गजल

ई बीमारी बड़का भारी।

सनमुख डंणवत, पीछे गारी।।

 

काटे भीतर घात लगाके,

राम राम ई कइसन यारी?

 

कवन भरोसा केन्ने काटी?

जेहके भइल सुभाव दुधारी।

 

ढेला भर औकात न जेकर,

ऊहो मुँह से लादे लारी।

 

छेड़के ओके नीक न कइलऽ,

बहुत पड़ी तोहरा के भारी।

 

कबहूँ जे सोझा आ गइलऽ,

सात पुश्त ले ऊहो तारी।

 

निकलल बाटे फन त काढ़ी?

राखल बाटे लाठी – कारी।

 

  • अशोक कुमार तिवारी

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