे मुड़ी पिरा रहल बा । जेहर देखी ओहरे लोग आपन आपन मुड़ी झारत कुछहु उलटी क रहल बा । उल्टी करत बेरा न त ओकरे जगह के धियान रहत बा , न समय के धियान रहत बा । एतना लमहर ढंग से आत्ममुग्धता के शिकार भइल बा कि पूछीं मति । ‘अहं ब्रह्मास्मि’ के जाप मे जुटल फेसबुकिया बीर बहादुर लो अपने आगा केहू के कुछहू बुझबे ना करे, फेर चाहे समने केहू होखो । ओहनी लोगिन के हिसाब से भोजपुरी के भ उनही के दुवरे से शुरु होखेला आउर र उनही के दुवरे ओरिया जाला । बाकि लो त बेकार बा ,कवनो लूर के नइखे , इस्कूल से लेके विश्वविद्यालय सभे उनुका आगा बेकार बा । लेखक से शुरु होके नीति बनवले तक ले सभे कुछ उनही लोग से पूछ के होखे के चाही , बाकि इहो बा कि जवना के आजु सही क़हत बाड़ें ,कल्हुवो ओकरा सही कहिहें जरूरी नइखे । पाला बदलल आउर उलटी करल उनुकर सुभाव बा , ओहमे उनुका महारत बा । सोसल मीडिया पर उ लो से केहू पार ना पा सकत , काहें कि उ लो कवनो स्तर तक जा सकत बा , कइसनो कचरा फेंक सकत बा , केहू के गारी दे सकत बा लो । मध – माछी लेखा केहू से चिपटे मे उ लोग के देर ना लागे ।

अब रउवा रचनात्मक आंदोलन के बात करी भा भाषा मान्यता आंदोलन के बात करीं , नवका – नवका महाजन लो आपन महाजनी देखावे ला उमड़ि परी , आ सभके धकियावत गुड़ गोबर करे लागी । कबों – कबों त ई बुझाला कि सभे के ठीकेदारी एही लो के लग्गे बा आउर सभके भाग्य विधाता इहे लोग बा । कबों – कबों त साटिक फिटिक बाँटे लगेला लो , दोकान खोलि के । अपने महाजनी से ई लोग ओह कहाउतो के लजवा रहल बा, जवन अजुवो ले बोलाला   ” गयल गाँव जहाँ गोंड़ महाजन ” । ई लो ओह “गोंड़” से दू जौ अगहीं बा । जेकरे ककहरा ना बुझाला , उहे बड़का विद्वान , जेकरे एकहू आखर लिखे ना आवे , उ बड़का संपादक । एतना गिरोहबाजी बा एहमे कि नीमन लिखवाइया लो एकनी से दूरे रहल नीमन बूझेला । एही से भोजपुरी मे लिखवइयन के हमेशा कमी रहेला । ढेर लोग अइसनो बा जे एनी ओनी से उठा के अपने नाँव से छपवावे मे तनिको गुरेज ना करेला । अइसनो लोगिन के कमी नइखे जेकरे कहलो पर 10 लाइन ना लिखे आवत होई , उहो लिखवइयन के उपदेश देत भेंटा जाई ।

राजनीतियो मे रहि रहि के एकाध गो महाजन लो अइसनो आवत रहेला , केहू के गरिया सकेलन ई लोग , भलही ओकरे गोड़ के धूरी के बरोबर मत होखो । आपन राजनीति चमकावे ला , कवनो स्तर प चल जाला ई लोग , आउर समाज मे कई गो पाई खींच मारेला । मरजाद के परिभाषा का होला , एहनी के नइखे पता ।  समाज के लोगिन के लड़ावल आउर अपने मजा मारल एहनी के फितरत बा । कबों समाज के एक वर्ग के गरिया के , कबों दोसरा वर्ग के गरिया के आपन उल्लू सोझ करेला । कबों कबों त एक धरम के माने वालन के दोसरे से भिड़वा देला लो ,फेर उहे अपने गलबहियाँ करत देखाला । जब कबों अइसन होखेला , त कुछ उ लोग के फ़ायदो मिल जाला , बाकि ओहि दिन से उनुका ला खाईं तइयार हो जाला । एक न एक दिन उहे उ लोग के निवास बनि जाला । एकर उदाहरण रउवा सोझा बा , देख सकीलें , समझ बूझ सकीलें ।

भोजपुरी एतना भरल पूरल भाषा हियs , इ केकरो से छिपल नइखे । बाकि कुछ लो बा , जेकरे दिन्हौनी भइल बाटे , ओकरे सूझते नइखे । 20-25 गो लमेरा लेखा जुटि के खतरा बा , खतरा बा , नरिया रहल बाड़ें । ई उहे लोग बा जे आजु ले फीरी के मलाई चाभत रहल ह , उ लोग के डर हो गइल बा कि कहीं मलइया छिना न  जाव । मुड़ी काट के बार के रक्षा करे वाला सन इहवाँ ढेर बाड़े । विद्वान के पोछंडा लगवले इहो एगो गिरोहे बा । एह भकोलन के समझावे कि चौका आउर चौकी मे फरक होला । ई कुल्हि अइसन बाड़े जेकरे घरे मे खाली अंग्रेजीए बोलाला । ओहनी के भोजपुरी से ढेर खतरा बुझाला । इहे कुल्हि आजु भोरहीं से खोपड़िया मे घूमत रहल ह कि तबले बगेदना आके सोझही आपन बकर – बकर शुरू क देलस ह । मन त ढेर खिसियाइल बाकि ओकरे के सुने लगनी हम । क़हत रहल ह कि भइया तोहके पता बा , सगरों ए घरी टंगरी खिंचउवल आ लंगड़ी मरउवल वाला खेला चल रहल बाटे भोजपुरिए लेखा । फेर हम ओकरा डपेटत कहनी कि ई कवन नई बात बतावत बाड़े ,ई त पहिलई से चल रहल बा ।

बगेदना फेर मुँह फाड़ के रेघरियावत कहलेस कि फलनवाँ गोंड़वा महाजन नु हो गइल बा , ओकरा के चक्कर मे  कुल्हि महाजन लोग अपनही मे मुड़ी फ़ोरउवल कs रहल बाड़ें । बड़का महाजन भेटाइल रहने ह आवत बेरा आउर क़हत रहने ह कि सुनले बाड़े कि ना “गयल गाँव जहाँ गोंड़ महाजन”  वाली कहाउत , ससुरा के नाती चिरकुटवा महाजन बनल फिरत बा । ओकरा के ओकर जगहा देखावे के पड़ी । अब तs साँचो इहे बुझात बा – “गयल गाँव ………… ।

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

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