गजल

कम में गुजर-बसर रखिहऽ!
घर के अपना, घर रखिहऽ!

मुश्किल-दिन जब भी आवे
दिल पर तूँ पाथर रखिहऽ.

जब नफरत उफने सोझा
तूँ ढाई आखर रखिहऽ.

आपन बनि के जे आवे
सब पर खास नजर रखिहऽ.

दर्द न छलके ओठन पर
हियरा के भीतर रखिहऽ.

एह करिखाइल नगरी में
दामन तूँ ऊजर रखिहऽ.

  • डॉ अशोक द्विवेदी

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