दूबर पातर सरीर, लमाई छव फुट से कम न रहल होई,समय के पाबंद, साइकिल के सवारी क के कबों-कबों ईस्कूल मने किसान उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, सैदूपुर तक के जतरा, अक्सरहाँ त पैदले चलत रहने । सोभाव के तनि कड़क, पढ़ाई के लेके हरदम जागल रहे वाला मनई रहलें हमार बड़का बाबूजी मने श्री रामदास द्विवेदी बाबूजी। उनुका पढ़ावत बेरा सुई के गिरलो के अवाज सुना जात रहे। कबों कवनों लइका आपुस में बात करे के कोसिस करसु त सोवागत खड़िया (चाक) भा डस्टरे से होत रहे। बाक़िर पढ़े वाला लइकन खातिर आपन समय से लेके अपना तक के नेवछावर करि देत रहलें। संगही एगो अउर बात बतावत चलीं कि हमार बड़का बाबूजी हमार सग ना बलुक पितिआउत रहलें बाक़िर रहलें सग से बढ़के।
बड़का बाबूजी जवना विद्यालय में पढ़ावत रहलें, ओह विद्यालय में हमार दाखिला दर्जा छव में भइल रहल। हम प्राइमरी ईस्कूल से दर्जा पाँच में सभेले बेसी नम्मर से पास भइल रहनी। ओह विद्यालय में सगरे मास्टर लोग अगल-बगल के गाँव के रहे। अपना गाँव से बड़का बाबूजी आ मउसा जिनका के हमनी के चाचा क़हत रहनी सन, दूनों जने ओह विद्यालय के सम्मानित अध्यापक रहलें।चाचा हिन्दी आ संस्कृत पढ़ावस आ बड़का बाबूजी विज्ञान पढ़ावस। हमरा दाखिला का दिने दूनो जने विद्यालय के सभे अध्यापक लोगन से हमार परिचय करवा देहलन। चाचा से अधिका हमरा से बड़का बाबूजी नेह राखत रहलें। हर प्रतियोगिता ला हमरा के प्रेरित करसु आ जरूरत पड़ला पर हमरा घरे आ के भा अपना घरे बोला के हमार तइयारी करावसु। छठवीं कक्षा में यूनियन बैंक , चकिया हमनी के विद्यालय में अङ्ग्रेज़ी विषय के एगो प्रतियोगिता के आयोजन कइलस, जवना में छठवीं से आठवीं तक के विद्यार्थी सभन के भाग लेवे के रहे। प्रतियोगिता के दू दिन पहिले सभे कक्षा के विद्यार्थियन के सूचना दीहल गइल। जवन विद्यार्थी ओहमें भाग लेवल चाहत रहलें, ओह सभे के नाँव के एगो अलग लिस्ट बन गइल। हमनी के कक्षा में जब सूचना आइल, तब बड़का बाबूजी पढ़ावत रहलन । उहाँ के सूचना पढ़ के सुनवलें आ पहिल नाँव हमार लिख के कहलें कि तोहार नाँव हम लिख देले बानी आ अउर जे भाग लेवे के चाहत बा, आपन-आपन नाँव दे। कुल मिलाके छठवीं से आठवीं तक के 50 गो विद्यार्थी सभ के नाँव लिखा गइल। दू दिन बड़का बाबूजी हमरा घरे आ के पढ़वलन। प्रतियोगिता में हम अउवल अइनी आ हमरा यूनियन बैंक चकिया के मैनेजर पुरस्कार देके सम्मानित कइलें। एकरा बाद त बड़का बाबूजी के नेह अउर बढ़ गइल। अगिला तीन बरीस में उहाँ के प्रकाशक लोगन से जेतनी किताब मिलल होखी , उ सब किताब हमरा के दे देत रहलें आ ओकरा पढ़े खातिर कहतो रहलें। 5-6 दिन में एक दिन घरे बोलाके ओह किताबियन से पूछतो रहलें।
सन् 1980 में जब हम आठवीं कक्षा के विद्यार्थी रहनी। ओह घरी उत्तर प्रदेश में ‘एकीकृत छात्रवृत्ति परीक्षा’ होत रहे, जवना में पूरे जिला से 30 गो छात्र चयनित होत रहलें। चयनित छात्रन के प्रदेश के हर जिला के चयनित कालेज में दाखिला मिलत रहे आ संगही 100 रु छात्रवृत्ति, छात्रावास के सुविधा आ अगिला दू बरीस (नवीं आ दसवीं) खातिर हर विषय के सरकार का ओर से ट्यूटर उपलब्ध करावल जात रहलें। ओह घरी हमनी के वाराणसी जिला रहे आ जिला के चयनित विद्यालय ‘क्वींस कालेज’ रहे। ओह बरीस बड़का बाबूजी खुदही ‘एकीकृत छात्रवृत्ति परीक्षा’ के फारम मँगववलें आ हमनी के ईस्कूल ‘किसान उच्चतर माध्यमिक विद्यालय’ सैदूपुर से 10 गो छात्रन के फारम भराइल रहे। हमनी के ईस्कूल से पहिल बेर फारम भरल गइल रहे। आठवीं के वार्षिक परीक्षा खतम भइल आ ओकरा अगिलहीं दिन से बड़का बाबूजी दसो छात्रन के ‘एकीकृत छात्रवृत्ति परीक्षा’ के तैयारी करावे खातिर ईस्कूल में बोला के पढ़ावे शुरू क दीहलें। गरमी के दिन रहे , सभे साढ़े नव बजे तक चहुंप जात रहे आ संझा पाँच बजे तक बड़का बाबूजी पढ़ावत रहलें। एक दिन पढ़वला का बाद अगिला दिन टेस्ट होखे। पहिलका टेस्ट त ठीके ठाक भइल। टेस्ट के एक घंटा बाद परिणाम बता दीहल गइल। फेर पढ़ाई शुरू, अगिला दिन के टेस्ट खातिर। तीसरे दिन चहुंपते का संगे टेस्ट शुरू हो गइल। टेस्ट का बाद बड़का बाबूजी कापी जाँचे लगलें आ आधा घंटा में परिणाम बता दीहलें। सभे के गलत प्रश्नन के सही उत्तर बतवलें। ओही क्रम में एगो छत्र के टेस्ट कापी में एगो मुहावरा जवन आधा दीहल रहे , ओहके पूरा करे के रहे। मुहावरा रहे- ” एक तो करैला……. । ” खाली जगह में सही उत्तर लिखे के रहे । उ छात्र लिखले रहे “…. दूसरा लखैला।” बड़का बाबूजी जइसहीं ई पढ़के समझावे शुरू कइलें। दस के दसो जने के हँसी छूट गइल। ओह दिन अगिला पाँच घंटा तक सभे रुक रुक के हँसते रह गइल। बड़का बाबूजी के गुस्सा के सीमा ना रहे। अगिला दिन से पढ़ावे से मना क दीहलें आ घरे आ के संझा के बाबूजी से शिकायतो कइलें।
अगिला दिने हमनी सभे नीयत समय पर विद्यालय चहुंपनी सन बाक़िर बड़का बाबूजी ना अइलें।जब उहाँ के हमरे बाबूजी से मिलने त हमरा के अपने घरे बोलवने, बाबूजी कहनी कि उ त विध्यालय गइल बा। जब हम साँझ के घरे अइनी त बाबूजी के डांट आ बड़का बाबूजी के आदेश संगही मिलल कि काल्हु से अपने बड़का बाबूजी के बइठका पर पढ़े जाये के बा। अगिला दिन से हम उहाँ जाये लगनी आ बड़का बाबूजी हमरा के ‘एकीकृत छात्रवृत्ति परीक्षा’ के तइयारी करवावे लगनी। परीक्षा के चार दिन पहिले तक इहे क्रम चलल। 19 मई 1981 के हमरे बड़का मामा के बियाह रहे , त हम अपना बाबूजी के संगे बियाह में हमहूँ चल गइनी। 20 मई के जनवास रहे, उहाँ से हम आ बाबूजी दुपहरिया बाद चकिया बदे चल दिहनी सन। परीक्षा केंद्र चकिया रहे । 21 मई के भोरे 7 बजे से परीक्षा रहे। हम आ बाबूजी संझा पाँच बजे चकिया पहुँचनी जा। चकिया में बड़का बाबूजी हमनिये के जोहत रहनी, काहें से कि परीक्षा केंद्र बदल गइल रहे। परीक्षा केंद्र चकिया से बबूरी चल गइल रहे। जवन हमनी के गाँव बरहुआँ से 20 किमी दूर रहे। उहाँ 7 बजे सबेरे चहुंपल मोसकिल रहे। बाबूजी आ बड़का बाबूजी आपुस में बात कइलें आ बबुरी जाये वाली गाड़ी पकड़ लीहलें। संझा 7 बजे का बाद बबुरी का ओर कवनो गाड़ी ना जात रहनी। करीब 8 बजे हम, बाबूजी आ बड़का बाबूजी का संगे बबुरी चहुंप गइनी। बबुरी में ठहरे के कवनो ठेकाना ना रहे । हमनी तीनों जने बजार से कुछ खाय के रात रुके के ठेकाना जोहत एगो खरिहान में चहुंपनी सन। उहवाँ टूबेल रहे बाक़िर कवनो मनई ना रहने। ओह खरिहान में गोहूँ के खूँटी पर उहवें राखल एगो पुवरवट से छोड़ सा पुअरा बिछा के ओकरा ऊपर बाबूजी के धोती बिछावल गइल। हमनी रात में उहवें सूत गइनी सन।
भोरे जब हमनी के नीन खुलल त टूबेल चलत मिलल आ एगो भल मनई उहाँ हमनी के देख के चिहुँक गइलें। बतकही भइला पर बड़ अफसोस करत बुझइलें। हमनी शौच आदि से निवृत्त होके हाथ मुँह टूबेल पर धोय के जवना विद्यालय में परीक्षा के सेंटर रहे, उहाँ खातिर चल दीहनी सन। भोरे 7 बजे से परीक्षा शुरू होखे वाला रहे त साढ़े छव बजे सभे परीक्षार्थी लोग के अपना-अपना क्रमांक का हिसाब से परीक्षा कक्ष में जाये के अनुमति मिल गइल। 7 बजे विद्यालय के मुख्य गेट बन्न हो गइल। बाबूजी आ बड़का बाबूजी बहरा से नहाये, पूजा करे ला ओही टूबेल पर फेरु चल गइल लो आ उहाँ से नहाय-पूजा क के फेरु विद्यालय पर आ गइल। 9 बजे विद्यालय के मुख्य दरवाजा खुलल। परीक्षार्थी सभ चाय-नास्ता करेला बहरा निकसे लगले। एक घंटा बाद फेरु दोसरका सत्र के पेपर रहे। हर सत्र में दू पेपर होत रहल। पौने दस बजे तक सभे के वापस लउटे के रहे। जब हम बहरा अइनी त बड़का बाबूजी पेपर का बारे में पूछलें आ हमरा से सही स्थिति बतावे के कहलें । हमरा उत्तर से उहाँ के संतोष भइल रहे, अइसन हमरा लागल। कुछ नास्ता क के पौने दस बजे तक हम अपने परीक्षा कक्ष में चल गइनी। फेर 12 बजे परीक्षा खतम भइला पर जब हम बाहर अइनी त फेरु बड़का बाबूजी दोसरका सत्र में भइल दूनों पेपरन का बारे में पूछलें आ हमरा उत्तर से सहमत देखइलें। बाद में बाबूजी से कहलें कि बड़कू हमरा मेहनत के सार्थक क दीहने। इहाँ के सफल जरूर होखिहें।
जुलाई 1981 में एकीकृत छात्रवृत्ति परीक्षा के परिणाम घोषित भइल। मार्कशीट विद्यालय पर चहुंपल। 10 छात्रन में से एगो हमही सफल भइल रहनी। जुलाई के पहिल सप्ताह में हम आदित्य नारायण राजकीय इंटर कालेज चकिया में प्रवेश ले चुकल रहनी। बड़का बाबूजी हमरा घरे सूचना भेजवा देले रहने। जइसहीं हम 2 बजे घरे चहुंपनी, हमार माई कहलिस कि सैदूपुर ईस्कूल से एगो चपरासी के तहार बड़का बाबूजी भेजले रहलें ह , तहरा के बोलववले बाड़न। हम खइका खाय के विद्यालय पर गइनी। उहाँ उत्साह के माहौल रहे। बड़का बाबूजी प्रिंसिपल ऑफिस में बइठल रहने। हम पहुँच के उहाँ के गोड़ लगनी, उहाँ के गरे लगा के आशीष दीहलें। असीसत बेरा बड़का बाबूजी के गला रुँध गइल रहे आ आँख लोराइल रहे। जब हम प्रिंसिपल साहब के गोड़ लागे ला झुकनी त उहाँ के बिचहीं पकड़ के गरे लगा लीहने आ हमरा के ‘एकीकृत छात्रवृत्ति परीक्षा’ के परिणाम बतावत बधाई दीहलें। घंटा बजाके विद्यालय के सगरे छात्रन के प्रार्थना स्थल पर इकठ्ठा कइल गइल । प्रिन्सिपल साहब आ बड़का बाबूजी हमरा के स्टेज [आर बोलाके सभे छात्रन के सोझा अंक पत्र दीहलें आ अपना भासन में सभे छात्रन के खूब लगन से पढ़े खातिर प्रेरित कइलें। बड़का बाबूजी मिठाई मंगा के सभी शिक्षक लोगन के मुँह मीठा करववलें, जइसे कि हम उनुका आपन बेटा होखीं। अइसन उदार मन के रहलें हमार बड़का बाबूजी ।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी