का जमाना आ गयो भाया , जेहर देखा ओहरे मचमच हो रहल बा । सभके त भोजपुरिया साहित्यकार कहाये के निसा कपारे चढ़ के तांडव क रहल बा । 56 इंची वाला एह लोगन देखते डेरा गइल बा , एही से दिल्ली छोड़ के गुजरात भागल बा । मने हेतना बड़का , जे केकरो सुनबे न करे । दुवरे बइठल भगेलुवा के बड़बड़ाइल सुनके सोझवे से गुजरत सोमारू के ना रह गइल , त उहो हाँ मे हाँ मिलावे ला उहवें ठाढ़ हो के बतकुचन मे अझुरा गइने । का हो भागेलू भइया , का भइल मरदे ? काहें भोरही भोरे बिखियाइल बाड़ा ? केहू कुछों बाउर बोल दीहलस का ? भा कवनों से हूँ तूँ हो गइल ? एक्के संगे सोमारू कक्का 4 – 5 गो सवाल धउक दीहने ।
अरे कक्का का बताईं हो, तोहूँ के एही घरी टपके के रहल ह का ? एक त अइसही मूड खराब भइल बा , ओपर तोहू दे दनादन, दे दनादन सवाल झोंक देहला । अब झोंकिए देहला त ला, सुना – “ एक दिनवा हम एगो जलसा मे गइल रहनी त उहवाँ एक जाने भोंपू पर बोलत रहने –“भोजपुरी मे गद्य के अभाव बा ?” त कक्का ओह घरी हमरे ढेर तीत लागल । अब केहू हमरे माईभाषा के बुराई करी, त उ मीठ नहिये लागी , तीते लागी । बाकि बाद मे जब हम सोचे आ हेरे लगली , त ओनकर बतिया ढेर गलत ना बुझाइल । भोजपुरी मे साँचहू लोग गद्य लिखे से बाचेला । जे लिखबो करेला , ओकरा से कवनों गद्य छापे ला निहोरा करी , ओह घरी उ दुनिया के सभाले बेसी काम मे अझुराइल बुझाला । काने ना देवेला । 10-20 बेर कहला के बाद एगो कविता भेज देला , उहो एहसान क के । इ सम्पादक बेचारा जइसे कवनों भिखमंगा होखे, सभके दुवारे – दुवारे हाँक लगा के भा फोन क क के थाक जालन सन, बाकि एगो पतिरका भर के रचना ना जुटा पावेलन ।
अरे कक्का का बताईं , काल्ह संझिया के हमार एगो संघतिया जवन एगो भोजपुरी पतिरका निकारेलन , बज़रिआ मे भेंटा गइल रहने । उहे बेचारे आपन कुल सुख्खम – दुख्खम सुनावे लगने । सुनत – सुनत हमरो माथा भिनभिनाए लागल । हम देखिला कि फेसबुकवा पर ढेर लोग जय भोजपुरी , जय हो लिखत रहेला, बाकि बुझात बा कि इ कूल्ही छुछिया फायर बा । का कहीं कक्का , इ सरकार जवन फिरी के आदत लगा देले बा , इ कूल्हि ओहि के चलते हो रहल बा । अब भोजपुरियों मे केहू फिरी मे लिखल ना चहेला । बाकि पतिरका भा किताब फिरिए मे लेवल चाहेला ।
धत्त तेरी की । बड़का भोजपुरिया बनत फिरेला लोग बाकि भोजपुरी ला काम करे के कह देही , सभकर नानिए मर जानी । लोग बगली झाँके लागेला , काम के बखत ढेर बीजी हो जाला । ओकरे बाद मे त सभाले बेसी झाँझ उहे लोग बान्हेला । बोली त अइसन बोली कि जइसे भोजपुरी उनके दुवरे बास करेले । एगो आउर बात कक्का , इहाँ ढेर गोलबंदी बा , एक गोल वाला सभ दोसरा के नटई फार फार के गरियावेलन स । एक गोल वाला दोसरा गोल खाति ना लिखी , ना बोली । जब मुँह खोली त उल्टिए करी । गज़ब हाल बाटे , सास – पतोह के झोंटी – झोंटा के लजवावत बाड़न सन । केहरों 10 – 20 ठउरा अगर नीमन काम क रहल होखिए त ओहनी के बाउर कहेला 50 गो आ जइहें । आज त हमरा ई कविता ढेर मन पर रहल बिया —
“भाषा के खातिर तमाशा चलत हौ
बिना बात के बेतहासा चलत हौ
इहाँ गोलबंदी उहाँ गोलबंदी
फिरो सुनाइल आइल इहवाँ मंदी” ।
एह घरी गज़ब हाल हो गइल बा – “ केहू के लिखे – पढे के कहीं त उ ना करी बाकि भोजपुरिया साहित्यकार ना कहब त काटे ला धउरी । केतना त अइसनो बाड़े कि फेसबुक पर चार लाइन लिख के भाषा बिद भा कवनों नेता के गरिया के राजनीति के ज्ञाता बनि जाई । कतों आंदोलन केहू क रहल बा , त उहवाँ ना जाई आ ओकर बुराई करे ला पहिलही तइयारी करी । दोसरा मे नुकुस निकारे मे त गोल्ड मेडल लेके बइठल रही । कई जगहाँ सर्टिफिकेट बँटता के फलाने के हमही भोजपुरी सीखवनी , अब ला , बुझाता उनुका जनम के पहिले जइसे भोजपुरी रहबे ना कइल । अरे भइया इ 1000 बरीस ले पुरान भाषा बिया , पता बा कि ना । तहरा के पहिलहु रहे आ तहरा बादो रही । इ समुंदर ह इहवाँ एक लोटा पानी डाला भा निकाला खास फरक ना परे के बा । हाँ ,ढेर ले ढेर इहे हो सकेला कि पानी डरबा त जोड़े वालन मे तहरों नाम आ जाई ।
भगेलू के भाषण ओरात ना देख सोमारू कक्का निपटे के बहाने आपन रसता चल दिहने बाकि उ नान स्टाप बड़बड़ात अपने मुड़ी के बोझा हलुक करे मे लागल रहने ।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी